Monday, December 26, 2011

अन्ना ...आगे नयी चुनौती !


रकार ने अन्ना की मांगों को शामिल करने की बजाय राजनीतिक दलों की मांगों का ध्यान रखा है. सरकार अन्ना की मुहिम को कांग्रेस की बजाय पूरी संसदीय व्यवस्था से जोड़ देना चाहती है.....कांग्रेस संसदीय दल की बैठक को संबोधित करते हुए पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लोकपाल के मसले पर पार्टी और सरकार के रुख को स्पष्ट किया. सोनिया गांधी ने लोकपाल पर लंबी लड़ाई लड़ने की बात दोहराते हुए विपक्ष और अन्ना को लोकपाल कानून स्वीकार करने की नसीहत भी दी. उनके लहजे से साफ़ हो गया कि अब सरकार लोकपाल के मसले पर झुकने को तैयार नहीं है और वह अन्ना आंदोलन से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है.
        सोनिया गांधी की बात से सरकार और अन्ना के बीच अब सीधी लड़ाई की संभावना बन गयी है. कांग्रेस के रुख में आये बदलाव की वजह लोकपाल पर सरकार और अन्य विपक्षी दलों के बीच कई मसलों पर सहमति होना है. आम राय बनाने के लिए सरकार लगातार विपक्षी दलों के संपर्क में थी. विपक्षी दलों की कई मांगों को मसौदे में शामिल कर विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच असहमति को कम करने की कोशिश की गयी.....लोकपाल के गठन और चयन में 50 फ़ीसदी आरक्षण और सीबीआइ को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने पर कमोबेश सभी राजनीतिक दल सहमत हैं. सरकार ने जानबूझकर 50 फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था कर दी, जबकि ऐसा प्रावधान किसी भी संस्था में अभी तक नहीं है. सरकार के इस फ़ैसले से कई विरोधी दल खासकर बसपा की रणनीति गड़बड़ा गयी है. अब बसपा भी लोकपाल का विरोध नहीं कर पायेगी. वहीं दूसरी ओर सीबीआइ के मसले पर सर्वदलीय बैठक में किसी भी राजनीतिक दल ने सीबीआइ को लोकपाल के दायरे में रखने की बात नहीं कही. सिर्फ़ सीबीआइ की स्वायत्तता का मामला उठाया गया...कोई भी दल नहीं चाहता कि सीबीआइ पूरी तरह स्वतंत्र तरीके से काम करे. दलों की इस भावना को समझते हुए सरकार ने लोकपाल के मसौदे में सीबीआइ के निदेशक की चयन प्रक्रिया को बदलने की बात तो शामिल कर ली, लेकिन इसे लोकपाल के दायरे से बाहर कर दिया. जबकि, टीम अन्ना की मांगों में सीबीआइ को लोकपाल के दायरे शामिल करना प्रमुख है.
इस मसले पर प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा का रुख भी स्पष्ट नहीं है. भले ही भाजपा मौजूदा बिल को कमजोर बता रही हो, लेकिन सीबीआइ के मामले पर वह अपना पत्ता नहीं खोल रही है. पार्टी का कहना है कि इस मसले पर वह सदन में अपनी बात रखेगी. अगर मौजूदा लोकपाल मसौदे पर संसद में सभी दलों की राय एक जैसी रही और यह विधेयक पास हो गया, तो सरकार का पलड़ा भारी हो जायेगा. इससे एक तरह से लोकपाल पर अन्ना भी सिर्फ़ आंदोलन भर बन कर रह जायेंगे.
लोकपाल बिल में संशोधन की जितनी बार अन्ना आवाज उठायेंगे, उसे संसद की सर्वोच्चता से जोड़कर उनकी धार को कुंद कर दिया जायेगा. सरकार जनमानस में यह छवि बनाने की कोशिश करेगी कि अन्ना की कई मांगों को स्वीकार करने के बावजूद वे गैरवाजिब मांग कर रहे हैं और इस तरह इस लड़ाई को संसद बनाम अन्ना कर दिया जायेगा.सरकार ने बड़ी चालाकी से, अन्ना और राजनीतिक दलों की मुख्य मांग प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में कर, दलों के बीच मतभेद को काफ़ी कम कर दिया. एक बार कानून संसद से पास हो गया तो इसका विरोध लंबे समय तक नहीं हो सकता है. लेकिन, अन्ना भी मंङो हुए रणनीतिकार हैं.
                                 अगर 30 दिसंबर से उनका जेल भरो कार्यक्रम सफ़ल हो जाता है, तो बाजी उनके हाथ आ जायेगी. अभी तक के उनके अनशन और आंदोलन को देखकर कहा जा सकता है कि अन्ना लोगों में यह भरोसा पैदा करने में सफ़ल होंगे कि सरकार का लोकपाल कानून कमजोर है और बार-बार के आश्वासन के बावजूद उनकी मांगों को दरकिनार कर दिया गया है. फ़िलहाल विपक्षी दलों के रुख को देखते हुए सरकार का पलड़ा भारी है.
सरकार के रवैये को देखते हुए अन्ना ने पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ़ प्रचार करने की घोषणा की है. जंतर-मंतर पर इसी महीने एक दिन के सांकेतिक अनशन में विपक्षी दलों की मौजूदगी से स्पष्ट होता है कि अन्ना आंदोलन में गैर कांग्रेसी दलों के एकजुट होने की संभावना है. 2जी, कॉमनवेल्थ घोटाले के कारण सरकार की साख वैसे ही निचले स्तर पर पहुंच गयी है. लोगों के बीच यह धारणा है कि कांग्रेस के साथ वही दल हैं, जो भ्रष्ट हैं. ऐसे में कांग्रेस विरोध में प्रचार करने की अन्ना की मुहिम से पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है. हिसार उपचुनाव का नतीजा सामने है. अन्ना पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि उनका विरोध कांग्रेस से नहीं है, वे सिर्फ़ सख्त लोकपाल कानून चाहते हैं. सरकार ने जो सिटीजन चार्टर विधेयक पेश किया है, उसमें भी कई खामियां हैं. जबकि अन्ना सिटीजन चार्टर को भी लोकपाल के दायरे में रखने की मांग करते हैं. ग्रुप सी और डी कर्मचारियों को सीवीसी के अधीन कर भी अन्ना की अहम मांग को दरकिनार कर दिया गया है.

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