Friday, April 15, 2011

बिनायक देशद्रोही नही...


खिरकार आज १५ अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने मानवाधिकार कार्यकर्ता और चिकित्सक बिनायक सेन की ज़मानत याचिका को मंज़ूरी दे दी है...कोर्ट ने अपने निर्देश में कहा है,"बिनायक सेन के ख़िलाफ़ राजद्रोह का आरोप नहीं बनता...हम एक लोकतांत्रिक देश हैं, बिनायक नक्सलियों से सहानुभूति रखने वालों में से हो सकते हैं लेकिन इस बिनाह पर उनके ख़िलाफ़ राजद्रोह का मामला नहीं लगाया जा सकता."इससे पहले सरकारी वकील ने तर्क देते हुए कहा था कि बिनायक सेन को ज़मानत न दी जाए...वकील के मुताबिक अगर बिनायक सेन को ज़मानत मिली तो वे छत्तीसगढ़ में प्रत्यक्षदर्शियों को प्रभावित कर सकते हैं जैसा कि अमित शाह ने गुजरात में किया था...इस पर जज ने कहा कि दोनों व्यक्तियों की तुलना नहीं हो सकती और फिर ज़मानत याचिका को मंज़ूरी दे दी....अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रति छत्तीसगढ़ की निचली अदालत को दी जाएगी, जिसके बाद वो ये तय करेगी कि ज़मानत किन शर्तों पर दी जाए...बिनायक सेन के घर से माओवादी समर्थक साहित्य मिलने के सबूतों के आधार पर पिछले साल छत्तीसगढ़ की एक निचली अदालत ने उन्हें राजद्रोह के लिए दोषी करार दिया था...आज बहस के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी के पास किसी विचारधारा से जुड़ा साहित्य मिलने से उस व्यक्ति पर उसी का प्रचारक होने का आरोप नहीं लगाया जा सकता...उदाहरण के तौर पर कोर्ट ने कहा, "कई लोगों के घर में महात्मा गांधी की आत्मकथा की प्रति मिलेगी, इसका मतलब ये नहीं कि वो व्यक्ति गांधीवादी हैं."कोर्ट में बिनायक सेन की तरफ से जिरह करने वाले वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने कहा कि इस केस को जीतने से उन्हें निजी तौर पर खुशी हुई है....जेठमलानी ने कहा, "ये केस लोकतंत्र के मूल दर्शाता है, क्योंकि लोकतंत्र में सबको आज़ादी से अपने विचार रखने का अधिकार होता है.".उम्र क़ैद की सज़ा के खिलाफ बिनायक सेन ने बिलासपुर उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया था लेकिन वहाँ उनकी अर्ज़ी ख़ारिज हो गई थी जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी...हाई कोर्ट में दाखिल की गई अपील में बिनायक सेन ने कहा था कि अभियोजन पक्ष के कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर पाने के बावजूद निचली अदालत ने उन्हें दोषी क़रार देकर सज़ा सुनाई है....बिलासपुर उच्च न्यायलय में भी उनके मामले की पैरवी वकील राम जेठमलानी ने की थी. जेठमलानी भारतीय जनता पार्टी के सांसद भी हैं और छत्तीसगढ़ में उन्हीं की पार्टी की सरकार है...अदालत मे दाख़िल किए गए अपने हलफ़नामे में छत्तीसगढ़ सरकार ने दावा किया था कि बिनायक सेन ने देश में नक्सलवाद के विस्तार में समर्थन दिया है और इस काम में हर तरह की मदद मुहैया करवाई है...बिनायक सेन की गिरफ़्तारी और सज़ा का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ा विरोध हुआ है और विश्व की जानी मानी हस्तियों ने भारतीय प्रधानमंत्री से उनकी रिहाई की अपील की थी...
                   बिनायक को जमानत मिलने के बाद उनकी पत्नी एलिजा ने भी कह दिया की "मै काफी खुश हूँ,बुरा सपना ख़त्म हुआ"...निश्चित तौर पर बिनायक के परिजनों और समर्थको की कठिनाइयों भरी राह अब कुछ आसान होगी...सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने ये तो साबित कर दिया की छत्तीसगढ़ सरकार ने पर्याप्त सबूतों के बिना बिनायक पर तमाम दोषारोपण कर दिया...निचली अदालत ने पुलिस के आरोपों और पेश दस्तावेजो के बिनाह पर चिकित्सक डॉक्टर बिनायक सेन को राजद्रोही करार दिया...राष्ट्रद्रोह का आरोपी मानकर बिनायक को उम्र कैद की सजा तो दे दी गई लेकिन उनके समर्थक और देश के कई वर्गों से जुड़े लोग उस फैसले से नाखुश हुए...मै भी हुआ...खैर जो भी हुआ बीता हुआ कल था,अब उम्मीद की रौशनी निकल आई है जिसके उजाले में बिनायक जैसे सेवाभावी चिकित्सक अपनी राह पर चलते हुए सच को सामने जरुर लायेंगे...
