Monday, May 14, 2012

चामा जलप्रपात....


     नकाब से ढका चेहरा और उसमें से झिलमिलाती दो आंखें। गौर से देखने पर आप पाएंगे कि दुनिया को देखती उन आंखों में खुद की जमीन और आसमान तलाशने की ख्वाहिशें भरी हुई हैं। बदलते समय के साथ ख्वाहिशों के आसमान में कई मौसमों ने करवट ली,लेकिन ना खवाहिशे पूरी हुई ना उन ख्वाहिशो को पूरा करने की कभी कोशिशे की गई ! ये बाते आज मेरे जेहन में उस वक्त सवाल पर सवाल किये जा रही थी जब यात्रा की छोटी मगर अच्छी टीम नए मुकाम के लिए पूरे साजो सामान के साथ कटघोरा होते हुए जड्गा-पसान मार्ग की ओर बढ़ रही थी ! साजो सामान से मेरा आशय है खाने-पीने की चीजे ! मुझे लगा कोरबा जिला इतिहास के दृष्टिकोण से जितना महत्वपूर्ण है,प्राक्रतिक और पुरातात्विक महत्तव से भी राज्य के दूसरे शहरो से एकदम अलग है ! आज हम जड्गा-पसान मार्ग पर करीब २० किलोमीटर चलने के बाद राहा की ओर मूड गए ! दोनों ओर हरी-भरी वादियाँ मन को सकूँ दे रही थी और नई सडक पर गाडी की रफ़्तार जल्दी मंजिल तक पहुँचाने को आतुर थी ! मगर इस भीषण गर्मी में जितनी राहत इस जंगल में है मुझे नही लगता उतनी राहत और सकुनियत वातानुकूलित गाड़ियों,घरों में मिल पायेगा ! आज हम आपको ले चलेंगे चामा जलप्रपात....यक़ीनन आप में से कईयों ने नाम भी नही सुना होगा ! मैंने खुद साथियों की बदोलत चामा जलप्रपात का नाम सुना है,कुछ देर बाद देख भी लूँगा ! रास्ते की खूबसूरती का जिक्र ना करना बेमानी होगा और अपने कुछ साथियों की मस्ती का नजारा आपको ना दिखाओं तो मेरा मन नही मानेगा ! रास्ते में कही से आम तो कहीं से कटहल तोड़कर गाड़ी में जमा करते रहे ! एक जगह मुनगा का पेड़ भी मिल गया जिसे गाँव  वालो ने खराब होने की वजह से छोड़ दिया था उसे हमने तोड़ लिया ! यहीं पर पक्षियों का बड़ा झुण्ड पानी में अपने पेट के इंतजाम में जुटा हुआ था ,हमें देखकर वो आसमान की ऊंचाई की ओर बढ़ गए ! यहीं कुछ मवेशियों के आराम में हमारा कोई भी काम खलल नही डाल सका ! यहाँ से राहा किलोमीटर और दूर है वहां से हम उड़ान गाँव की ओर बढ़ गए !उडान  से हम उस कच्चे रास्ते पर चल पड़े है जो चामा जलप्रपात तक लेकर जाएगा ! इस पथरीले रास्ते में कई जगह ऐसा लगा गाडी अब आगे नही जायेगी,मगर ईमानदार चाह के आगे हम धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ते रहे ! काफी दूर चलने के बाद लगा हम गलत राह पर जा रहे है,ऊँची पहाड़ी से दूर एक बस्ती दिखाई पड़ी ! हमको लगा वहां तक पैदल चलकर मंजिल का सही पता पूछ लिया जाए,जंगल के रास्ते हम पैदल दूर उस बस्ती की ओर बढ़ गए जहां से हमको चामा जलप्रपात तक पहुँचने की जानकारी हासिल होगी ! कुछ देर बाद हम बस्ती पहुँच गए, आदिवासी बड़ी ही उत्सुकता और सहमी हुई नज़रों से हमें देखते रहे ! पूछने पर भटकी हुई राह की सही दिशा मिल गई ! बस क्या था बस्ती को पीछे छोड़ते हम आगे बढ़  गए  ! कुछ मिनटों के बाद ऊँची पहाड़ी से जो नजारा दिखाई दिया वो उन सवालों को फिर से जहन में दोहराने लगा जिसे मै कोरबा से निकलते वक्त सोच रहा था..?    
