Sunday, March 6, 2011

नजर ना लगे...


                        कल{शनिवार}मैंने एक भगवाधारी शख्स को पीछे से देखा...पीछे से इसकी वेश-भूषा देखकर मैंने सोचा कोई संत-महात्मा का चेला शहर आया होगा लेकिन मेरी नजर इससे आगे आते ही जब इसके हाथो पर पड़ी तो मुझे रुकना पड़ा..कुछ दूरी पर खड़ा होकर मै इसके अंदाजे-बया को निहारता रहा...मैंने देखा वो भगवाधारी इंसान हाथ में नीबू-मिर्च की मालाएं रखे हुए है...पास की एक दूकान पर जाकर उसने बिना कुछ पूछे दीवार के एक कोने में लगी कील पर  नीबू-मिर्च की एक माला टांग दी और आगे बढ़ गया..पास की दो तीन दुकानों में ठीक उसी तरह नीबू-मिर्च की मालाओ को टांग कर वो आगे बढ़ ही रहा था की मुझसे नही रहा गया..मैंने उस शख्स को रोका और सबसे पहले उसका नाम पूछा...जवाब आया... मेरा नाम राजीव माली है साहेब...मैंने कहा आपकी पोशाक या ये कहूँ की आप का गेट-अप बेहद अच्छा लग रहा है...जिसके नाम से मै हाल ही मै वाकिफ हुआ था उस राजीव ने कहा,साहेब पेट की खातिर ये सब करना पड़ता है...साफ़-सुथरा नही रहूँगा तो भूख मौत से गले मिला देगी...धंधा करने के लिए कह लो साहेब या पेट पालने के लिए गेट-अप-सेटअप ठीक रखना पड़ता है.....मैंने पूछा ये नीबू-मिर्च की मालाओ का कौन सा कारोबार है भाई....जवाब आया आज कई दूकानदार है जिनके पास भगवान कहूँ या भगवान की पूजा के लिए वक्त नही होता..उसने बताया पूजा भी अब महीने या सप्ताह की पगार पर करवाई जाती है...राजीव ने कहा जब उसे पता चला की हनुमान भक्त प्रत्येक मंगल-शनि को बुरी नजर से बचने के लिए नीबू-मिर्च की मालाओ को दूकान में टांगते है तब प्रयोग के तौर पर जिस काम को शुरू किया था वो अब बड़े कारोबार की शक्ल अख्तियार करता जा रहा है...धंधे के वक्त मै राजीव का भेजा अपनी जानकारी के लिए फ्राई कर रहा था, हालाँकि उसने मुझे कुछ कहा नही...बात-बात में राजीव ने बताया की शहर में करीब १०० से अधिक दुकाने है जहाँ पर वो नीबू-मिर्च की मालाये देता है...मालाये दो रेंज की है,एक ११ रुपये दूसरी २१ रुपये...मतलब दुकानदार की रसुखियत के मुताबिक माला का दाम...राजीव ने पूछने पर बता दिया की वो नागपुर से आया है और बिलासपुर के कतियापारा में साईं मंदिर में रहता है...अकेला है इस वजह से ज्यादा चिंता नही है...आखरी सवाल जब मैंने किया तो राजीव कुछ झल्लाहट भरी आवाज में उलटे मुझी से पूछ बैठा, इतना सवाल-जवाब क्यों कर रहे हो साब..हमको अपना काम करने दो...ये बोलकर वो आगे बढ़ गया ये जाने बगैर की मै कौन हूँ और क्यों उसके बारे में जानने की इच्छा रख बैठा...बात करते-करते मैंने उसकी तीन तस्वीरे भी खींच ली,उसे कोई आपत्ति नही हुई...वो आगे बढ़ गया पर मेरे कुछ सवाल अब भी अधूरे थे...पास की जिस दुकान पर उसने बला काटने वाली माला दी थी मै वहां पहुँच गया...वो दूकानदार मुझे जानता था शायद टी.वी.में देखा होगा...उसने कहा आइये महराज कैसे आना हुआ...? मैंने बिना लाग-लपेट मन की बात उस दूकानदार से कह दी जिसने मुझे चंद सेकेण्ड पहले ही इज्ज़त से महाराज कह कर पुकारा था...मैंने उससे पूछा ये नीबू-मिर्च की मालाओ का क्या फंडा है...उसने बताया "राजू" नीबू-मिर्च की मालाएं लाता है,दूकान में लगाता है और पुरानी मालाओ को ठंडा करने अपने साथ ले भी जाता है...इस काम में उसे एक दिन में हजार से पंद्रह सौ रुपये मिल जाते है...खर्च काटकर ७५०-८०० रुपये बच जाते है...मै दुकानदार की बाते सुन रहा था और आँखों के सामने चेहरा राजीव का घूम रहा था...
                                राजीव जैसे कई होंगे जो मेहनत की रोटी बड़े ही इत्मीनान से खाते है,उसके{भगवान्}दर पर चैन की नीद लेते है लेकिन कई ऐसे भी है जो दुसरो की मेहरबानी पर बच्चो की जरुरत,बीबी के शौक और अपनी जेब खर्च चलाते है...खैर जिनके ईमान बाजार में चंद सिक्को में बीके हो उनकी सोचकर मै क्यों अपनी उर्जा नष्ट करू...ये सोचकर मैंने उस दूकानदार को फिर मिलने की बात कहकर कदम बढा लिया...पर इस पोस्ट पर लगी राजीव की फोटो मुझे हमेशा कुछ ना कुछ सीख देती रहेगी...खैर राजीव हर मंगलवार,शनिवार को लोगो की दुकान पहुंचकर बुरी बला काटने वाली मालाये लगा रहा है और अपने जीवन को भगवान् की सेवा में अर्पित कर पेट भरने की ईमानदार कोशिश में लगा है...

