Wednesday, February 15, 2012

वृषभ या ऋषभ तीर्थ .....!




प्रकृति के श्रृंगार का ये मनोरम नजारा किसी दुल्हन के श्रृंगार से कम नजर नही आता ! ऊँची-ऊँची पहाड़ियों के बीच से      आती ठंडी हवाएं,पक्षियों का कलरव अशांत मन को अजीब सा सकून दे जाता है ! मैकल पर्वत शृंखलाओ का ये हिस्सा अपने भीतर कई रहस्य,कई एतिहासिक महत्त्व को छिपाए बैठा है ! इन पर्वतो के बीच कई गुफाये है....! गुफाओं के भीतर कई गुफाएं ...मानो हर कदम पर कोई नई बात,कोई नया रहस्य !  इतिहासकार आज भी इन पहाड़ियों के भीतर दबे रहस्य और इतिहास को ढूढ़ रहे है ! इन गुफाओं के भीतर कभी आदिमानव रहा करते थे....जानकार उसके प्रमाण भी देते है ! खुबसूरत वादियों की जिन हसीन अदाओं के बीच जिस इतिहास के बारे में मै जानने की कोशिश कर रहा हूँ वो जगह कोरबा से ४२ किलोमीटर दूर सक्ती मार्ग पर है ! जांजगीर जिले का ये हिस्सा ऋषभ तीर्थ के नाम से जाना जाता है ! वैसे इतिहासकार और जानकार ये भी बताते है की जैन धर्मावलम्बियों ने जिस ऋषभ तीर्थ को अपना बताया है वहां ऋषभ देव की कोई भी प्रतिमा आज तक नही मिली है ना ही कोई ऐसे प्रमाण मिले है जिससे ये पुष्ट हो सके की यहाँ कभी जैन धर्म के संत-महात्मा रहा करते थे
                           वृषभ या ऋषभ तीर्थ .....! इस मतभेद को दरकिनार कर दिया जाए तो ये पूरा इलाका एक ओर जहां हजारों-हजार साल पुराने इतिहास का हिस्सा है वही कई आस्थावानों की आस्था का ये एक बड़ा केंद्र रहा है ! जिन गुफाओं में अब चमगादड़ और जहरीले जीव-जंतुओं ने डेरा जमा लिया है वहां कभी आदिमानव रहा करते थे...! करीब ढाई हजार साल पहले जिन गुफाओं से आदिमानो की आवाजे सुनाई पड़ती थी वहां अब सन्नाटा है,एक एसा वीरानापन जो अकेले इंसान के रौंगटे खड़े करने के लिए काफी है ! इन वीरान गुफाओं के भीतर देवी देवताओं की मूर्तियाँ आज भी आस्थावानों को शीश नवाने पर मजबूर कर देती है...! हिमालय की पहाड़ियों के समकालीन इन मैकल पहाड़ की श्रृंखलाओं पर कई ऍसी गुफाइये है जहां बाहर से लेकर भीतर तक देवताओं की प्राचीन मूर्तियों के कुछ अवशेष मिल जाते है जो इस बात का प्रमाण देते है की हजारो हजार साल पहले भी इन पहाड़ियों से घंटे-घड़ियाल की आवाज सुनाई पड़ती थी...! इन पहाड़ियों के बीच से कल कल करते झरने की आवाज कानो को बेहद सकून देती है ! ऊंचाई से गिरते इस पानी का शोर इन हसीन वादियों के बीच बारहों महीने सुनाई पड़ता है ! दमाऊ दरहा .....ये ही नाम है इस जल प्रपात का....! जिसे आज लोग दमाऊ धारा के नाम से पुकारते है...! यहाँ रहने वाले कहते है गर्मी के मौसम में थोडा बहुत पानी कम होता है मगर ऊंचाई से गिरते झरने की अविरल धार हमेशा पर्यटकों की बलैया लेने तैयार रहती है ! कल -कल बहते इस झरने के पानी को लोग पवित्र पानी मानते है ! पास ही में एक बड़ा सा कुंड है जिसमे नहाने से सारे पाप धुल जाते है...ये मत उन लोगो का है जिनकी कई पीढ़ियों ने यहाँ वक् काट दिया ! इस पवित्र पानी के कुंड की गहराई काफी है,कहते है जो इसकी गहराई में गया फिर लौट कर नही सका....! मतलब इस कुंड में कई आत्माओं का समावेश भी है जो पवित्र पानी के उस हिस्से में आने से अपनी ओर खींच लेटी है...! गाँव के लोग बताते है इस कुंड ने कभी भी गाँव के किसी आदमी की बलि नही ली..! हर साल इस कुंड में किसी ना किसी इंसान की बलि चढ़ जाती है जिसे कुछ लोग देवी-देवता की इच्छा से जोड़कर देखते है तो कुछ लोग उस भूल की बात कहकर ज्यादा तूल नही देना चाहते जो अक्सर बाहरी आदमी कर देते है
         भोलाराम बताता है यहाँ हर साल मेला लगता है,यज्ञ और कई तरह के धार्मिक अनुष्टान होते है ! उम्र के करीब दशक पार क्र चूका भोला ये भी बताता है की यहाँ कभी ऋषभ मुनि रहते थे,उन्होंने कई सालो तक इन्ही पहाड़ों के बीच तपस्या की ! हालाकि इन बातो की पुष्टि इतिहासकार नही करते,लेकिन जिन लोगो ने अपने पूर्वजो से जो जाना उस लिहाज से कभी ऋषभ मुनि पहाड़ की उन गुफाओ में तपस्या करते रहे
          इस कुंड के पास चट्टान पर कुछ शिलालेख है जो इतिहास के पुराने पन्नो को पलटने की गुजारिश करते है ! ब्राम्ही लिपि के इस शिलालेख पर क्या लिखा है कोई नही जानता ! श्री कुमार जी वर्द्दत के इस शिलालेख के पीछे भी कई मान्यताओं,कई बातो का उल्लेख है ! कहते है इस शिलालेख की लिखावट को जिसने भी पढ लिया उसे बहुत सारा खजाना हासिल हो जायेगा ! हजारो- हजार साल बीत गए ना किसी को खजाना मिला ना खजाने का रास्ता...! इस जगह पर गौ दान का उल्लेख भी इतिहास में आता है ! हजारो गायों को दान में देने की बात करने वाले जानकार कहते है की जैन धर्म में गाय दान देने की कभी परम्परा ही नही रही है ! ऐसे कई और प्रमाण पुरात्विक देते है जो बार बार ऋषभ तीर्थ को वृषभ तीर्थ होने की वकालत कर जाते है
                        एक ओर माता संतोषी का मन्दिर,तो दूसरी ओर भगवान् शिव का प्राचीन शिवालय......! वैसे इस जगह पर ऋषभ देव जी का नया मन्दिर भी बनाया गया है,जहां उनकी पूजा अर्चना हर रोज की जाती है ! इस प्राचीन धरोहर की मिटटी और भी अनमोल इस वजह से भी अनमोल हो जाती है क्यूंकि सारे कष्टों से छुटकारा दिलाने वाली शक्ति स्वरुपा,जगत जननी माँ विश्वेश्वरी का दरबार पहाड़ की ऊँचाइयों पर है ! करीब ३०० सीढियां चढ़कर भक्त माँ के दरबार तक पहुंचाते है ! पहाड़ों पर बैठी माँ अपने भक्तो के कष्ट हर लेती है....हर नवरात्रि में माँ के इस दरबार में भक्ति की बहती अविरल धारा दूर-दूर तक आस्था के शोर से माहोल को शांति और समृधि देती है ! यहाँ माता की मूरत करीब १० वीं शताब्दी की है जिसके पीछे कई धार्मिक मान्यताएं,कई किवदंतियां छिपी ही..! माता के दरबार में हाजिरी लगाकर भक्त मन की मुरादे पाते है....इस दरबार से कोई खली हाथ नही लौटता,जिसने जो माँगा पहाड़ पर बैठी माता ने उसे वो दिया....जरुरत बस आस्था,और सच्चे मन से मांगी गई मुराद की है !





