Wednesday, April 13, 2011

उम्मीदों की मौत

देश-दुनिया में हादसे और उनमे होने वाली मौतों की खबर हर किसी के लिए आम खबर की तरह होती है,लेकिन वो लोग,वो परिवार टूटकर बिखर कर जाते है जिनके यहाँ हादसे मौत की शक्ल लिए पहुँचते है...एक तरफ हम अपनी तरक्की के पन्नो को पलटते नही थक रहे वहीं दूसरी ओर जमीनी हकीकत इंसानियत के चेहरों की कई तस्वीरे पेश कर जाती है...पत्रकारिता के पेशे से हूँ इसलिए थोड़ी बहुत जानकारियों को अपने दिमाग में डाले रखता हूँ,न जाने कौन सी जानकारी कहाँ काम आ जाये..? जानकारी का ही नतीजा रहा की मंगलवार की सुबह जब मैंने देश-दुनिया से बाखबर होने के लिए टी.वी.ऑन किया तो लाल पट्टी पर सफ़ेद रंग से लिखी ब्रेकिंग न्यूज चल रही थी...लिखा था चार दिनों से घर में बंद भिलाई में रहने वाले एक परिवार के पांच सदस्यों ने जहर खा लिया है...खबर सुबह ६ बजे सुबह की थी,सभी की हालत गंभीर बनी हुई है...करीब डेढ़ घंटे बाद जो खबर आई वो इंसानियत की हार का प्रमाण दे गई...परिवार के ४ लोग मौत के गाल में समा चुके थे और जिसे जिन्दा बचाने की कोशिशे की जा रही थी उसका सब कुछ लुट चुका था...बिस्तर पर बदहवास वो शख्स इस बात से बाखबर था की उसकी माँ और तीन बहने दुनिया से रुखसत हो चुकी है...लोगो के लिए जो महज एक खबर थी वो एक परिवार को ख़त्म कर चुकी है....
                                                     मंगलवार को जब उम्मीदों की मौत हुई तो सरकार,भिलाई इस्पात सयंत्र समेत विपक्षियो की आँखों में भिन-भीना रहा कीचड़ बहकर मुह के पास आ गया...सब बोलने लगे...सरकार ने जांच के आदेश जारी कर दिए,बी.एस.पी.प्रबंधन ने अमानवीय चमड़ी को बचाने का बहाना खोज लिया वहीँ कांग्रेसियों को मौत पर राजनीती करने का घर बैठे एक मुद्दा मिल गया....उम्मीद की मौत ने एक परिवार के चार सदस्यों को साथी बना लिया...मै मानता हूँ की हार चुकी इंसानियत के पास अब पाना तो दूर खोने के लिए भी कुछ नही बचा...कहते है परिवार का पांचवा और इकलौता सदस्य सुनील ठीक है...शायद ऊपर वाले को रहम आ गया होगा...सुनील ने अपनी माँ,तीन बहनों की चिता को आग दी...शायद किस्मत में यही लिखा था....
                                                      मै आज जिस न भूलने वाली घटना के बारे में लिख रहा हूँ वो कुछ इस तरह की है...भिलाई के सेक्टर-४,स्ट्रीट-३४,आवास क्रमांक-८-ऐ में रहने वाले सुनील साहू ने २ मांगो को लेकर ८ अप्रैल से माँ मोहिनी देवी,बहन शीला,शोभा और रेखा समेत खुद को घर में कैद कर लिया था...सुनील का कहना था भिलाई इस्पात सयंत्र में कार्यरत उसके पिता ने ख़ुदकुशी नही की थी बल्कि उनकी हत्या कर लाश फेंक दी गई थी...पिता की मौत के बाद अनुकम्पा नियुक्ति और उस घर को खाली नही करवाए जाने की गुहार लगाते लम्बा वक्त बीत गया था...यक़ीनन १७ साल का इन्तेजार कम नही होता...सरकार से लेकर इस्पात सयंत्र के तकरीबन हर जिम्मेदार अफसर से गुहार लगा चूका सुनील जब परिवार समेत घर में बंधक बन बैठा तो सबने उसे गीदड़ भभकी समझा...लोगो को उम्मीद ही नही थी की एक परिवार मौत को गले लगा लेगा...करीब १७ बरस का इन्तेजार जब ख़त्म हुआ तो मौत से रिश्ता बनाना बेहतर समझा बजाय इसके की उम्मीद में ना जाने और कितने बरस बीत जाये....देश में इस्पात नगरी के रूप में जाना-जाने वाला भिलाई इस्पात सयंत्र इतना बेरहम होगा किसी को नही पता था...? इस घटना से अब लोग यकीन कर लेंगे,मै ऐसा मानता हूँ....
                                                               अब मरने  वाले परिवार के बचे  सदस्य को लोग धाडस बंधा रहे है...कुछ लोग भीड़ लगाकर साथ  होने का यकीन दिला रहे है, तो कुछ ने बीएसपी के खिलाफ  झंडा उठा लिया है...मै सोचता हूँ अब कोई किसी भी ढंग से मानवीयता का परिचय देने की कोशिश करे परिवार के बगीचे का माली और फूल अब नही लौटा सकता....

1 comment:

  1. sarkaar aaur bhilai ispat ke adhikaroyo ki sanvednayen mar chuki hai......is post se yai lagta hai...

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