Friday, March 4, 2011

बात-बात में...

ये तस्वीर मैंने अपने ऑफिस के बाहर लगे एक ठेले के पास से ली है...जिन्दगी के आखिरी पड़ाव पर कदम रख चुकी ये बुढिया अकेली नही है,घरवालो ने निकल दिया है इस वजह से बिक जाने लायक चीज बीनकर पेट की आग बुझा लेती है...कभी खाली शराब की बोतल तो कभी कुछ और...चाय पीने फूटपाथ पर बैठी थी...उसके इन्तेजार की ये अदा मुझे झकझोर रही थी,क्या बच्चे ऐसे ही होते है...? कुछ देर सोचते-सोचते मै इसकी तस्वीर कैमरे में उतारता रहा ....

                                             इसे कुदरत का करिश्मा ही कहेंगे की जिनकी चार टांगे होनी चाहिए वो दो पैरो पर चलने की कोशिश कर रहे है...ये तस्वीर हमारे बिल्हा के संवाददाता संजय ने ग्राम निपनिया से ली है...गाँव में एक कुतिया ने तीन बच्चो को जन्म दिया है जो दो पैरो वाले है...वफ़ादारी की मिसाल बने कुत्तो की दुनिया बड़ी ही निराली है,गांव में जन्मे कुतिया के ये बच्चे जहाँ दो पैरो पर चलने की कोशिश कर रहे है वही गांव वालो के लिए ये अजूबा बने हुए है...   

                                             
                           महाशिवरात्रि पर चांटीडीह{बिलासपुर}में तीन दिनों तक मेला लगा...पिछले ९० बरस से लग रहा है,आगे भी लगेगा...इस मेले में जहाँ शहरी और ग्रामीण सभ्यता का संगम होता है वही कई चीजे आउट ऑफ़ फैशन बिकती नजर आई...एक ओर जहाँ पुराने आडियो कैसेट बिक रहे थे,वहीँ एक लड़का वजन नापने वाली बिगड़ी मशीन लिए जमीं पर बैठा था...जिस तरह से संचार क्रांति के इस दौर में पुराणी आडियो कैसेट बिक जाने की उम्मीद थी ठीक उसी तरह वजन नापने वाली मशीन उस पर चढ़ने वाले के बोझ तले दबकर काँटा तो होला ही देती..इस उम्मीद और विश्वास के बीच भगवान् जी एकदम अकेले नजर आये...भगवन के नाम पर भीख मांगने का प्रोफेशन काफी पुराना है...ऐसे में जिसने भी भगवान् को भगवान् के भरोसे छोड़ दिया तो क्या गलत किया.. 

                                                    जिस आस्था के मेले में भगवन से लेकर सब कुछ उम्मीदों पर चल रहा था वहा असली होने का भरम भी कई चीजे कराती रही...सिल्वर रंग से रंगी मछली दूर से असली दिखाई देती रही...ठीक उसी तरह मिट्टी का सीताफल एक बारगी अब भी असली होने का एहसास करा जाता है...मेले में कई चीजे थी जो केवल बेचने के लिए ही ली गई थी ऐसे में उनकी गुणवत्ता का ख्याल ना खरीददार को था,ना दूकानदार हर माल २ रूपये में बेचकर कोई गारंटी दे रहा था....