Monday, December 20, 2010

हमारा "घुन्घरालू"

"घुन्घरालू",जी हाँ कुछ इसी नाम से मै और मेरे कुछ पत्रकार मित्र उसे बुलाते थे...थे इसलिए कहना पड़ रहा है क्योकि अब वो हमसे काफी दूर जा चूका है...घुन्घरालू नाम मैंने इसलिए रखा था क्योकि उसके करली बाल बेहद आकर्षित करते थे....वो मेरी किसी भी बात पर कभी नाराज नही होता था,अक्सर प्रेस क्लब में वो मुझसे मिलता,देखते ही बोल पड़ता "क्या बात है पांडेयजी बड़े छाए हो टीवी पर,और क्या चल रहा है........"हाँ कभी-कभी हमारे बीच मनमुटाव भी होता लेकिन एक कप चाय की प्याली सारे गिले-शिकवे मिटा देती थी.... हमेशा उसके चेहरे पर खुशियों की लालिमा नजर आती...सभी से कुछ ना कुछ कहते रहना और अपनी बात को बड़ी ही दमदारी से रखना उसकी आदत में शुमार हो चूका था...मेरे घुन्घरालू का असल नाम सुशील पाठक था जिसे लोग "मटरू" के नाम से पुकारते थे...सबका मटरू मेरे लिए घुन्घरालू था,हमेशा रहेगा...कल  {19 दिसम्बर} की रात उन सबके लिए मनहूस रही होगी जो मटरू यानि मेरे घुन्घरालू को जानते थे....रोज की तरह वो दफ्तर से काम निपटा कर रात करीब साढ़े १२ बजे घर के लिए निकला...घर यानि सरकंडा चटर्जी गली पहुँचते-पहुंचते करीब २ बज गए...रोज की तरह घर से कुछ ही दूरी पर अपनी कार पार्क कर मटरू नीचे उतरा ही था की पास घात  लगाये बैठी मौत ने उसे घेर लिया...कुछ लोगो ने मटरू पर गोलिया दाग दी...उसने भागकर जान बचाने की कोशिश भी की,लेकिन घर की दहलीज से चंद कदमो की दूरी पर ही घुन्घरालू की सांसो ने उससे बेवफाई कर दी....घर में मटरू के आने की उम्मीद में दोनों बच्चे और भाभी सो रहे थे...इधर डोली लेकर आई मौत घुन्घरालू को इस जहाँ से बिदा कराकर ले जा चुकी थी....मटरू की लाश औंधे मुह जमीन पर पड़ी थी और कुछ ही दूरी पर पुलिस रात गश्त के नाम पर अलाव जलाकर वक्त काट रही थी....वारदात की जगह से पुलिस के गस्त पॉइंट की दूरी महज ५० मीटर की रही होगी....इसी बीच एक पत्रकार मित्र का उसी रास्ते से गुजरना हुआ,वो भी अखबार की डियूटी कर घर लौट रहा था....रास्ते में औंधे मुह पड़े एक व्यक्ति को देख उस पत्रकार मित्र ने तफ्तीश की तो पाया की मरनेवाला कोई और नही बल्कि सुशील भाई है....इसके बाद सुरेश पाण्डेय ने मोबाईल पर लगभग सभी को ये विचलित कर देने वाली खबर दी....सब मौके पर जुट गए,खबर की गंभीरता को भाप कर पुलिस के आला अफसरों की तत्परता भी देखने लायक थी....जैसे-तैसे मनहूस रात गुजरी,सुबह जिसे-जिसे खबर मिलती गई वो मटरू को आखरी बार देखने पहुँच गया...इस पूरे वाकये ने जहाँ मिडिया जगत को हिलाकर रख दिया वहीँ बिलासपुर शहर के लोग भी कानून व्यवस्था को कोसते रहे....मटरू की हत्या कोई छोटी-मोटी घटना नही थी,इस बार दहशतगर्दो ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को मारकर पुखता प्रमाण दे दिया था की कानून व्यवस्था दहशतगर्दो की चौखट पर सलामी दे रही है....  बदन पर खाकी वर्दी ओढ़े कुछ अफसर और कर्मचारी बीके ईमान की रोटी खाते है ये सुना भर था,देखने का मौका मटरू की मौत के बाद मिला....
  मटरू दैनिक भास्कर में काम करता था...वहां  कम ही लोग होंगे जो मटरू के अंदाज में नौकरी करते रहे होंगे, बिंदास और बेबाकपन की नौकरी कम ही लोग करते है....करीब डेढ़ दशक पत्रकारिता के मैदान में कलम के दम पर कई जंग फतह करने वाले घुन्घरालू को एक विदेशी हथियार के शोर ने भले ही खामोश कर दिया हो लेकिन मटरू कहूँ या मेरे घुन्घरालू के पीछे चलने वालो के बुलंद हौसले अब भी बरक़रार है.....ज्यादा कुछ लिखा नही जाता इसलिए यही रुककर अपने घुन्घरालू को श्रधा सुमन अर्पित करता हूँ और इश्वर से कामना करता हूँ कि मटरू के  परिवार के लोगो को दुःख की बेला में साहस और संबल प्रदान करे...........

3 comments:

  1. ... behad dukhad ... dil dahalaa dene vaalee ghatanaa ... maarmik abhivyakti ... !!!

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  2. ... iss dukhad ghatanaa par bayaan karane ke liye "shabdon kaa abhaav " pad gayaa hai ... kyaa likhoon shaayad saare shabd hi "chhote" honge ... !!!

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