बात १४अक्तुबर की है.....मै और मेरा केमरासहयोगी खबर की तलाश में रोज की तरह निकले....वैसे तो मेरे दफ्तर से कुछ ही दूरी पर कई खबरे होती है जिन्हें खोजना नही पड़ता,लेकिन हर दिन कुछ नया करने की चाह में मै कही दूर निकल जाता .....आज अचानक मन रायपुर रोड की ओर जाने का हो गया ....चलते -चलते २३ किलोमीटर दूर बिल्हा पहुच गये ....बिल्हा से एक रास्ता ग्राम केसला की ओर जाता है......हम उसी ओर चल पड़े;गाव पहुचे ही थे कि अचानक एक विकलांग कुछ बेचता नज़र आया; जिज्ञासावस् हम उसी व्यक्ति के पास रुक गए ......नाम पूछने पर पता चला कि वो "राजकुमार" है .....वैसे इस नाम से राजकुमार को गाव में कम ही लोग जानते है...."पकलू" के नाम से राजकुमार को हर कोई जानता है.....विकलांग पकलू को गाव में चलती फिरती दुकान के नाम से भी जाना जाता है......मौसम मूंगफली का है इस कारण पकलू की ट्रेसिकल पर एक सिगड़ी सुलग रही है.....गाव की एक-एक गली से पकलू की दुकान गुजरती है.....शाम तक इतना मिल जाता है कि एक जून की रोटी परिवार का पेट भर देती है....पकलू भुट्टे के सीजन में भुट्टा भुन्जता है.......कभी मनिहारी तो कभी फल की दुकान ट्रेसिकल पर सज जाती है...मतलब विकलांगता, पकलू के बुलन्द इरादों के सामने नतमस्तक है....पकलू शादीशुदा है और तीन बेटियों का पिता है....एक बेटी स्कूल भी जाती है;बेटियों के भविष्य को लेकर नाम का राजकुमार काफी चिंतित भी रहेता है लेकिन पत्नी है की पकलू के बुलंद इरादों को कम नही होने देती.....सरकारे गरीबो,जरुरतमंदो तक सहायता पहुचने का दंभ भरती है लेकिन पकलू आज भी सरकारी मदद को मोहताज है......ना सरकार की इंदिरा आवास योजना का लाभ मिला ना स्थाई ठिकाने के लिए किसी जनप्रतिनिधि ने मदद की उम्मीद दिलाई .....संघर्ष भरी जिन्दगी को हसकर गुजार रहा पकलू रियल लाइफ का हीरो है.....विकलांगता के नाम पर तो कभी विकलांग बनकर भीख मांगने वालो को पकलू जैसे इन्सान से सबक लेने की जरुरत है....करीब ढाई घंटे पकलू के साथ रहकर मै उन कामचोर लोगो की सोचने लगा जो बिना कुछ किये बहुत कुछ करने का नाटक करते है..... खैर...... जैसी करनी वैसी भरनी ........
Friday, October 22, 2010
.............ऐसा राजकुमार
बात १४अक्तुबर की है.....मै और मेरा केमरासहयोगी खबर की तलाश में रोज की तरह निकले....वैसे तो मेरे दफ्तर से कुछ ही दूरी पर कई खबरे होती है जिन्हें खोजना नही पड़ता,लेकिन हर दिन कुछ नया करने की चाह में मै कही दूर निकल जाता .....आज अचानक मन रायपुर रोड की ओर जाने का हो गया ....चलते -चलते २३ किलोमीटर दूर बिल्हा पहुच गये ....बिल्हा से एक रास्ता ग्राम केसला की ओर जाता है......हम उसी ओर चल पड़े;गाव पहुचे ही थे कि अचानक एक विकलांग कुछ बेचता नज़र आया; जिज्ञासावस् हम उसी व्यक्ति के पास रुक गए ......नाम पूछने पर पता चला कि वो "राजकुमार" है .....वैसे इस नाम से राजकुमार को गाव में कम ही लोग जानते है...."पकलू" के नाम से राजकुमार को हर कोई जानता है.....विकलांग पकलू को गाव में चलती फिरती दुकान के नाम से भी जाना जाता है......मौसम मूंगफली का है इस कारण पकलू की ट्रेसिकल पर एक सिगड़ी सुलग रही है.....गाव की एक-एक गली से पकलू की दुकान गुजरती है.....शाम तक इतना मिल जाता है कि एक जून की रोटी परिवार का पेट भर देती है....पकलू भुट्टे के सीजन में भुट्टा भुन्जता है.......कभी मनिहारी तो कभी फल की दुकान ट्रेसिकल पर सज जाती है...मतलब विकलांगता, पकलू के बुलन्द इरादों के सामने नतमस्तक है....पकलू शादीशुदा है और तीन बेटियों का पिता है....एक बेटी स्कूल भी जाती है;बेटियों के भविष्य को लेकर नाम का राजकुमार काफी चिंतित भी रहेता है लेकिन पत्नी है की पकलू के बुलंद इरादों को कम नही होने देती.....सरकारे गरीबो,जरुरतमंदो तक सहायता पहुचने का दंभ भरती है लेकिन पकलू आज भी सरकारी मदद को मोहताज है......ना सरकार की इंदिरा आवास योजना का लाभ मिला ना स्थाई ठिकाने के लिए किसी जनप्रतिनिधि ने मदद की उम्मीद दिलाई .....संघर्ष भरी जिन्दगी को हसकर गुजार रहा पकलू रियल लाइफ का हीरो है.....विकलांगता के नाम पर तो कभी विकलांग बनकर भीख मांगने वालो को पकलू जैसे इन्सान से सबक लेने की जरुरत है....करीब ढाई घंटे पकलू के साथ रहकर मै उन कामचोर लोगो की सोचने लगा जो बिना कुछ किये बहुत कुछ करने का नाटक करते है..... खैर...... जैसी करनी वैसी भरनी ........
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राजकुमार के बलुद इरादों को हमारा सलाम.
ReplyDeleteनये वर्ष की हार्दिक शुभकामनांए.