Wednesday, April 4, 2012

गाँव में कनकेश्वर महादेव...!


                               छत्तीसगढ़ भारत का एक राज्य है। छत्तीसगढ़ राज्य का गठन नवंबर २००० को हुआ था। यह भारत का २६वां राज्य है  भारत में दो क्षेत्र ऐसे हैं जिनका नाम विशेष कारणों से बदल गया - एक तो 'मगध' जो बौद्ध विहारों की अधिकता के कारण "बिहार" बन गया और दूसरा 'दक्षिण कौशल' जो छत्तीस गढ़ों को अपने में समाहित रखने के कारण "छत्तीसगढ़" बन गया। किन्तु ये दोनों ही क्षेत्र अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारत को गौरवान्वित करते रहे हैं। "छत्तीसगढ़" तो वैदिक और पौराणिक काल से ही विभिन्न संस्कृतियों के विकास का केन्द्र रहा है। यहाँ के प्राचीन मन्दिर तथा उनके भग्नावशेष इंगित करते हैं कि यहाँ पर वैष्णवशैवशाक्तबौद्ध के साथ ही अनेकों आर्य तथा अनार्य संस्कृतियों का विभिन्न कालों में प्रभाव रहा है।  यह प्रदेश ऊँची नीची पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ घने जंगलों वाला राज्य है। यहाँ साल, सागौन, साजा और बीजा और बाँस के वृक्षों की अधिकता है। छत्तीसगढ़ क्षेत्र के बीच में महानदी और उसकी सहायक नदियाँ एक विशाल और उपजाऊ मैदान का निर्माण करती हैं !  छत्तीसगढ़ प्राचीनकाल के दक्षिण कोशल का एक हिस्सा है और इसका इतिहास पौराणिक काल तक पीछे की ओर चला जाता है। पौराणिक काल का 'कोशल' प्रदेश, कालान्तर में 'उत्तर कोशल' और 'दक्षिण कोशल' नाम से दो भागों में विभक्त हो गया था इसी का 'दक्षिण कोशल' वर्तमान छत्तीसगढ़ कहलाता है।   वाल्मीकि रामायण में भी छत्तीसगढ़ के बीहड़ वनों तथा महानदी का स्पष्ट विवरण है। सिहावा पर्वत के आश्रम में निवास करने वाले श्रृंगी ऋषि ने ही अयोध्या में राजा दशरथ के यहाँ पुत्र्येष्टि यज्ञ करवाया था जिससे कि तीनों भाइयों सहित भगवान श्री राम का पृथ्वी पर अवतार हुआ। राम के काल में यहाँ के वनों में ऋषि-मुनि-तपस्वी आश्रम बना कर निवास करते थे और अपने वनवास की अवधि में राम यहाँ आये थे।दक्षिण-कौसल की राजधानी सिरपुर थी। बौद्ध धर्म की महायान शाखा के संस्थापक बोधिसत्व नागार्जुन का आश्रम सिरपुर (श्रीपुर) में ही था। इस समय छत्तीसगढ़ पर सातवाहन वंश की एक शाखा का शासन था। महाकवि कालिदास का जन्म भी छत्तीसगढ़ में हुआ माना जाता है। प्राचीन काल में दक्षिण-कौसल के नाम से प्रसिद्ध इस प्रदेश में मौर्यों, सातवाहनों, वकाटकों, गुप्तों, राजर्षितुल्य कुल, शरभपुरीय वंशों, सोमवंशियों, नल वंशियों, कलचुरियों का शासन था।       