                     इधर बिनायक से जुड़े हर घटनाक्रम पर जो तारीखे गवाह रहेंगी या फिर इतिहास में दर्ज होंगी वो कुछ इस तरह से है...14 मई, 2007: व्यापारी पीयूष गुहा और नक्सली नेता नारायण सान्याल के बीच संदशों का आदान-प्रदान करने के आरोप में सेन की गिरफ्तारी।15 मई, 2007: सेन को न्यायिक हिरासत में भेजा गया।25 मई, 2007: छत्तीसगढ़ सरकार ने दावा किया कि सेन से राज्य की सुरक्षा को खतरा है। उन्हें जमानत नहीं मिली।मई-जून: मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने सेन के समर्थन में देशभर में रैलियां निकालीं।तीन अगस्त, 2007: पुलिस ने सेन के खिलाफ छत्तीसगढ़ विशेष सार्वजनिक सुरक्षा कानून और अवैध गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी सत्यभामा दुबे की अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया।10 दिसम्बर 2007: सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों वाली पीठ ने सेन की जमानत याचिका खारिज की।31 दिसम्बर, 2007: 'इंडियन एकेडमी ऑफ सोशल साइंस' ने छत्तीसगढ़ में गरीब, दलित लोगों की जीवन गुणवत्ता में सुधार लाने के मकसद से प्रकृति व मानव समाज विज्ञान की उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान के लिए सेन को 'आर आर केतन स्वर्ण पदक' प्रदान किया।15 मार्च-11 अप्रैल, 2008: जेल प्रशासन ने सुरक्षा का हवाला देते हुए सेन को एकांत कारावास में रखा।21 अप्रैल, 2008: 'ग्लोबल हेल्थ काउंसिल' ने वश्विक स्वास्थ्य एवं मानवाधिकार के क्षेत्र में योगदान के लिए सेन को 'जोनाथन मैन अवॉर्ड' से नवाजा।30 मई 2008: सेन मामले में रायपुर में सुनवाई प्रारंभ।11 अगस्त, 2008: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर में दूसरी जमानत याचिका दाखिल की गई।14 अगस्त, 2008: सेन की जमानत याचिका पर पहली बार सुनवाई। सुनवाई स्थागित।दो दिसम्बर,2008: जमानत याचिका खारिज।तीन दिसम्बर: पूरक आरोप दाखिल, इसमें अतिरिक्त 47 गवाहों की सूची शामिल।चार मई, 2009: सर्वोच्च न्यायालय ने सेन को हिरासत में रखे जाने को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार को नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर जवाब मांगा। अदालत ने सेन के दिल की तकलीफ को देखते हुए उन्हें बेहतर चिकित्सकीय सुविधा मुहैया कराने को भी कहा।25 मई, 2009: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति मरक डेय काटजू और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की पीठ के आदेश पर सेन जमानत पर रिहा।23-26 नवम्बर: रायपुर सत्र न्यायालय में सुनवाई दोबरा शुरू।अगस्त के अंतिम सप्ताह और सितम्बर की शुरुआत, 2010: सर्वोच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ सरकार को सितम्बर के अंत तक सेन के खिलाफ सबूत पेश करने का निर्देश दिया।28 सितम्बर, 2010: अभियोजन पक्ष ने सभी सबूत पेश किए।25-26 नवम्बर, 2010: बचाव पक्ष ने 12 गवाहों सहित दस्तावेज पेश किए।24 दिसम्बर, 2010: रायपुर के सत्र न्यायालय ने सेन, सान्याल और गुहा को राजद्रोह और साजिश के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा सुनाई।24 जनवरी, 2011: सेन की जमानत याचिका पर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में सुनवाई शुरू। वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी सेन के पक्ष में उतरे और निचली अदालत के फैसले को बिना सबूत के आधार वाला फैसला करार दिया।25 जनवरी 2011: एक अन्य वकील सुरेंद्र सिंह ने सेन का पक्ष लेते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ पुलिस ने सेन के नक्सलियों से सम्बंध होने के दस्तावेज फर्जी तरीके से तैयार किये हैं।नौ फरवरी, 2011: उच्च न्यायालय ने अभियोजन पक्ष के वकील किशोर भादुड़ी की दलील सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रखा।10 फरवरी, 2011: न्यायमूर्ति टी. पी. शर्मा और न्यायमूर्ति आर. एल. झानवार ने सेन की जमानत याचिका को खारिज किया।11अप्रैल, 2011: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एच. एस. बेदी और न्यायमूर्ति सी. के. प्रसाद की अध्यक्षता वाली खण्डपीठ ने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा अपनी दलील पेश करने के लिए और समय मांगने पर सुनवाई स्थगित की।15 अप्रैल, 2011: सर्वोच्च न्यायालय ने सेन को जमानत दे दी है।ये तारीखे बिनायक और उनसे जुड़े हर  व्यक्ति को हमेशा याद रहेंगी,लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने छत्तीसगढ़ सरकार के मुह पर कानूनी तमाचा मार दिया है...देखना है कानून का ये करारा तमाचा कितने दिनों तक सरकार को याद रहता है...

2 comments:

  1. इस शानदार त्‍वरित रपट के लिए धन्‍यवाद सत्‍या भाई.

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  2. Aap ki tvarit tipapni par bhai sanjeev ji ne jo kaha nishchit taur par kabile tareef hai....binayak sen ko jamaanat milna sarkaar ke muh par vastav me tamacha hai.....

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