Thursday, March 1, 2012

गुफा के भीतर ब्रम्हा,विष्णु महेश ...


हम रात को आकाश पर अनंत तारे देखते है,मगर सूरज की पहली किरण के साथ तारो का जैसे अस्तित्व ही खत्म हो जाता है ! अज्ञानी को कभी ईश्वर के दर्शन नही होते,जो मानते है,जो आस्तिक है उनके लिए ईश्वर,अल्लाह,प्रभु येशु और वाहे गुरु कण-कण में है ! उस मनुष्य का जीवन व्यर्थ्य है जिसने मानव योनी में जन्म लेकर कभी ईश्वर को पाने की चेष्ठा नही की ! वैसे भी कहा गया है जाकी रही भावना जैसी,प्रभु मूरत देखी तिन तैसी ! ईश्वर एक है,जिस पत्थर में मीरा को श्याम नजर आते है उसी पत्थर में तुलसीदास को राम नजर आते है ! हर संस्कृति में परमेश्वर की परिकल्पना ब्रह्माण्ड की संरचना से जुडी हुई है ! सुबह से ही धर्म से जुडी बातो पर चर्चा हुई इसी कारण मैंने सोचा आज कहीं ऍसी जगह चलूँ जहां मन को शांति के साथ साथ परम पिता परमेश्वर के दर्शन हो जाए ! यात्रा की इस कड़ी में आज का सफ़र उसी परमेश्वर के दर पर जाकर ख़त्म होगा जहां इंसान से ना उसकी जाति पूछी जाती है ना ही उसके मजहब को लेकर कोई भेद-भाव नजर आता है !मै ये मानता हूँ जो इंसान है वो हर दर पर केवल आस्था से शीश नवाना जानते है ! आज मै अपने साथियों के साथ कोरबा से रिस्दी होते हुए कोरकोमा गाँव पहुंचा,मेरे लिए ये शहर नया और अनजाना है इस कारण जिले के भूगोल से ज्यादा वाकिफ नही हूँ ! साथियों ने बताया कोरकोमा गाँव से करीब ३ किलोमीटर जंगल के भीतर से होते हुए पहाड़ पर शंकर खोला है जहां के अतीत का जिक्र रामायण में उल्लेखित है ! कोरबा से महज २३ किलोमीटर दूर कोरकोमा पहुँचाने से पहले एक जगह वन महकमे का चेक पोस्ट नजर आया,इस बेरियर को देखकर साथियों ने कहा बस थोड़ी ही दूर पर वो पुण्य भूमि है जहां की मिटटी आस्था की खुशबु का एहसास कराती है ! कोरकोमा गाँव के भीतर से एक कच्चे रास्ते पर हमारी कार धुल उड़ाती उस पहाड़ की ओर बढ़ रही थी जहां देवो के देव महादेव विराजमान है ! पहाड़ से करीब ५०० मीटर की दूरी पर ही हमको अपनी गाडी छोड़नी पड़ी....कच्चे और पथरीले रास्ते पर हमने आगे बढ़ना शुरू किया ही था की महादेव के भक्तो की भीड़ नजर आना शुरू हो गई,भक्तो के हाथों की मुठ्ठी में मुरादे बंद थी और आँखों में त्रिकालदर्शी के दर्शनों की लालसा ! हजारो मीटर की उन्चैया चढ़कर नीचे उतरे भक्त इसलिए खुश थे क्यूंकि भोले बाबा के दर पर मुरादों की अर्जी सुनवाई के लिए लगा आये है आज नही तो कल मनोकामनाए जरूर पूरी हो जाएगी ऐसा विश्वास है !  हमने भी उस त्रिपुरारी के जयकारे मन ही मन लगाये और ऊँची पहाडियों पर चढ़ने लगे ! .....
                                 एकदम सीधी ऊंचाई,पैर फिसले तो सैकड़ो मीटर नीचे खाई  में....मगर पहाड़ पर बैठे महादेव की कृपा ही है कि भक्तो के पाँव कभी ना फिसलते है ना डगमगाते है ! सांस फुल गई मगर शिवशम्भू के दर पर मथ्था टेकने और उस कैलाश गुफा के दर्शन की अभिलाषा ने बढ़ाते कदमो में रुकावट नही खड़ी होने दी ! पहाड़ पर बैठे  कैलाश के दर पर जैसे ही नजरे पड़ी ऐसा लगा मानो सर्वोच्च परालौकिक शक्ति ने इस पूरे इलाके में सुख,समृधि और शांति का वरदान दे रखा हो ! वैसे भी परमेश्वर को इस संसार का सृष्टा और शासक माना जाता है ! 
      शंकर खोला तो कोई कैलाश गुफा के नाम से इस पवित्र और सिध्ध धाम को जानता है ! हजारो साल पुराना अतीत जितना सिध्ध और समृद्ध बताया जाता है वर्तमान भी उतना ही फलदायक है ! भगवान् शंकर के भक्त बड़ी ही उम्मीदों और विश्वास के हौसलों को लिए यहाँ आते है,कोई निराश नही होता ! जी हाँ ....कहते है इस दर पर सच्चे मन से मांगी गई मुराद पूरी होती है...! कहते है इस दरबार से खाली हाथ कोई नही लौटा....! गुफा के भीतर ब्रम्हा,विष्णु महेश भी विराजित है ! साल के बारहों महीने इस पहाड़ी से मांदर,शंख और घंटियों की आवाज़ दूर-दूर तक सुनाई पड़ती है ! कई मान्यताये,कई धार्मिक बाते इस बात का प्रमाण देती है की ये भूमि ऋषि मुनियों की तपो भूमि रही है ! यहां सुतिष्ण मुनि ने कइयो साल तक तपस्या की !  