छत्तीसगढ़ भारत का एक राज्य है। छत्तीसगढ़ राज्य का गठन नवंबर २००० को हुआ था। यह भारत का २६वां राज्य है  भारत में दो क्षेत्र ऐसे हैं जिनका नाम विशेष कारणों से बदल गया - एक तो 'मगध' जो बौद्ध विहारों की अधिकता के कारण "बिहार" बन गया और दूसरा 'दक्षिण कौशल' जो छत्तीस गढ़ों को अपने में समाहित रखने के कारण "छत्तीसगढ़" बन गया। किन्तु ये दोनों ही क्षेत्र अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारत को गौरवान्वित करते रहे हैं। "छत्तीसगढ़" तो वैदिक और पौराणिक काल से ही विभिन्न संस्कृतियों के विकास का केन्द्र रहा है। यहाँ के प्राचीन मन्दिर तथा उनके भग्नावशेष इंगित करते हैं कि यहाँ पर वैष्णवशैवशाक्तबौद्ध के साथ ही अनेकों आर्य तथा अनार्य संस्कृतियों का विभिन्न कालों में प्रभाव रहा है।  यह प्रदेश ऊँची नीची पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ घने जंगलों वाला राज्य है। यहाँ साल, सागौन, साजा और बीजा और बाँस के वृक्षों की अधिकता है। छत्तीसगढ़ क्षेत्र के बीच में महानदी और उसकी सहायक नदियाँ एक विशाल और उपजाऊ मैदान का निर्माण करती हैं !  छत्तीसगढ़ प्राचीनकाल के दक्षिण कोशल का एक हिस्सा है और इसका इतिहास पौराणिक काल तक पीछे की ओर चला जाता है। पौराणिक काल का 'कोशल' प्रदेश, कालान्तर में 'उत्तर कोशल' और 'दक्षिण कोशल' नाम से दो भागों में विभक्त हो गया था इसी का 'दक्षिण कोशल' वर्तमान छत्तीसगढ़ कहलाता है।   वाल्मीकि रामायण में भी छत्तीसगढ़ के बीहड़ वनों तथा महानदी का स्पष्ट विवरण है। सिहावा पर्वत के आश्रम में निवास करने वाले श्रृंगी ऋषि ने ही अयोध्या में राजा दशरथ के यहाँ पुत्र्येष्टि यज्ञ करवाया था जिससे कि तीनों भाइयों सहित भगवान श्री राम का पृथ्वी पर अवतार हुआ। राम के काल में यहाँ के वनों में ऋषि-मुनि-तपस्वी आश्रम बना कर निवास करते थे और अपने वनवास की अवधि में राम यहाँ आये थे। दक्षिण-कौसल की राजधानी सिरपुर थी। बौद्ध धर्म की महायान शाखा के संस्थापक बोधिसत्व नागार्जुन का आश्रम सिरपुर (श्रीपुर) में ही था। इस समय छत्तीसगढ़ पर सातवाहन वंश की एक शाखा का शासन था। महाकवि कालिदास का जन्म भी छत्तीसगढ़ में हुआ माना जाता है। प्राचीन काल में दक्षिण-कौसल के नाम से प्रसिद्ध इस प्रदेश में मौर्यों, सातवाहनों, वकाटकों, गुप्तों, राजर्षितुल्य कुल, शरभपुरीय वंशों, सोमवंशियों, नल वंशियों, कलचुरियों का शासन था। 
            आज यात्रा की इस कड़ी में हम आपको उस धाम लेकर जा रहे है जहां भगवान भोले भंडारी की महिमा से पूरे इलाके में शांति,समृधि और वैभव की अलख जल रही है ! कोरबा से करीब ३० किलोमीटर दूर नहर के रास्ते चलकर कनकी गाँव पहुंचा जाता है ! सर्वमंगला देवी के मन्दिर के पास से गुजरी नहर किसानो की जीवनदायनी है,इसी रासे हम कनकी पहुंचे जहां कनकेश्वर महादेव का सदियों पुराना मन्दिर है हालाकि बदलते वक्त ने मन्दिर की शल्को-सूरत पर आधुनिकता की रंगत बिखेर रखी है जो अनायास ही भक्तो को अपनी ओर खींचती है ! गाँव में शान्ति नजर आती है,कहते है भगवान् शिव की