Sunday, May 29, 2011

तिहाड़ में हैं...

पिछले दिनों दक्षिण भारत के ताक़तवर राजनीतिक करुणानिधि की बेटी कनिमोड़ी जेल चली गईं. पू्र्व केंद्रीय मंत्री ए राजा और भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन के पूर्व प्रमुख सुरेश कलमाड़ी पहले से ही तिहाड़ में हैं...उनके अलावा रिलायंस जैसी ताक़तवर कंपनी के कई आला अफ़सर और ओलंपिक एसोसिएशन के कई पूर्व अधिकारी पहले से ही वहाँ हैं...थोड़ा पीछे हटकर देखें तो हरियाणा के एक शक्तिशाली नेता विनोद शर्मा के बेटे मनु शर्मा और उत्तर प्रदेश में अपने कारनामों के लिए ख्यात राजनीतिज्ञ डीपी यादव के बेटे विकास यादव भी तिहाड़ में ही हैं...झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा भी क़ानून के फंदे में फँस चुके हैं और कई जेलों की दीवारें ऐसे ही बहुत से लोगों का इंतज़ार कर रही हैं...ऐसे लोगों को सलाखों के पीछे देखकर उस जनता के एक बड़े हिस्से को सुकून मिलता है जो वोट देकर सरकारें चुनती हैं. कुछ उन लोगों को चिंता भी होती होगी जो वोट पाकर चुने जाते हैं या फिर सरकार को प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से चलाने में भूमिका निभाते हैं....सतह पर तो दिखता है कि ये सबकी अपनी-अपनी करनी का फल है. वे अपने किए की सज़ा भुगत रहे हैं...लेकिन व्यापक दृष्टि से देखें तो ये हमारे लोकतंत्र के परिपक्व होने के मानदंडों में से एक है. जनता के लगातार दबाव, अदालतों की सक्रियता और सरकार के लाख नानुकुर के बाद ही सही जनप्रतिनिधि और नौकरशाहों, व्यावसायियों और उद्योगपतियों और दलालों तक क़ानून की आँच आ तो रही है...कहने को तो ये कहा जा सकता है कि लालू प्रसाद यादव और सुखराम भी तो गिरफ़्तार किए गए थे, उसके बाद क्या हुआ? लेकिन समझने वाले समझते हैं कि उन गिरफ़्तारियों और इन दिनों हुई गिरफ़्तारियों में अंतर है...हालांकि अभी ए राजा, सुरेश कलमाड़ी और कनिमोड़ी पर सिर्फ़ आरोप हैं. उन पर लगे आरोपों को साबित करके तिहाड़ को इन सबका स्थाई पता बनाने के लिए अभी तंत्र को और मेहनत करनी पड़ेगी. और यक़ीन मानिए लोक का तंत्र वह भी करेगा...
                                    वैसे ऐसे लोगों की कमी नहीं जो अपने लोकतंत्र से उकताए हुए दिखते हैं. वे मान बैठे हैं कि इस व्यवस्था में कुछ नहीं बदल सकता. उनके पास ऐसा मानने के कारण भी कम नहीं हैं. लेकिन एक लोकतंत्र के लिए साठ साल को शैशव काल ही मानना चाहिए. वह धीरे-धीरे ही परिपक्व होगा और परिपक्वता एकाएक नहीं आएगी धीरे-धीरे ही आएगी....अगर लोकतंत्र को सचमुच का लोकतंत्र होना है तो तंत्र को लोक यानी लोगों की सोच और आवाज़ को मूर्त रूप देना होगा... इस तंत्र को पारदर्शी होना होगा और जनता के प्रति और जवाबदेह....जिस रास्ते से हम गुज़र रहे हैं वह थोड़ा कठिन तो है और रफ़्तार भी कुछ कम है लेकिन उम्मीद करनी चाहिए कि हम एक दिन ऐसे मुकाम पर ज़रुर पहुँचेंगे जब न सिर्फ़ सरकारें जवाबदेह होंगीं बल्कि सरकारों को (कु)संचालित करने वाली सरकार के पीछे रहकर काम कर रहीं ताक़तें भी जनता के दरबार में हाज़िर की जाएंगीं...

