Wednesday, February 9, 2011

सरकार के कई चेहरे


   ये विकास की अंधी दौड़ में शामिल
   छत्तीसगढ़ राज्य के होनहार बच्चो
   की तस्वीर है...ये कचरे में पैदा हुए
   या कचरे में जिन्दगी तलाश रहे है
   सरकार बताने को तैयार नही है...
  देश में शिक्षा की अनिवार्यता का कानून लागू है मगर वो क़ानून कागजो की सफेदी को खराब करने से ज्यादा नजर नही आता...तभी तो जिन बच्चो को शिक्षा के मन्दिर में भविष्य गढ़ना चाहिए वो कचरे के ढेर में जिन्दगी तलाश रहे है...नौकरशाहों को ऐसी तस्वीरे तकलीफ नही पहुचाती है क्योंकि उनके बच्चे हेरा-फेरी की रकम पर बड़े और इंग्लिश मीडियम स्कूलों में शिक्षा ले रहे होते है..कचरे में पेट की आग बुझाने का सामान इकट्ठा करते बच्चो की तस्वीर के नीचे लगी तस्वीर पर लिखा है "ईमान से बढकर कोई धन नही है" ये बस्तर के एक स्कूल की तस्वीर है जहाँ सेकड़ो बच्चे तालीम हासिल कर बस्तर के पिछड़ेपन की परिभाषा को बदलने की कोशिश में जुटे थे,मगर नक्सलियों को विकास की मुख्यधारा में आने से आज भी डर लगता है...बस्तर जैसे कई इलाको में खुद की सरकार चलाने का दावा करने वाले नक्सलियों ने स्कूल भवन को बारूद बिछाकर ध्वस्त कर दिया...इरादा साफ़ है बच्चे शिक्षा से दूर होंगे तभी उनके गिरोह में सदस्य संख्या बढेगी...जो आदिवासी बच्चे ईमान और विकास का पथ पढ़ रहे थे वो अब स्कूल बनाने वाले रहनुमा की तलाश कर रहे है...
 इस पोस्ट पर लगी हवलदार साहेब की तस्वीर जितनी छोटी नजर आ रही है समस्या उससे कई गुना बड़ी और गंभीर है...ये तस्वीर मैंने राष्ट्रीय उद्योग-व्यापार मेले के शुभारम्भ मौके पर ली थी..बिलासपुर में जनवरी महीने में चार दिनों तक मेले की धूम रही,करोडो रुपयों का व्यापार हुआ मगर इस तरह की तस्वीर में छिपी सच्चाई को समझने की कोशिश किसी ने नही की...घर की जिम्मेदारियों से लदे हवलदार साहेब मुख्यमंत्री की सुरक्षा में लगाये गए थे...मुख्यमंत्री के जाते ही ये अपनी मोटरसाइकिल पर बैठकर घर के लिए रावण हो गए...सिर पर अवाम की सुरक्षा वाली सरकारी टोपी,कंधे पर सरकार की दी हुई बदूक जो कभी चलाने का मौक़ा मिला ही नही और पुराने झोले में घर की जरुरतो का सामान...इस तस्वीर में वो बोझ और जिम्मेदारिय छिपी है जिसे हर इंसान समझ ले जरुरी नही है....  
 ये तस्वीर नक्सल इलाके सुकुमा के जंगल की है जहाँ बन्दुक की नोक पर सरकार चलाते नक्सली पंचायत लगाये बैठे है...बेकसूर लोगो के लहू से राज्य के कई इलाके लाल है मगर सरकार को उससे ख़ास फर्क पड़ता हो दिखता नही है...हर बार नक्सलियों से लोहा लेने की बाते,उनके बारूदी मंसूबो को ढेर करने की सरकारी कवायदे...सरकार की कोशिशो को चिढाती ये तस्वीर काफी कुछ कह रही है....

 २४ जनवरी २०११ को मैंने ट्रैन रोकने की कुछ फोटो उसलापुर रेलवे स्टेशन से ली...एक खड़ी मालगाड़ी के आगे भारतीय युवा मोर्चा के मुठ्ठी भर पदाधिकारी और कार्यकर्ता खड़े हो गए...हाथ में पार्टी के झंडे की बजाय चुनाव प्रचार में काम आया झंडा था...दरअसल ये लोग उस विरोध में प्रदर्शन का नाटक कर रहे थे जिसे केंद्र सरकार के इशारे पर रेल मंत्रालय ने किया था...२६ जनवरी को काश्मीर के लाल चौक में तिरंगा फहराने का आव्हान भारतीय युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने किया था...देश के हर कोने से पार्टी के कार्यकर्ता काश्मीर के लिए निकलने को तैयार हो गए...कई ने कोशिशे की तो कई ने केवल नाटकीय अंदाज में काश्मीर का आरक्षण रद्द होने का विरोध शुरू कर दिया...उसी की एक सच बयाँ करती दो फोटो कहने को काफी कुछ कहती है जरुरत है समझने की....

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