Saturday, August 4, 2012

अन्ना...अब सियासत करेंगे !


बीते साल अगस्त का ही महीना था। रामलीला मैदान में अन्ना लगातार हुंकार भर रहे थे, सरकार-विपक्ष सब बिना तोप-तलवार के ही घुटनों पर थे। संसद ने एक मत से एक रिजोलूशन पास किया। ये मेरे लिए ही नहीं उन सबके लिए चौंकाने वाली चीज थी जिन्होंने जेपी और उनसे पहले के आंदोलनों को नहीं देखा। जिन्होंने नहीं देखा कि सरकारें हकीकत में संसद से सड़क तक किस तरह जनमत की मोहताज होती हैं। उसी मैदान में सही मायने में देश में एक तीसरी ताकत का उदय हुआ जिसे हम टीम अन्ना कहते हैं।
    तीसरी ताकत बनी टीम अन्ना ने भारतीय लोकतंत्र को झकझोरने वाले कई सवाल उठाए हैं जिनमें करप्शन रोकने के लिए जनलोकपाल शामिल है। बेशक लोगों ने ही नहीं, मीडिया ने भी उनके अभियान को हाथोंहाथ लिया। बीते साल जंतर-मंतर पर जब अन्ना, अनशन पर बैठे तो गुजरते घंटों के साथ वक्त के माथे पर ऐसी लकीर खिंचने लगी जिसने भारत के भविष्य में बड़े बदलाव समाए हुए थे। इस आंदोलन में अभी तक कुल तीन टर्निंग प्वाइंट आए हैं। पहले दो ने जनता और सरकार के बीच उनका लोहा मनवाया और तीसरे ने उन्हें अहसास कराया कि सबकुछ इतना भी आसान नहीं है। यक़ीनन उसी अहसास और जनता की इस अगस्त में कम दिखाई पड़ती भीड़ ने अन्ना और उनकी टीम को अनशन छोड़ सियासत के मैदान में कूदने की नसीहत दे डाली ! अब अन्ना टीम अनशन की राह छोड़कर सियासत के दलदल में कूदने का मन बना चुकी है ! सड़क की लड़ाई अब संसद के गलियारों में होगी ! अन्ना की टीम अब देश में घूमकर जनता के बीच से अपना प्रत्यासी चुनेगी जिसके दम पर नव राष्ट्र का सपना देखा जा रहा है ! फिलहाल खवाब-केवल ख्वाब है ! दस दिनों तक चला दूसरे चरण का अनशन जनता के समर्थन और सहयोग के भरोसे तोड़ तो दिया गया मगर सवाल अब ये खड़ा होता है की अन्ना जैसे नायक से इस देश के तकरीबन हर वर्ग को जो उम्मीदे थी क्या वो सियासत के मैदान में उसी जज्ज्बे के साथ रहेंगी,मै मानता हूँ नही ! मेरा ये मानना है की देश की राजनीति छल-कपट,धोखा-फरेब,धन-बल और आतंक का पर्याय बने लोगो के बस की बात है ! ऐसे में अन्ना और उनकी टीम का अचानक सियासत में आना उन लोगो के साथ छल माना जा रहा है जिनको अन्ना टीम से नए सवेरे की उम्मीद थी ! अन्ना के समर्थन में देश इस लिए कंधे से कन्धा मिलाकर चल रहा था क्यूंकि लोगो को अन्ना की वो बात याद थी जिसमे उन्होंने आखरी सांस तक राजनीति में नही आने की बात कही थी हालाकि अन्ना ने अब भी राजनीति ना करने का एलान किया है ! देखते है अन्ना की सियासत में आने की हुंकार २०१४ के आम चुनाव में क्या कमाल दिखाती है !
                  वैसे भी टीम अन्ना ने इस बार कम भीड़ का गुस्सा कहें या लोगो के कम समर्थन का जिम्मेदार मिडिया को ठहराकर अपना गुस्सा उतारा ! मिडिया से अन्ना की अपेक्षा जायज भी थी क्यूंकि पिछली बार मिडिया ने चारंभाठ की भूमिका निभाकर टीम अन्ना को खूब जनसमर्थन दिलाया ! इस बार मिडिया के तेवर कुछ बदले-बदले से रहे यही वजह रही की जो दिखा उसे ही दिखाया गया ! भीड़ नही है तो नही है ! लोग नही रहे तो आखिर मिडिया क्या करता पर शान्ति भूषण जी को सच दिखाना बर्दाश्त नही हो सका ! उन्होंने सीधा पंगा ले लिया,हालाकि अन्ना और अरविन्द केजरीवाल ने दूसरे दिन माफ़ी मांग कर भूल सुधरने की कोशिश भी की लेकिन शांतिभूषण की गलती राष्ट्रीय मिडिया के लिए बहस का बड़ा मुद्दा बन गया !
                   ऐसे बहुत से मुद्दे हैं जिन पर चर्चा होना जरूरी है क्योंकि लोकतंत्र में जो काम हमारी राजनीतिक पार्टियों को करना था वो कर सकीं। देश ने उन्हें 6 दशक से ज्यादा का समय दिया, जो काफी है। ऐसे में टीम अन्ना की अगुआई में इन मुद्दों को उठाया और लागू कराया जा सकता है। पर सवाल ये है कि क्या रथ का सारथी कृष्ण है या नहीं क्योंकि रथ पर सवार अर्जुन रूपी जनता सिर्फ प्रदर्शन करती है लेकिन मंच तो किसी कृष्ण को ही तैयार करना होगा और अब तो एसा सियासत का मंच तैयार करना है जहां नागनाथ-सांपनाथ हमेशा उनके गले में टंगे नजर आएंगे ! टीम अन्ना का फेल होना भारत की राजनीतिक पार्टियों को मनमानी करने का एक एक्सटेंशन मिलने जैसा होगा जो कितना लंबा खिंचेगा, कहा नहीं जा सकता।

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