कृपा है ! महादेव के दर्शन की लालसा कहे या फिर उस धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं को करीब से देखने की इच्छा ने इस पावन धरा पर काफी वक्त तक रोके रखा ! कहते है कनकेश्वर महादेव के दर पर आते ही इंसान के जीवन में कष्टों की लम्बी-चौड़ी फेहरिस्त कम होती चली जाती है ! भक्ति की अविरल धारा के बीच भक्तो की कतार में मै भी त्रिकाल के दर्शनों को आतुर था,महादेव की मर्जी के बिना दरबार के भीतर जाना इंसान के बस की बात नही है ! बुलावा आया तो मैंने भी शिव-शम्भू के करीब जाकर मन की मुरादे मन-ही मन कह डाली ! मुरादों की अर्जी लगी है,पूरी होगी बरसो से आने वाले भक्त कहते है
                                      ये  शिवलिंग धरती से प्रकट हुआ है,गाँव के लोग और पुजारी की माने तो इस शिवलिंग से सदियों पुरानी एक कहानी जुडी हुई है ! कहते है सैकड़ो साल पहले इस गाँव में बैजू यादव नाम का एक ग्वाला रहा करता था,उसकी एक गाय थी जो अपने बछड़े को दूध नही पिलाती थी,बैजू इस बात से काफी परेशान था की आखिर क्या वजह है की एक माँ अपने बच्चे को दूध नही पीला रही है ! एक दिन बाजु अपनी गाय के पीछे-पीछे उस जगह पर पहुँच गया जहां उसकी गाय जाकर दूध गिरा दिया करती थी ! बैजू को बात समझ नही आई उसने उस जगह पर लाठियों से पीटना शुरू किया और अपनी गाय को मारता हुआ घर ले आया ! उसी रात बैजू को सपना आया जिसमे उस जगह पर शिवलिंग होने की बात थी ! अगले दिन बैजू ने उस जगह पर खुदाई शुरू करवाई जहां उसकी गाय दूध गिरा दिया करती थी ! देखते-ही-देखते बैजू की आँखे चौधियां गई,उसकी आँखों के सामने एक विशाल सा शिवलिंग था जिसका उपरी हिस्सा टुटा हुआ था ! खवाब हकीकत में बदल चूका था,बैजू को लगा भगवान् ने उसके सारे कष्टों को हर लिया ! गाँव में ख़ुशी की फिजा का शोर दूर-दूर तक सुनाई पड़ने लगा,उसी जगह पर विधिवत पूजा-पाठ कर शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा की गई
                                       सदिया बीत गई,... गाँव में कनकेश्वर महादेव की कृपा से कभी भी विपत्तियों का पहाड़ नही टुटा ! यहाँ बारहों महीने भक्तो की भीड़ त्रिकाल के दर्शनों को आतुर दिखाई पड़ती है ! सावन में मेला लगता है तो महाशिवरात्रि में कई किलोमीटर दूर तक भक्तो की कतार कनकेश्वर महादेव के दर्शनों को आतुर दिखाई पड़ती है ! यहाँ एक और प्राचीन शिवलिंग है  जिसको घुमाने से इंसानों के अच्छे-बुरे होने का प्रमाण मिलता है ! मैंने भी अपनी हकीकत को आजमाया,हर-हर महादेव कहकर उस शिवलिंग को घुमाने लगा जो अच्छे बुरे होने का प्रमाण देता है ! आत्मा अच्छी हो,मन अच्छा हो तो भगवान् भी साथ होते है ये एहसास मुझे कनकेश्वर धाम में हुआ ! गाँव में यादवो की एक बड़ी बस्ती है जिसमे बैजू के परिवार से नाता रखने वाली