Wednesday, May 30, 2012

कंचन पहाड़...!


जिन्दगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र कोई समझा नही कोई जाना नही.....सच ही तो है,जिन्दगी के सफ़र में इंसान केवल भागता जा रहा है ! हर कोई अपने से आगे चल रहे इंसान को पीछे छोड़ देना चाहता है ! भाग दौड़ भरी जिन्दगी में इंसान ने इंसानियत के मायने ही बदल कर रख दिए है ! संवेदना लगभग मर चुकी है,भौतिक संसाधनों के आदि हो चुके इंसानों को नही पता वो क्या खोते जा रहे है ! जो हमारा अतीत है,जिस धरा का इतिहास धरती की कोख में समा चूका है उन सब से कम ही इंसानों को मतलब होगा ! हमको इतिहास और वो सब कुछ जानने की लालसा हर वक्त सताये जाती है जो अब अतीत के पन्नो में सिमट कर कहीं खोता जा रहा है ! यात्रा के जरिये हम आपको उन्ही पन्नो को पलटकर बताते है जो कभी हमारा गौरव हुआ करता था,या ये कहें की हम इंसानों की सदियों पुरानी पीढ़ियों को उन सब से सरोकार था ! आज की यात्रा की मंजिल कंचन पहाड़ है ! हम कोरबा से ४३ किलोमीटर का सफ़र तय कर कंचन पहाड़ पहुंचेंगे ! हम कंचन पहाड़ दो रास्तो से जा सकते है,एक तो देवपहरी,लेमरू होकर गढ़ उपरोड़ा ! दूसरा रास्ता खराब है लेकिन दूरी कम है ! दूसरा रास्ता रुमगढ़ा होकर अजगर भार,सतरेंगा होता हुआ कंचन पहाड़ तक ले जायेगा ! हम बालको होते हुए मंजिल की ओर बढ़ रहे है ! पहाड़ी रास्ते पर चलना आसान नही है फिर भी हम घुमावदार रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ रहे है ! रास्ते में कई जगह भगवानो के छोटे-बड़े मन्दिर वीरान सड़क पर राहगीरों की हिम्मत बंधाने के काम आते है ! वैसे तो कहा जाता है देवता कण-कण में है ! पहाड़ी रास्ते को पार करते हम जैसे ही नीचे पहुंचे साथियों की नजरे फल से लदे आम के पेड़ पर पड़ गई ! बस क्या था,सबकी सहमती पर रुकने की मज़बूरी थी ! क्यूंकि मंजिल का सही पता तो साथियों को ही था,हम रुक गए ,जिसे जैसे बन सका आम तोड़ता रहा ! कुछ देर बाद जी भर गया तो आगे बढ़ गए ! रास्ते भर दोनों ओर गर्मी और आग उगलती धूप को चिढाती हरियाली किसी का भी मन मोह सकती है बस उस नैसर्गिक छटा को महसूस करने वाली नजरें हो ! हमने गढ़ उपरोड़ा पहुंचकर कंचन पहाड़ तक जाने का रास्ता पूछा,बताया गया सतरेंगा के थोडा पहले से एक कच्चा रास्ता पहाड़ पर ले जाएगा लेकिन पता बताने वाले हमको वक्त के लिहाज से आगाह कर दिया की अभी हम वहां ना जाएँ क्यूंकि ऊपर पहुँचते-पहुँचते शाम हो जायेगी ! हमने घडी की ओर देखा तो करीब सवा तीन बजे थे,साथियों की राय पर हम बिन मंजिल तक गए वापस कोरबा गए लेकिन दुसरे दिन हम दूसरे रास्ते यानी रुमगरा होते हुए मंजिल की ओर निकल गए ! हमने पास के गाँव से एक व्यक्ति को लिया जो हमें उस जगह पर लेकर पहुंचा जहां से पैदल किलोमीटर चलना था ! हमने गाडी को जंगल में छोड़ दिया और पैदल पहाड़ की ओर बढ़ चले ! धुप का अहसास और सुरज की तपिश का अंदाजा पैदल चलते वक्त हुआ ! करीब-करीब ४६ डिग्री तापमान में हम आगे बढ़ रहे है ! जंगल के रास्ते पत्थरों को रौदते हम आगे बढ़ते रहे तभी दो साथियों की हिम्मत ने धुप की चिलचिलाहट के आगे जवाब दे दिया ! वो रास्ते में ही रुक गये
                         मै अपने कैमरा सहयोगी मनहरण के साथ उस ग्रामीण के पीछे-पीछे चलता रहा जिसे मंजिल की सही जानकारी है ! ऊपर पहाड़ पर दूर झाड़ियों के बीच किसी के छिपे होने का अहसास हुआ ! ध्यान से देखा तो एक बूढ़ा व्यक्ति हाथ में तीर-धनुष लिए हमारी नजरो से बचने की कोशिश कर रहा था ! हम उसके करीब पहुँच गए,डरा-सहमा बुजुर्ग एक ओर जहां मौसम के सख्त  तेवर को चिढ़ा रहा था वहीँ सरकार के विकास कार्यों की हकीकत उसके तन के तंग कपडे ब्यान कर रहे थे ! हमको बताया गया ये शिकारी है इसके कई और साथी है जो इस जंगल में विचरण करते रहते है  ! यहाँ पास ही में एक गुफा है जहां भालुओ का डेरा है जो इस वक्त गर्मी से बचने के लिए छिपे बैठे है ! इस पहाड़ के पहले हिस्से में हमको कुछ प्राचीन पत्थर नजर आये ! गाँव के सहयोगी ने बताया ये जाता और सुपा दौरी है !  