जब देवों के राजा कहे जाने वाले इंद्र ने गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या के साथ बलात्कार किया था तब भी यह समाज चुप था। शिला सी बन जाने की सज़ा अहिल्या को ही मिली थी।
जब द्वापर में भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण हो रहा था, तब भी ये समाज चुप था, अगर तभी समाज ने विरोध किया होता और दुःशासन के हाथ काट दिए होते तो शायद आज देश में इतने सारे दुःशासन जन्म नहीं लेते।कृष्ण ने कहा था कि जब-जब इस धरती पर अधर्म बढ़ेगा तब-तब वो धर्म के उत्थान के लिए जन्म लेंगे। क्या भगवान के लिए भी अब तक इस युग में अधर्म की अति नहीं हुई है?भारत को तो संस्कारों और रीति-रिवाजों का देश कहा जाता है, फिर इसके बेटों के खून में इतनी गंदगी कहां से आ गई है? पुरुषों का एक तबका ऐसा है जो बलात्कार कर लेने में अपनी मर्दानगी समझता है तो दूसरा तबका अपनी आंखों के सामने घटती घटनाओं से मुंह फेर लेने और चुप्पी साधे रखने में समझदारी मानता है।
यक़ीनन यही बात है की खामोश समाज के बीच सियासत के ताने-बाने बुनने वाले उस मदारी की भूमिका में है जिसके इशारे पर रस्सी में बंधा बन्दर करतब दिखाता है ! इस तर्क को देने के पीछे मेरा मकसद सिर्फ इतना है की समाज अगर जागने की भूमिका अदा करता तो २१ वीं सदी में न उस द्वापर युग की याद दिलानी पड़ती न कृष्ण के उस धर्म-अधर्म के ज्ञान को दोहराना पड़ता ! आज पूरे देश में बेटी बचाओ,उसकी अस्मिता की रक्षा करो जैसे कई शोर अलग-अलग जुबानो से मुखर हो रहे है !
कल १७ जनवरी को कोरबा जिले के प्रभारी और छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासी बाहुल्य कहे जाने वाले सूबे के कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू ने सरस्वती शिशु मंदिर में पढने वाली कन्याओं के चरण धोकर बेटियों के महत्तव को बताया ! दिल्ली की घटना के बाद तकरीबन हर तबके के लोग जागने की भूमिका में है ! फिर भी कांकेर के आदवासी आश्रम में रहने वाली मासूमों के साथ पिछले एक साल से जो हो रहा था वो इस समाज के बीच रहने वाले दुह्शासनों की हकीकत ब्यान करने के लिए काफी है ! मामला सामने आया तो डॉक्टर की सरकार को बेटियों की रक्षा और उनके बचाव के ख़याल सताने लगे ! चंद्रशेखर साहू के उस कार्यक्रम में सरस्वती शिशु मंदिर प्रबंधन ने एक परचा बांटा जिस पर बालिका सुरक्षा का संकल्प अंकित है ! इस पोस्ट पर बेटियों के उस संकल्प की एक प्रति मैंने चस्पा की है ! अचानक बेटियों में दुर्गा,सरस्वती,अन्नपुर्णा की सूरत दिखाई देने लगी ! सरकार के नुमाइंदों और उससे जुड़े आनुसांगिक संगठनों को अचानक ये ख्याल आया की बेटी है तो मनुष्य है,संसार है ! कन्या भ्रूण हत्या को रोकने की याद ९ साल की सत्ता संभालने के बाद आई ! अच्छी बात है बेटियों की देवियों से तुलना की गई पर इसमे कोई नयापन नही था पर सियासत की दलदल में गड़े जनतंत्र के देवताओं को रूप बदलने में कितना वक्त लगता है ?
सबसे बड़ी बात ये की मिडिया के पूछने पर डाक्टर के उस कंपाउडर ने बेटियों की सुरक्षा के संकल्प को अपनी डिसपेंसरी की दवा बताने से परहेज रखा ! मतलब साफ़ है की इस राज्य के जनतंत्र के सवा दो करोड़ अम्पायरों के बीच बल्लेबाजी का जौहर दिखाती डाक्टर की टीम का ऐसा कोई इरादा नही है की सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों में बालिका सुरक्षा को लेकर कोई संकल्प दिलाया जाये ! वैसे भी सरस्वती शिशु मंदिर आर.एस.एस.की कर्मस्थली का एक छोटा सा अखाडा है ! उस अखाड़े की बेटियों की सुरक्षा के लिए संकल्प लेकर चरण पखाजे गए ! जनतंत्र के सवा दो करोड़ अम्पायरों की नजर सियासी पिच पर बिन हेलमेट के खेली जा रही क्रिकेट पर है ,ऐसे में टीम डाक्टर की हो या फिर किसी संत-महंत की फैसला आने वाले दिनों में होना ही है की पंचवर्षीय टेस्ट मैच का खिताब किसके नाम होगा !