एकदम नई पीढ़ी भी निवास करती है ! मन्दिर की देखरेख,पूजा पाठ का जिम्मा बैजू यादव के परिवार की नई पीढ़ी कर रही है ! कनकेश्वर महादेव की महिमा अपरमपार है,गाँव में पानी सैकड़ो फिट की खुदाई के बाद भी नही निकल पाता लेकिन शिवलिंग में दिखाई पड़ता पानी कभी ख़त्म नही होता ! कहते है इस पानी का संपर्क सीधे पातळ लोक से है ! भक्त जानते है दमरुवाले के इस दरबार से कभी निराशा नही मिलती तभी तो हजारो किलोमीटर की दूरी से भी चलकर भक्त ग्राम कनकी पहुँचते है ! कनकेश्वर महादेव की महीमा निराली है,कहा तो ये भी जाता है की भक्त अपने मन की बात नंदी बाबा के कान में धीरे से कह देते है और नंदी बाबा उस बात को अपने स्वामी भगवान् शंकर को पहुंचा देते है
                        गाँव से कल्चुरिकालीन मुर्तिया भी मिली है जिन्हें कनकेश्वर महादेव के मदिर में ही खुले आसमान के नीचे रख दिया गया है ! कुछ मूर्तियों को मन्दिर के पट पर तो कुछ को मन्दिर की दीवारों पर लगाया गया है ! इस अनमोल खजाने की हिफाजत का जिम्मा पुरात्तव विभाग ने ले रखा है मगर हमको इस पवित्र धाम में ना प्राचीन मूर्तियों के संरक्षण के कोई प्रयास नजर आये ना ही इस शिवलिंग को बचाने की कोशिशे दिखाई पड़ी ! यहाँ के पुजारी ने बताया की हजारो साल पुराने इस शिवलिंग में कई बारिक छिद्र हो चुके है,शिवलिंग धीरे-धीरे घिस रहा है अगर समय रहते इस प्राचीन धरोहर को नही नही बचाया गया तो एक ओर जहां भक्तो की आस्था पर सीधे चोट पड़ेगी वही उस इतिहास का एक पन्ना हमेशा के लिए इस धरा से विलुप्त हो जायेगा जिसे बैजू की कई पीढियां बताते नही थकती
                         गाँव के लोग बताते है पिछले कई सालो से प्रवासी पक्षियों का झुण्ड बारिश के मौसम में आता है और गर्मी के मौसम से पहले ही वापस अपने स्थाई ठिकानों की ओर लौट जाता है ! महादेव के मन्दिर के इर्द-गिर्द कई पेड़ है जिनमे से कुछ पर प्रवासी पक्षी रहते है,ये घोसले उन्ही ओपन बिल्ड स्टार्क नाम के पक्षी के है ! गाँव के लोग प्रवासी पक्षियों के आगमन को शुभ मानते है ! गाँव में सम्पन्नता की मिसाल बने प्रवासी पक्षियों के बारे कहा जाता है की वो गोंघा जैसे कई जीव को खाते है ! जिन जीवो से फसलो को नुक्सान पहुँचने का खतरा होता है वो जीव प्रवासी पक्षियों का प्रिय भोजन है ! कहते है उन पक्षियों की हिफाजत के लिए वन महकमे ने पेडो पर कंटीले तार लगा रखे है ! गाँव के लोग उन पक्षियों की सुरक्षा को अपना नैतिक धरम मानते है ! यहाँ सब कुछ भोले की कृपा से होता है,हजारो किलोमीटर की दूरी तय कर आकाश के रास्ते प्रवासी पक्षी यहाँ हर साल आते है और भक्त नहर के रास्ते यहाँ पहुंचकर उस धार्मिक मान्यता को करीब से महसूस करते है जिसको बताते-बताते बैजू के परिवार की कई पीढ़िया स्वर्गलोक सिधार गई !       

