tag:blogger.com,1999:blog-6225956294294258789.post342867213047709042..comments2023-09-19T00:50:44.985-07:00Comments on kuchh aapki,kuchh hamari: गांधी,अन्ना के देश में...todaychhattisgarhhttp://www.blogger.com/profile/10629896076362581601noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-6225956294294258789.post-61773652065654938582011-04-20T09:54:49.332-07:002011-04-20T09:54:49.332-07:00dil ko chhune vali baat aaur aapka bebakpan hamen ...dil ko chhune vali baat aaur aapka bebakpan hamen aapka kayal bana chuka hai....shandaar postUnknownhttps://www.blogger.com/profile/16052604116853315146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6225956294294258789.post-75106828172196097732011-04-19T21:38:16.941-07:002011-04-19T21:38:16.941-07:00सत्या आपकी इस पोस्ट ने मुंशी प्रेमचंद की कहानी &qu...सत्या आपकी इस पोस्ट ने मुंशी प्रेमचंद की कहानी "नमक का दरोगा" की याद दिला दी, लगभग सौ साल बाद भी ये कहानी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है. न जाने आज की पीढ़ी इससे वाकिफ है या नहीं? कहानी लम्बी है.... इसके आरंभिक अंश यहाँ दे रहा हूँ. नई पीढ़ी से आग्रह है कि ये और प्रेमचंद की लगभग सभी कहानियां नेट पर उपलब्ध हैं. समय निकाल कर अवश्य पढ़े.<br />नमक का दारोगा<br />जब नमक का नया विभाग बना और ईश्वरप्रदत्त वस्तु के व्यवहार करने का निषेध हो गया तो लोग चोरी-छिपे इसका व्यापार करने लगे। अनेक प्रकार के छल-प्रपंचों का सूत्रपात हुआ, कोई घूस से काम निकालता था, कोई चालाकी से। अधिकारियों के पौ-बारह थे। पटवारीगिरी का सर्वसम्मानित पद छोड-छोडकर लोग इस विभाग की बरकंदाजी करते थे। इसके दारोगा पद के लिए तो वकीलों का भी जी ललचाता था।<br /><br />यह वह समय था जब अंगरेजी शिक्षा और ईसाई मत को लोग एक ही वस्तु समझते थे। फारसी का प्राबल्य था। प्रेम की कथाएँ और शृंगार रस के काव्य पढकर फारसीदाँ लोग सर्वोच्च पदों पर नियुक्त हो जाया करते थे।<br /><br />मुंशी वंशीधर भी जुलेखा की विरह-कथा समाप्त करके सीरी और फरहाद के प्रेम-वृत्तांत को नल और नील की लडाई और अमेरिका के आविष्कार से अधिक महत्व की बातें समझते हुए रोजगार की खोज में निकले।<br /><br />उनके पिता एक अनुभवी पुरुष थे। समझाने लगे, 'बेटा! घर की दुर्दशा देख रहे हो। ॠण के बोझ से दबे हुए हैं। लडकियाँ हैं, वे घास-फूस की तरह बढती चली जाती हैं। मैं कगारे पर का वृक्ष हो रहा हूँ, न मालूम कब गिर पडूँ! अब तुम्हीं घर के मालिक-मुख्तार हो।<br /><br />'नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मजार है। निगाह चढावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृध्दि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती हैं, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ।<br /><br />'इस विषय में विवेक की बडी आवश्यकता है। मनुष्य को देखो, उसकी आवश्यकता को देखो और अवसर को देखो, उसके उपरांत जो उचित समझो, करो। गरजवाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ ही लाभ है। लेकिन बेगरज को दाँव पर पाना जरा कठिन है। इन बातों को निगाह में बाँध लो यह मेरी जन्म भर की कमाई है।<br /><br />इस उपदेश के बाद पिताजी ने आशीर्वाद दिया। वंशीधर आज्ञाकारी पुत्र थे। ये बातें ध्यान से सुनीं और तब घर से चल खडे हुए। इस विस्तृत संसार में उनके लिए धैर्य अपना मित्र, बुध्दि अपनी पथप्रदर्शक और आत्मावलम्बन ही अपना सहायक था। लेकिन अच्छे शकुन से चले थे, जाते ही जाते नमक विभाग के दारोगा पद पर प्रतिष्ठित हो गए। वेतन अच्छा और ऊपरी आय का तो ठिकाना ही न था। वृध्द मुंशीजी को सुख-संवाद मिला तो फूले न समाए। महाजन कुछ नरम पडे, कलवार की आशालता लहलहाई। पडोसियों के हृदय में शूल उठने लगे।<br />http://premchand.kahaani.org/Kamal Dubeyhttps://www.blogger.com/profile/00531279326377444710noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6225956294294258789.post-9071699244010743502011-04-19T07:56:59.896-07:002011-04-19T07:56:59.896-07:00behtreen,aaj ke jwalant samsya par sateek bat........behtreen,aaj ke jwalant samsya par sateek bat.......Kumarhttps://www.blogger.com/profile/01122390452781953999noreply@blogger.com