                                        इस  पहाड़ के नीचे है चामा जलप्रपात जिसकी भव्यता और प्राचीनता का उल्लेख करने के लिए कम से कम मेरे पास शब्द नही है ! मेरी टीम उस भव्यता और प्राक्रतिक मनोरमता के दीदार के लिए अब नीचे उतार रही है ! करीब १०० मीटर पहाड़ से नीचे उतरने में जितना मजा आया उससे कहीं ज्यादा आनंद और रोमांच का अनुभव इस जगह पर पहुंचकर हुआ जिसे चामा जलप्रपात के नाम से जाना जाता है ! दोनों ओर ९० फुट से ज्यादा ऊंचाई वाली चटानी पहाड़ी,बीच से कल-कल गिरते पानी का शोर फिलहाल उतना नही डराता जितनी डरावनी और विकराल सूरत इसकी बारिश के मौसम में हो जाती होगी ! इस कल्पना मात्र से शरीर में सिहरन पैदा होगी ! इस जलप्रपात की ऊंचाई और आस-पास की मनोरमता ने एक बार फिर कोरबा के वैभव और प्राकृतिक सम्पन्नता का सबूत दे दिया है ! कहते है इस प्राकृतिक जलप्रपात की उम्र का लेखा-जोखा सरकार के संस्कृति,पुरातत्त्व और पर्यटन मंत्रालय के पास भी नही है ! इसकी खूबसूरती को देखकर मुझे यकीन है की कोरबा जिले में इस तरह का दूसरा कोई भी और जलप्रपात नही होगा ! इसकी भव्यता को कैमरे की नजरो से बताना भी उतना ही कठिन है जितनी कठिनाई से हम इस जगह तक पहुंचे है ! वैसे मुझे जितना बताया गया है उस लिहाज से ये जलप्रपात पचमढ़ी के बी.फाल से काफी समानता रखता है ! हमने यहाँ की उन पथरीली चट्टानों को कभी छूकर,कभी बैठकर तो कभी उन पर चलकर देखा जो पानी ज्यादा होने पर किसी को नजर ही नही आती ! काफी चिकनी है ये चट्टानें...पैर फिसल जाए तो हडडी वाले डाक्टर की जरुरत पड़ जायेगी ! वैसे भी मेरी टीम की एक सदस्य के पाँव की मोच यात्रा की ही देन है ! दूर-दूर तक पथरीले रास्ते,इन रास्तो के जरिये बहता पानी ना जाने कितनी ही जिंदगियों की रोज प्यास बुझाता होगा ! इस मनोरम स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है मगर उपेक्षा की हद ही है की यहाँ तक गिने-चूने लोग ही पाते होंगे क्यूंकि इस जगह तक पहुंचना आसान नही है साथ ही कम ही लोग इस खूबसूरती से वाकिफ है ! हमने सरकार और पर्यटन विभाग की असलियत को मन ही मन महसूस किया और उस भगवान् की ओर देखने लगे जो इस पहाड़ पर किसी भक्त की आस्था की मेहरबानी से विराजमान है ! ऊँची पहाड़ी पर हवा में लहराता लाल धव्ज और भगवान् विश्वनाथ का बिन भक्तो के एकाकीपन सच में पीड़ादायक है ! हम कुछ कर नही सकते मजबूरी है फिर सोचते है शायद देखकर किसी को शर्म जाए और इस मनोरम स्थल के कायाकल्प के प्रयास शुरू हो जाएँ ? वैसे आज के जमाने में पानीदार लोगो की कमी है ! खैर यहाँ पर पहाड़ के ऊपर कुछ गुफाएं भी है जहां जंगली जानवर रहते है ! हम वक्त की कमी के चलते उन गुफाओ के करीब तक तो नही गये मगर यहाँ की फिजाओं मे जंगली जानवरों की मौजूदगी का आभास होता है ! हम लौटने के लिए पहाड़ चढ़ रहे है,जितना मजा नीचे उतारते वक्त आया था उससे कहीं ज्यादा कष्ट अब हो रहा है ! ले-दे कर सभी ऊपर गए है !
          यहाँ से निकले तो कुछ ही दूरी पर तीन घरों की अलग सी दुनिया नजर गई ,रूककर हमने देखा तो एक आदिवासी गीली मीट्टी से कुछ करने की कोशिश कर रहा था पूछने पर मालूम हुआ खपरा बना रहा है ! गरीबी है,जरूरतों का सामान तो दूर प्यास बुझने तक का इन्तेजाम नही है फिर भी आँगन में तुलसी मैया की हरियाली बताती है वो इसके साथ है ! यहाँ मुझे सरकार की बेहतर स्वास्थ्य  सुविधाओं का प्रमाण कुछ इस तरह से लटकता मिला ! हम यहाँ से थोडा आगे बढे तो एक झकझोर देनेवाला नजारा सियासत के हुक्मरानों का असल चेहरा दिखा गया...ये विकलांग नंगे पाँव पहाड़ चढ़ रहा है ताकि पानी की जरूरत पूरी हो सके ! क्या करूँ क्या ना करूँ ....? इस उहापोह में हम आगे बढ़ गए मगर कई बाते मन में उस सरकार की संवेदनशीलता पर सवाल खड़े करती रही जिन्होंने १० बरस तक सियासी कुर्सी पर बैठकर आखरी आदमी तक पहुँचने का दावा किया...! हम गर्दो गुबार उड़ाते हुए वापस लौट रहे है ! कुछ घंटो में शहर भी पहुँच जायेंगे मगर आँखों के सामने से जल्दी नही ओझल होगी इस यात्रा की कई यादे,कई बातें.........!  

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