Tuesday, June 11, 2013

अरे ओ नालायक....बेशरम कहीं के .....



अरे ओ नालायक....बेशरम कहीं के .....इस तरह के कुछ और सम्मान सूचक शब्दों को सुनकर साहिल का हाथ अचानक रुक गया ! साहिल मेरी सहयोगी राजश्री का बेटा है जो सड़क के किनारे लगे एक आम से लदे पेड़ पर लाठी मारकर कुछ आम पा जाने की कोशिश कर रहा था ! दरअसल मै और मेरी सहयोगी राजश्री उनका बेटा साहिल साथ में कूल ब्वाय अमित झा देवपहरी होते हुए सतरेंगा जा रहे थे ! बात बीते दिन की है,एक पिकनिक ट्रीप को इंज्वाय करते-करते हम आगे बढ़ रहे थे ! जंगल में कई जगह रूककर आम भी तोडा ! देवपहरी के पास सड़क के किनारे आम से लदे एक पेड़ को देखकर मुझे लालच क्या आया मानों मेरी और साथियों की होने वाली बेइज्जती से बाखबर मैंने कार को किनारे में रोक दिया ! साहिल ने एक डंडे की व्यवस्था की और आम को पाने की खवाहिश में पेड़ पर लाठी से मारना शुरू ही किया की एक जोर की आवाज़ जिसमे क्रोध की आग हमें इधर-उधर देखने को मजबूर कर गई ! कुछ देर तक कोई दिखाई नही पड़ा बस बेइज्जती के शोर की गूंज कानों तक आती रही ! थोड़ी ही देर में सर पर लकड़ी का गठ्ठा लिए एक व्यक्ति आँखों के सामने था ! बिना रुके कभी हमको बेशरम तो कभी नालायक कहता रहा ! इतने पर भी जी नही भरा तो उसने ये कहना शुरू कर दिया की तुम लोग कहीं के कलेक्टर भी होगे तो क्या है मेरे लिए तो चोर,लुटेरे हो जो बिना मुझसे पूछे मेरे पेड़ से आम तोड़ रहे हो ! हम कुछ बोलते उससे पहले ही उसने हमारा इतना सम्मान किया की हम से भी बर्दाश्त नही हो सका ! हमने उससे कहा तुम पास आकर बात करो लेकिन वो दूर से ही गला फाड़ता रहा ! पेड़ से आम तोड़ने की तकलीफ सिर्फ उसे ही थी,पास कड़ी उसकी पत्नी के चहरे पर कोई प्रतिक्रिया नही ना ही उस महिला ने दस मिनट की जुबानी जंग में हिस्सा लिया ! कुछ देर बाद हमको उस बदमिजाज ग्रामीण की बातों को सुनकर यकीं हो गया की वो नशे में है और हम चाहे जो भी कह ले उसे समझ नही आयेगा ! उसकी अशिष्टता के आगे हमारी सारी शिष्टता पानी भरती नजर आई ! उसकी बाते कलेजे में तीर की तरह चुभ रही थी मगर मस्ती में आम को तोड़ने के लालच ने खुद की गलती मानाने का इशारा किया ! मुझे लगा नही कहीं न कहीं मेरी एक गलती की वजह से बाकी साथियों को भी बेवजह अशोभनीय सम्मान का हकदार होना पड़ा ! साथियों के साथ मै वहां से आगे सतरेंगा के लिए बढ़ तो गया मगर इस तरह का मौका मेरे लिए और यक़ीनन मेरे साथियों के लिए भी पहला रहा होगा ! हमारी पिकनिक तो बेहद अच्छी रही,सरपंच के घर से बर्तन का जुगाड़,फिर गीली लकड़ियों पर फूंक-पर फूंक मारकर आग जलाने की कोशिशे जब कारगर हुईं तो चिकन-चावल का स्वाद पानी के किनारे दोगुना लगा ! पर इन सब के बीच मुझे हमेशा मलाल रहेगा की मैंने अपने स्वभाव के विपरीत कुछ ऐसा कर दिया जिसके चलते मेरे साथियों को जरूर ठेस लगी होगी !   

3 comments:

  1. बिना पूछे आम तोड़ना चोरी ही है, एक बार मै भी बचपन में फ़ंसा था।

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  2. जी ललित जी मैंने अपनी गलती भी मानी है और मेरी वजह से साथियों को हुई तकलीफ का भी मलाल है ! पर जो हुआ किसी बदनीयती से नही बल्कि मस्ती की वजह से हुआ .....!

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