                                           आज यात्रा की इस कड़ी में हम आपको उस धाम लेकर जा रहे है जहां भगवान भोले भंडारी की महिमा से पूरे इलाके में शांति,समृधि और वैभव की अलख जल रही है ! कोरबा से करीब ३० किलोमीटर दूर नहर के रास्ते चलकर कनकी गाँव पहुंचा जाता है ! सर्वमंगला देवी के मन्दिर के पास से गुजरी नहर किसानो की जीवनदायनी है,इसी रासे हम कनकी पहुंचे जहां कनकेश्वर महादेव का सदियों पुराना मन्दिर है हालाकि बदलते वक्त ने मन्दिर की शल्को-सूरत पर आधुनिकता की रंगत बिखेर रखी है जो अनायास ही भक्तो को अपनी ओर खींचती है ! गाँव में शान्ति नजर आती है,कहते है भगवान् शिव की कृपा है ! महादेव के दर्शन की लालसा कहे या फिर उस धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं को करीब से देखने की इच्छा ने इस पावन धरा पर काफी वक्त तक रोके रखा ! कहते है कनकेश्वर महादेव के दर पर आते ही इंसान के जीवन में कष्टों की लम्बी-चौड़ी फेहरिस्त कम होती चली जाती है ! भक्ति की अविरल धारा के बीच भक्तो की कतार में मै भी त्रिकाल के दर्शनों को आतुर था,महादेव की मर्जी के बिना दरबार के भीतर जाना इंसान के बस की बात नही है ! बुलावा आया तो मैंने भी शिव-शम्भू के करीब जाकर मन की मुरादे मन-ही मन कह डाली ! मुरादों की अर्जी लगी है,पूरी होगी बरसो से आने वाले भक्त कहते है
                                      ये  शिवलिंग धरती से प्रकट हुआ है,गाँव के लोग और पुजारी की माने तो इस शिवलिंग से सदियों पुरानी एक कहानी जुडी हुई है ! कहते है सैकड़ो साल पहले इस गाँव में बैजू यादव नाम का एक ग्वाला रहा करता था,उसकी एक गाय थी जो अपने बछड़े को दूध नही पिलाती थी,बैजू इस बात से काफी परेशान था की आखिर क्या वजह है की एक माँ अपने बच्चे को दूध नही पीला रही है ! एक दिन बाजु अपनी गाय के पीछे-पीछे उस जगह पर पहुँच गया जहां उसकी गाय जाकर दूध गिरा दिया करती थी ! बैजू को बात समझ नही आई उसने उस जगह पर लाठियों से पीटना शुरू किया और अपनी गाय को मारता हुआ घर ले आया ! उसी रात बैजू को सपना आया जिसमे उस जगह पर शिवलिंग होने की बात थी ! अगले दिन बैजू ने उस जगह पर खुदाई शुरू करवाई जहां उसकी गाय दूध गिरा दिया करती थी ! देखते-ही-देखते बैजू की आँखे चौधियां गई,उसकी आँखों के सामने एक विशाल सा शिवलिंग था जिसका उपरी हिस्सा टुटा हुआ था ! खवाब हकीकत में बदल चूका था,बैजू को लगा भगवान् ने उसके सारे कष्टों को हर लिया ! गाँव में ख़ुशी की फिजा का शोर दूर-दूर तक सुनाई पड़ने लगा,उसी जगह पर विधिवत पूजा-पाठ कर शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा की गई
                                       सदिया बीत गई,... गाँव में कनकेश्वर महादेव की कृपा से कभी भी विपत्तियों का पहाड़ नही टुटा ! यहाँ बारहों महीने भक्तो की भीड़ त्रिकाल के दर्शनों को आतुर दिखाई पड़ती है ! सावन में मेला लगता है तो महाशिवरात्रि में कई किलोमीटर दूर तक भक्तो की कतार कनकेश्वर महादेव के दर्शनों को आतुर दिखाई पड़ती है ! यहाँ एक और प्राचीन शिवलिंग है  जिसको घुमाने से इंसानों के अच्छे-बुरे होने का प्रमाण मिलता है ! मैंने भी अपनी