Friday, December 9, 2011

इलाज से लेकर पोस्टमार्टम तक...!!!

डेढ़ दशक से ज्यादा की पत्रकारिता में मैंने जितना देखा,जितना लिखा उस लिहाज से लोग मुझे "नेगेटिव" पत्रकार कहने लगे ! हो सकता है मेरी सोच आज के जमाने की सोच पर फिट नही बैठती हो मगर मै संतुष्ट हूँ की मैंने जो देखा उसे ही जनता के पेशे-नजर किया ! पिछले एक महीने से छत्तीसगढ़ की ऊर्जा-नगरी कोरबा में हूँ ! जिस शहर ने मुझे नाम दिया,पहचान दी...जिस शहर को मैंने आँखों के सामने महानगरीय अमलीजामा पहनते देखा उसे ना चाहते हुए भी ९ नवम्बर से छोड़े आया हूँ  ! नए साथियों के साथ नए शहर में जनता की बरसो पुरानी जरूरतों की हकीकत जानने की कोशिशे जारी है ! एक महीने में जो दिखा उस लिहाज से कहूँ तो बात फिर से मेरी नेगेटिव सोच वाली आ जाएगी.मगर हकीकत है की छत्तीसगढ़ जैसे विश्वसनीय प्रदेश में कोरबा जिले के लोग जिन छोटी-छोटी जरूरतों के लिए मोहताज है वो इस प्रदेश के सियासतदारो के असली चेहरों को बेनकाब करती  है ! इस पोस्ट पर मै केवल जिला अस्पताल के बारे में थोडा बहुत लिखूंगा जो सरकार की स्वास्थय निति पर सवाल खड़े करने के लए काफी होगा.....!!! 
                     कोरबा के १०० बिस्तर वाले जिला चिकित्सालय के कई नाम है,कोई हंड्रेड बेड तो कोई इंदिरा गाँधी अस्पताल के नाम से जानता है,पुकारता है ! अस्पताल सरकारी है लिहाजा रसूखदारों को "१०० बेड" से ज्यादा उम्मीदे नही होती...जिन गरीबो ने इंदिरा गाँधी जिला चिकित्सालय की चौखट को मंदिर समझकर भीतर प्रवेश किया उन्हें वो तारीख अब भुलाये नही भूलती.....किसी की माँ तो किसी बहेन ने भाई खो दिया ! कोई अपने पति को लेकर जिला अस्पताल  आई तो आँखों में जिन्दगी बच जाने की उम्मीदे थी मगर मांग से सिंदूर का रंग मिटने में वक्त नही लगा....जिला चिकित्सालय में कई ऐसे बाप भी आये जिन्होंने वक्त से पहले बेटे की अर्थी को कंधा दिया.....मामूली घाव से लेकर गंभीर बीमारी तक में बरती जा रही लापरवाही ने कई आशियानों में मातम का परचा भेज दिया,मगर जिम्मेदार चिकित्सक हमेशा बचते रहे ! मै जिस जिला अस्पताल की सरकारी वयवस्था पर वक्त जाया कर रहा हूँ उसे "आई.एस.ओ."का दर्जा हासिल है ! आप समझ सकते है  ऊर्जा नगरी का जिला अस्पताल सरकारी रिकार्ड में कितनी गुणवत्ता युक्त है.....हकीकत मैंने अपने साथियों की नजरों के अलावा खुद भी एक दिन जाकर देखी ! हालत मेरे मुताबिक़ काफी बुरे है,जो भोग रहे है या फिर भुगत चुके है वो मेरे से सहमत होंगे....१०० बिस्तरों वाले अस्पताल के अधिकाँश बिस्तर खाली पड़े रहते है,सरकारी दवाइयां या तो झोला छाप डाक्टरों को बेच दी जाती है या फिर सरकारी अस्पताल के डॉक्टर साहेब के निजी क्लिनिक में पहुंचकर गरीबो की सेहत का ख्याल रखती है !
                                         इलाज से लेकर पोस्टमार्टम तक अव्यवस्था .....सांस चलने से लेकर उखड़ जाने तक इंसान की फजीहत....सरकारी तनख्वाह पर खुद के क्लीनिको में इलाज के बहाने रुपये बटोरने का खेल.....जिंदगी बचाने की बजाय रिफर का परचा लिखने वाले डाक्टर खुश है,मातम तो उन घरों में पसरा है जहां उम्मीदों ने आते ही दम तोड़ दिया.....मगर हकीकत से सरकार के मंत्री या जिला प्रशासन के लोग वास्ता नही रखना चाहते तभी तो "आई.एस.ओ."का दर्जा हासिल जिला अस्पताल की खामियों को ठीक करने की बजाय स्वास्थय मंत्री अमर अग्रवाल ने ३० नवम्बर को मुख्यमंत्री समेत कई मंत्रियों के समक्ष जिन स्वास्थय सुविधावो का सरकारी पठन-पाठ किया वो गरीबो का मजाक उड़ा गई.....इतना ही नही जिले को ५ संजीवनी एक्स्प्रेस दे गए ताकि गरीबो का खून चूसने वाले डॉक्टर और फल-फुल सके......मेरे चैनल में काम करने वाले सहयोगी ने संजीवनी की निकली हवा की पोल तीसरे ही दिन खोल दी.....जिला अस्पताल के एक डाक्टर साहेब ने संजीवनी की सुविधावो को अपने निजी क्लिनिक के लिए लगा रखा था....सरकार की संवेदन शीलता पर सवाल खड़े हुए तो कलेक्टर साहेब की बंद आँखे खुल गई....उन्होंने जांच टीम और ना जाने क्या क्या सरकारी भाषा में कह दिया ....! साहेब को लगता है पहली बार लगा सरकारी सुविधावो का दुरूपयोग होने की भनक लगी...एसा मै कहूँगा तो गलत होगा क्यूंकि साहेब को इस बार भी गरीबो के स्वास्थय का नही सरकार की सरकारी संजीवनी का ख्याल था तभी तो जांच टीम और ना जाने क्या...क्या...?
                                       आदिवासी बाहुल्य कोरबा जिले में स्वास्थय सुविधावो का अब तो भगवान् भी मालिक बनने से इनकार कर दे मगर कई चिकित्सक जिन्हें गरीब अब राक्षस और लुटेरा कहने से नही चुकते वो मसीहा बनने का दावा करते घूम रहे है....!!!! न जाने क्या होगा उन आदिवासियों का जो जिन्दगी बच जाने की आस में कभी घर बेचते है तो कभी खेत के टुकड़े को बेचकर खून के रिश्तो को सांस देने की कोशिश करते है......!!!!!! 

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