          कहते है शंकर खोला में रखे एक पत्थर का उल्लेख वाल्मीकि रामायण के अरण्यकाण्ड में है ! जानकार कहते है भगवान् राम ने वनवास के दौरान इन गुफाओ के इर्द-गिर्द समय बीताया था ! भगवान् राम को इन्ही गुफाओं के भीतर सुतिष्ण मुनि तपस्या करते दिखे थे ! इस गुफा के भीतर एक ओर से जाकर दूसरी तरफ से निकलने के पीछे भी कई मान्यताये है ! कहते है इंसान के कैसे भी कष्ट हो,कैसी भी बीमारी हो सात बार इस गुफा की परिक्रमा कर लेने के बाद सारे कष्ट,सारी तकलीफ दूर हो जाती है ! यहाँ कभी एक विशाल आम का पेड़ हुआ करता था,प्राक्रतिक आपदा ने उस पेड़ की  बलि ले ली...! उस जगह पर भी सुबह-शाम पूजा की जाती है क्यूंकि उस पुराने आम के पेड़ के पीछे भी कई किवदंतियां जुडी हुई है ! 
                   कैलाश गुफा के ऊपर चट्टानों की ऊंचाई कई एतिहासिक और धार्मिक प्रमाण देती है ! हमने भगवान् ब्रम्हा,विष्णु और महेश से सभी के सुख,समृधि और शांति की मनोकामना मांगने के बाद ऊपर चटानो का रुख किया ! यहाँ पहुंचकर लगा धरती और आकाश के बीच कोई है तो बस हम ! ऊंचाई से कोरबा के प्रदुषण का विहंगम नजारा,ऊँची चिमनियो से निकलता जहर विकास की कहानी कह रहा था लेकिन हम उस वक्त की कल्पना मात्र से आनंदीत हो उठे जब हमारी कईयों पीढ़ियों ने इस धरती पर जन्म ही नही लिया होगा ! यहाँ पहुंचे एक नवजवान ने हमें बताया इस जगह पर उस वाहन के पहियों के निशान मिलते है जिसमे रावण ने माता सीता का अपहरण किया था,यहाँ वो लक्षमण रेखा भी दीखाई पड़ती है जिसे माता सीता की रक्षा के लिए लक्षमण ने खींची थी,हालांकि इस बात के प्रमाण आज भी खोजे जा रहे है...! इस पहाड़ के चारो ओर का मनोरम नजारा हर भक्त से कुछ देर रुकने की मनुहार करता है, इन पथरीले पहाडो पर मौसमी फूलो की इठलाहट देखते ही बनती है ! यहाँ पर कुछ लोगो ने बताया एक चीलम गुफा है जहां बारहों महीने पानी भरा रहता है,कहते है ये पानी उस नवतपा में भी नही सूखता ! इस धाम के दर्शन करके मै तो धन्य हो गया...!  
         मै आस्तिक हूँ मगर आस्था के नाम पर ढोंग करने से परहेज रखता हूँ ! मैंने यहाँ कई बाते ऍसी गौर की जिसे देखकर लगा लोग कई बार आस्था के नाम पर कारोबार करना चाहते है ,वैसे आजकल तो ये फैशन में भी शामिल है ! खैर बेकार की बातो को मै क्यूँ सोच रहा हूँ, इश्वर वो शक्ति है जिससे सारा संसार चलता है ! इश्वर ही तो है जिसकी कृपा से अलग अलग फूलों मे अलग अलग सुगन्ध आती है जबकि एक ही मिट्टी और पानी मे वे बडे होते है। ये सोचता हुआ मै पहाड़ से नीचे उतरने लगा ! इस पवित्र भूमि पर पहाड़ की ऊंचाई में कई छोटे मन्दिर है,एक यज्ञ शाला भी है जहां नवरात्री और सावन के महीने में हवं अनुष्ठान होते है ! हमें यहाँ एक कुंद नजर आया जिससे हमेशा पानी की धार बहती है हालाकि लोगो ने उस प्राक्रतिक पानी के स्वरुप की शक्ल बिगाड़ दी है !चारो ओर पहाड़,हरियाली और ऊँचे-ऊँचे पेड़....सैकड़ो लोगो की मौजूदगी के बाद भी शाति का एह्साह....! कम ही जगह मिलता है ऐसा सकून जहां पहुंचते ही इंसानियत के मायने याद आ जाते हो ! जहां की तपोभूमि हमें जाति धर्म के झगड़ो से दूर रहने की नसीहत देती हो....मै मानता हूँ आज का दिन मेरे लिए कुछ ज्यादा ही ख़ास रहा क्यूंकि मै सुबह से जिस परमात्मा के विषय में सोच रहा था उसके करीब से दर्शन हो गये....! कब सुबह से शाम हो गई पता ही नही चला,ना चाहते हुए भी लौटना पड़ रहा है ! मै फिर इस त्रिकाल के दर्शन करने जल्दी ही आऊंगा...............मन में इस बात को सोचकर वापस लौट गया हूँ मगर यहाँ दुबारा कब आऊंगा वक्त उस कैलाश को पता है............!  

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