                                         कहते है यहाँ कभी मिटटी का किला हुआ करता था.....कुछ अवशेष और यहाँ रहने वालो की बातें उसकी पुष्टि करती है ! पहाड़ के ऊपर कभी गान बसा करता था अब केवल अवशेष खोजने पर  मिलते है....!  माता के मंदिर के नीचे देवी का एक और छोटा सा मन्दिर है जहां आज भी बलि दी जाती है !  खोज जारी है ...?आखिर इन ऊँची-ऊँची पहाड़ियों में क्या-क्या रहस्य छिपे है...?ये बन्दर आखिर कितने सालों से यूँ ही यहाँ आने वालों की मुट्ठियों और हाथ में टंगे थैलों को निहारते है..? आखिर इस पहाड़ पर मिलने वाले मिटटी के बर्तन,खिलोने,मूर्तियाँ और चूड़िया इतिहास के किस युग की कहानी कह रही है ? खोज इस बात की भी हो रही है की आखिर ये दुर्लभ पंछी कहाँ से और क्या संदेशा लिए यहाँ आये ? ऐसे कई और सवाल मेरे जहन में उफान मार रहें है....फिर सोचता हूँ  जिन सवालों का जवाब आज भी पुरातात्विक और इतिहासकार खोज रहे है उन्हें मै इतने कम वक्त में कैसे जान जाऊँगा ये सोचता हुआ इन हसीन वादियों से ना चाहते हुए भी लौटने मजबूर हो गया....!     

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