Thursday, May 5, 2011

....कितने याद आओगे लादेन

दुनिया में अब आतंक के आका,दहशतगर्दो के मसीहा ओसामा बिन लादेन तुम नहीं रहे. २ मई की देर रात खबर आई की तुम नही बचे...जाने के बाद कितने याद आओगे ये नहीं पता लेकिन जाते जाते कई लोगों को बेरोज़गार और दुःखी ज़रुर कर गए हो....अमरीका से लेकर अफ़गानिस्तान तक और ऑस्ट्रेलिया से लेकर पाकिस्तान तक. यहां तक कि भारत में भी सारे पत्रकार दुःखी हैं. कई सारे देश और नेता भी दुःखी हैं....पत्रकार दुःखी हैं कि अब कौन टेप भेजेगा जिसे छाप छाप कर नौकरी बचाई जाएगी.कहां जाएंगे वो बेसिर पैर विश्लेषण के दिन और आतंकवाद विशेषज्ञ की उपाधियां. कहां जाएंगे वो दिन जब कुछ नहीं होने पर लादेन के नाम का वीडियो लेकर आधे आधे घंटे का कार्यक्रम बना लिया करते थे....हम आज भले ही खुश हैं कि बहुत काम है लेकिन हमें पता है आने वाले दिन बड़े ख़राब होने वाले हैं. हमारे कई बड़े भाइयों{टीवी एंकर/पत्रकार} को भी अब दौड़ना पड़ेगा ख़बरों के लिए. लादेन थे तो मेरी बिरादरी वाले दिल्ली,मुंबई के स्टूडियो में बैठ कर लाइव कर दिया करते थे...कि तुमने फलां फलां कहा और फलां फलां चीज़ चाहते थे....तुम महान थे लादेन तुमने कभी पत्रकारों की बात नहीं काटी....अभी तुम्हारी मौत को 12 घंटे भी नहीं हुए और क्या नौबत आ गई....एक चैनल को एक फ़िल्म (तेरे बिन लादेन) के हीरो से प्रतिक्रिया लेनी पड़ी कि तुम्हारी मौत पर उसको कैसा लग रहा है.....दुःखी पाकिस्तान भी हैं. कहते तो सब थे लेकिन अब पक्की बात हो गई कि देश में क्या हो रहा है इसका पता ज़रदारी से पहले ओबामा को होता है...पहले सिर्फ़ रेमंड डेविस घूम घूम कर गोलियां मार रहा था अब तालेबान भी घूम घूमकर पूरे पाकिस्तान में गोलियां चलाएंगे....सुना है तालिबान वाले कह रहे हैं अब हमारा दुश्मन नंबर एक अमरीका नहीं बल्कि पाकिस्तान है...लीजिए ज़रदारी साहब और कियानी साहब आपके लिए और काम, जिसके पैसे अमरीका भी नहीं देगा....टीवी पर बराक ओबामा घोषणा करते खुश दिखे होंगे लेकिन उनको भी पता है लादेन को मारने के बाद मुश्किल बढ़ गई है....अब उनको भी विकास के काम करने होंगे.....मंदी से डराने के लिए लादेन का भूत नहीं मिलेगा....अगले चुनावों में अमरीका की जनता अफ़गानिस्तान से सेना वापस बुलाने की मांग करेगी....वैसे ओबामा साहब तो वादा कर के मुकर जाते हैं. ग्वांतानामो बे बंद करने का वादा था....देखें लादेन के मरने के बाद जनता को क्या जवाब देंगे....इसी बात से हामिद करज़ई भी दुःखी हैं....अमरीकी और नैटो सेना चली गई तो उनके प्रशासन का क्या होगा....शांति की बात कर रहे हैं लेकिन उनको पता है शांति तो सेना के साथ रहती है....उनकी बात ही नहीं मानती. उनकी शांति तो भारत की कामवाली बाई जैसी है जब मन छुट्टी ले लेती है....तो इंतज़ार कीजिए एक और हौव्वे का ताकि सबकी रोज़ी चल सके.