Friday, January 11, 2013

...ये भी तो किसी की बेटियाँ है !


"दामिनी"..... एक काल्पनिक नाम ! हर कोई वाकिफ हो चूका है दामिनी से ! सबने देखा है दामिनी के बुलंद इरादों को ! सबने महसूस किया है दामिनी के दर्द को ! करीब दो सप्ताह तक दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल से लेकर सिंगापूर के एलीजाबेथ जैसे नामचीन अस्पताल में डाक्टरों की कोशिश जारी रही की दामिनी की जिन्दा रहने की खवाहिश पूरी हो सके ! मगर सारी कोशिशे नाकाम रही ! न दुआ काम आई न दवा ने ज्यादा दिनों तक दामिनी का साथ दिया ! दामिनी के साथ हुए वाकये पर देश कईयों दिन तक उबाल मारता रहा ! जगह -जगह महिला हितो के नारों के बीच उन ६ दरिंदों को फांसी की सजा देने का शोर कान में घुसता रहा लगा जैसे जल्द ही कोई बदलाव की खबर उस दर्द और देश की जानता की भावना को राहत देगी और दिल्ली के दरिंदो की कहानी फिर इस मुल्क में कहीं नही दोहराई जायेगी ! मगर देश के हालत को देखकर मेरी ये सोच जल्द ही बदल गई ! जब मशाले जलाने का वक्त था तो देश भर में केवल मोमबत्तियां जलाई गई ! जिसको जैसे बन सका दामिनी के लिए संवेदना जाहिर करता दिखा ! देश के कईयों सियासी घडियालों ने भी आँख में पानी होने का सबूत दे डाला ! कभी मनमोहन तो कभी सोनिया तो कभी सुशिल कुमार शिंदे को बताना पड़ा की वे भी बेटियों के बाप है ! खूब बहस हुई,बड़े -बड़े विदवजजनों को कईयों दिन तक मै टी.वी. पर सुनता रहता ! लगा दामिनी सबको जगा गई है,फिर मुझे लगा मिडिया न होता तो कौन सी दामिनी और कौन से दरिन्दे ? कुछ भी पता नही चलता,कईयों दामिनी आज भी इस देश में दर्द्द से कराहती हुई इन्साफ की उम्मीद में दम तोड़ रही है मगर उनके लिए न मोमबत्तियां है ना नेता ये कहने के लिए सामने आते की वो भी बेटियों के बाप है ! 
                        पिछले कुछ दिनों से मै एक बात पर काफी देर तक सोचता हूँ की क्या मेरे राज्य के कांकेर जिले के झालियामारी आश्रम में रहने वाली मासूम बच्चियां किसी की बेटी नही है ? क्या केवल सियासी मुद्दे के लिए उन बेटियों का इस्तेमाल किया जा रहा है जिनके साथ पिछले एक साल से गेंगरेप हो रहा था ! ३० से अधिक मासूम बच्चियों के साथ दरिंदगी का नंगा खेल चलता रहा और किसी को मासूमो के चीत्कार का एहसास तक न हो सका ! किसी ने इनके दर्द पर मरहम लगाने के नाम पर या फिर इनके साथ हैवानियत करने वालों के खिलाफ आवाज़ तल्ख़ नही की ! शायद मामला दिल्ली का नही था या यूँ कहूँ की खबर लोकल अखबारों और चैनलों तक ही सीमित थी ! आदिवासी मासूमों के साथ गैंगरेप हुआ वो भी एक बार दो बार या फिर दस बार नही पूरे एक साल तक ! खबर तो ये भी है की एक मासूम उन दरिंदों का शिकार कक्षा पहली से होती रही ! पर इनके नाम पर कोई मोमबत्ती नही जली,कोई प्रदर्शन नही हुआ ! जो कुछ हुआ सियासी चाल का एक हिस्सा था पर उन मासूमों के दर्द पर किसी के दिल में रत्ती मात्र की कोफ़्त हुई हो पूरे राज्य में नहीं दिखाई पड़ा ! 
                         मामला सामने आया तो सरकार ने आश्रम कर्मियों की बर्खास्तगी का आदेश जारी कर दिया ! सियासतदारों को सत्ता पक्ष पर मुह फाड़ने का एक मौका मिल गया ! बारी-बारी से सियासतदारों का आश्रम जाकर मासूमो का हाल-जान्ने के बहाने उनके घाव को कुरेदने का मौका मिल गया ! कांकेर की घटना ने समाज में छिपे दरिंदो की हकीकत तो उजागर की ही साथ ही उन सियासी मगर मचछों की फरेब और दोगली सूरत को आइना दिखा दिया ! मासूमों के दर्द पर कोई क्या मरहम लगाएगा ! जो जख्म है वो ताउम्र का घाव है जिनको भरने का काम सिर्फ और सिर्फ मौत नाम का मल्हम ही कर सकता है ! 

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