हकीकत को आजमाया,हर-हर महादेव कहकर उस शिवलिंग को घुमाने लगा जो अच्छे बुरे होने का प्रमाण देता है ! आत्मा अच्छी हो,मन अच्छा हो तो भगवान् भी साथ होते है ये एहसास मुझे कनकेश्वर धाम में हुआ ! गाँव में यादवो की एक बड़ी बस्ती है जिसमे बैजू के परिवार से नाता रखने वाली एकदम नई पीढ़ी भी निवास करती है ! मन्दिर की देखरेख,पूजा पाठ का जिम्मा बैजू यादव के परिवार की नई पीढ़ी कर रही है ! कनकेश्वर महादेव की महिमा अपरमपार है,गाँव में पानी सैकड़ो फिट की खुदाई के बाद भी नही निकल पाता लेकिन शिवलिंग में दिखाई पड़ता पानी कभी ख़त्म नही होता ! कहते है इस पानी का संपर्क सीधे पातळ लोक से है ! भक्त जानते है दमरुवाले के इस दरबार से कभी निराशा नही मिलती तभी तो हजारो किलोमीटर की दूरी से भी चलकर भक्त ग्राम कनकी पहुँचते है ! कनकेश्वर महादेव की महीमा निराली है,कहा तो ये भी जाता है की भक्त अपने मन की बात नंदी बाबा के कान में धीरे से कह देते है और नंदी बाबा उस बात को अपने स्वामी भगवान् शंकर को पहुंचा देते है
                        गाँव से कल्चुरिकालीन मुर्तिया भी मिली है जिन्हें कनकेश्वर महादेव के मदिर में ही खुले आसमान के नीचे रख दिया गया है ! कुछ मूर्तियों को मन्दिर के पट पर तो कुछ को मन्दिर की दीवारों पर लगाया गया है ! इस अनमोल खजाने की हिफाजत का जिम्मा पुरात्तव विभाग ने ले रखा है मगर हमको इस पवित्र धाम में ना प्राचीन मूर्तियों के संरक्षण के कोई प्रयास नजर आये ना ही इस शिवलिंग को बचाने की कोशिशे दिखाई पड़ी ! यहाँ के पुजारी ने बताया की हजारो साल पुराने इस शिवलिंग में कई बारिक छिद्र हो चुके है,शिवलिंग धीरे-धीरे घिस रहा है अगर समय रहते इस प्राचीन धरोहर को नही नही बचाया गया तो एक ओर जहां भक्तो की आस्था पर सीधे चोट पड़ेगी वही उस इतिहास का एक पन्ना हमेशा के लिए इस धरा से विलुप्त हो जायेगा जिसे बैजू की कई पीढियां बताते नही थकती
                         गाँव के लोग बताते है पिछले कई सालो से प्रवासी पक्षियों का झुण्ड बारिश के मौसम में आता है और गर्मी के मौसम से पहले ही वापस अपने स्थाई ठिकानों की ओर लौट जाता है ! महादेव के मन्दिर के इर्द-गिर्द कई पेड़ है जिनमे से कुछ पर प्रवासी पक्षी रहते है,ये घोसले उन्ही ओपन बिल्ड स्टार्क नाम के पक्षी के है ! गाँव के लोग प्रवासी पक्षियों के आगमन को शुभ मानते है ! गाँव में सम्पन्नता की मिसाल बने प्रवासी पक्षियों के बारे कहा जाता है की वो गोंघा जैसे कई जीव को खाते है ! जिन जीवो से फसलो को नुक्सान पहुँचने का खतरा होता है वो जीव प्रवासी पक्षियों का प्रिय भोजन है ! कहते है उन पक्षियों की हिफाजत के लिए वन महकमे ने पेडो पर कंटीले तार लगा रखे है ! गाँव के लोग उन पक्षियों की सुरक्षा को अपना नैतिक धरम मानते है ! यहाँ सब कुछ भोले की कृपा से होता है,हजारो किलोमीटर की दूरी तय कर आकाश के रास्ते प्रवासी पक्षी यहाँ हर साल आते है और भक्त नहर के रास्ते यहाँ पहुंचकर उस धार्मिक मान्यता को करीब से महसूस करते है जिसको बताते-बताते बैजू के परिवार की कई पीढ़िया स्वर्गलोक सिधार गई !       

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