बताते है सदियों पहले यहाँ इंसान रहा करते थे ! ये अवशेष मात्र उसकी निशानी है,कहते है ये प्राचीन मूर्तियाँ और पत्थर कलचुरी कालीन है हालाकि पुख्ता प्रमाण पुरात्तव विभाग के पास भी नही है ! इन पत्थरों में आज भी इतिहास सिमटा हुआ है,ये पत्थर आज भी बीते जमाने की सभ्यता का प्रमाण है ! हम यहाँ से काफी कुछ जानकार,देखकर पहाड़ के उस हिस्से की ओर बढ़ गए जहां पुराने मकानों के अवशेष है ! तपती चट्टानें,गर्म हवाओं के बीच अभी सैकड़ो मीटर ऊपर चढ़ना है ! रास्ता नही है,फिर भी  मैंने सोचा मंजिले क्या है,रास्ते क्या है हौसला हो तो फासला क्या है .....!  ये पहाड़ बिन रास्ते चढ़ना किसी हौसले से कम भी तो नही है ! कोशिश की और पेड़ पकड़कर कुछ ऊपर पहुँच गए मगर पैर फिसल गए तो यकीं मानिए कुछ लोगो को राम-नाम सत्य है कहने का मौका मिल जाएगा ! हम गाँव के इस साथी के पीछे-पीछे ऊपर पहुँच गए ! इस बीच चट्टानों पर की गई कलाकारी और आने आला एक बार फिर बीते जमाने की खानी दोहराते रहे ! कितनी ऊँची और खड़ी है ये चट्टानें,एसा लगता है आसमान से गले मिल रही हो ! ऊपर पहुंचे तो रास्ते भर की कठिनाइयों ने पीछा छोड़ दिया ! दूर तक पठारी मैदान,पथरीली चट्टान पर पेड़ों की हरियाली और जंगली फूलो की मादकता भरी खुशबु हमारा स्वागत करती रही ! कहते है यहाँ हजारों साल पहले लोग रहते थे,इस पहाड़ पर मिटटी के घरोंदे हुआ करते थे ! ऊंचाई से निकला लोगो का शोर पहाड़ के नीचे तक सुनाई पड़ता था ! कुछ अवशेष अब भी यहाँ है जैसे मिटटी के बर्तनों के टुकड़े,कुछ ऐसे पत्थर जो दैनिक जरूरतों को पूरा करने के काम आया करते थे ! जैसे इस पत्थर के बारे में हमको गाँव के आदमी ने बताया इसमें धान को कूटकर चावल बनाया जाता था ! कुछ ऐसे पत्थर जिनकी कभी भगवान् मानकर पूजा की जाती रही होगी ये सब कुछ यहाँ आज भी मौजूद है ! इस जगह से चारों ओर ऊँचे पहाड़ ऐसे लगते है जैसे एक दुसरे की ऊंचाई से मुकाबला कर रहे हो ! दूर एक बस्ती दिखाई पड़ती है जो हजारों मीटर नीचे है ! यहाँ से हर पहाड़ की खूबसूरती देखते ही बनती है ! हर पहाड़ की बनावट में फर्क दिखता है मगर नजाकत चारो ओर एक सी है ! यहाँ से थोडा और ऊपर जाने पर वो अवशेष है जो बताते है कैसे इंसान हजारो साल पहले ऊँचे पहाड़ों पर घर बनाकर रहा करते थे ! पत्थर के वो घरोंदे  तो धराशाई हो गए मगर उनके अवशेष अब भी काफी कुछ कहते है,बहुत कुछ बताते है ! ये नजारा देखकर आप भी समझ सकते है की बरसो पहले यहाँ कितने घर हुआ करते थे जहां तक पहुंचना सबके बस में नही है ! अपनी खूबसूरती पर हर वक्त इठलाते ये पहाड़ कई बार भय का एहसास कराते है मगर नैसर्गिक छटा के बीच हमने दर को किनारे कर दिया था ! हाँ जब ग्रामीण साथी ने बताया यहाँ भालू बहुत है उस वक्त थोड़ी ही घबराहट जरूर हुई ! मगर इस नजारे ने सारी घबराहट को दूर ही नही किया बल्कि ये सोचने पर मजबूर कर दिया की लोग व्यर्थ में ही यहाँ-वहां सैर सपाटे के लिए भटकते है
             कितना कुछ छिपा है कोरबा के गर्भ में,कितना कुछ है जिसे बताकर आने वाली पीढ़ियों को कोरबा के अतीत से वाकिफ करवाया जा सकता है ! फिर सोचता हूँ वक्त किसके पास है इतना,जो इतिहास जाने,पुराने गौरव से वाकिफ हो ! भौतिक संसाधनों की चादर से लिपटी आज की जिन्दगानियों को इन फिजाओं की खुशबु का अहसाह नही हो सकता ! ये सब सोचते-सोचते हम नीचे उतरते रहे ! जितना वक्त और मेहनत ऊपर चढ़ते वक्त लगी उससे कम समय नीचे आने में लगा ! चलते-चलते हम फिर अपनी गाड़ी के पास गए ! शरीर लगभग जवाब दे चूका था मगर लौटना भी जरूरी था ! हम वापस कोरबा के लिए निकल पड़े है ! गाडी में रखे आम और कटहल की खुशबु बार-बार इस मिरर की ओर ध्यान ले जाती जहां हमने कुछ आम को टांग रखा था ! जंगल के रास्ते वापसी का सफ़र और भी सुहाना था क्यूँ की ढलते सूरज की आंखमिचोली ऊँचे पेड़ो के बीच लगातार जारी थी !                   

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