Thursday, April 19, 2012

माँ कोसगाई की महिमा !


कोसगाई एक ऐसा धाम जहां की यात्रा जीवन के कष्टों से मुक्ति दिलाने के लिए काफी है,माँ का एक ऐसा दरबार जहां से कोई भी निराश नही लौटा ! मुह मांगी हर मुराद पूरी होगी,बस मन की पवित्रता जरुरी है ! आज यात्रा की इस कड़ी में माँ के उसी धाम को हम बढ़ चले है,जहां मन्नतो की पुकार जल्दी-जल्दी सुनी जाती है ! कोरबा से कटघोरा मार्ग पर फुटका पहाड़ है ! काफी ऊँचा और खुबसूरत वादियों को अपने कलेजे में समेटे फुटका पहाड़ की कई कहानियाँ है ! इन वादियों की ख़ामोशी भी सुकुनियत की नीद के लिए काफी है ! हम कोरबा से अजगर बहार की ओर जाने वाली राह पर चले और अजगर बहार से कुछ दूरी पहले ही उस राह पर मुड़ गये जहां की फिजाओं में माता की भक्ति और उसके आशीर्वाद की खुशबु फैली हुई है ! कोरबा से करीब-करीब ३० किलोमीटर दूर कोसगाई है जहां पर फुटका पहाड़ की ऊंचाई समुन्द्र तल से १५७० मीटर है ! जितनी ऊंचाई है उतनी ही खूबसूरती भी ! हरी-भरी वादियों के बीच कई जगह ऊंचाई पर खिले मौसमी फूल प्रकृति के अनुपम नजारे और श्रृंगार की हकीकत मन को अपनी ओर खींचती है ! इन वादियों के बीच से कानो तक आता  पक्षियों का कलरव,जंगली और इमारती वृक्षों की मादकता भी खुशबु मन को नशेमन बना देती है !
                                             हम एक जगह से खड़े होकर कभी धरती के सीने पर खड़ी ऊँची-नीची पहाड़ियों को देखते तो कभी हजारो मीटर ऊंचाई पर बैठी माँ कोसगाई के दरबार पर नजरें घुमाते ! हमारी टीम के कुछ साथियों ने बताया की माँ जिस जगह पर बैठी है वो काफी ऊंचाई पर है ! जिस रास्ते कहूँ या फिर विकास की इबारत के लिए तैयार की गई सीढियों पर हम चढ़ रहे है वो भी कुछ से पहले ही बनाई गई है ! मगर माँ के दरबार की ओर जाने वाले रास्ते पर किये गए काम में भी कमीशन का पूरा-पूरा ख्याल रखा गया ऐसा मैंने अपनी नेगेटिव सोच के चलते सोच लिया ! लोग कहते है मै नेगेटिव सोच रखता हूँ,ऐसा है तो भी मै खुश हूँ क्यूंकि मै ये मानता हूँ की ईमान,जज्बात,इज्जत उन जरूरतों से बढ़कर नही है जिसको पूरा करने की चाह में हम इंसान कहीं भी कभी भी समझोते को तैयार हो जाते है ! वैसे मै ये सब क्यूँ सोच रहा हूँ,बेकार की बातो में खूबसूरती की कई चीजे पीछे छोड़ आया हूँ ! साथियों ने पहाड़ चढते-चढ़ते बताया कोसगाई में एक खुबसूरत किला है जिसके अवशेष भर अब देखने को मिलते है ! प्राचीन काल की मूर्तियों को देखकर उस गौरव का अंदाजा लगाया जा सकता है जिसे हम हिन्दुस्तानी बताते-बताते नही थकते ! वक्त की नजाकत के आगे एक बार हम फिर मजबूर है लेकिन जो दिखाई दिया,जितना मुझे बताया गया मै आपको बता रहा हूँ ! यहाँ पुराने किले की धराशाई दीवारों की मजबूती बीते जमाने की सुरक्षा का एहसास कराती है ! यहाँ एक टॉप खाना भी है जिसकी दीवारों पर संभलकर हम उस जगह पर पहुंचे है जहां से कभी सुरक्षा प्रहरी किले की ओर आने वाले दुश्मनों पर नजर रखा करते थे ! सदियाँ बीत गई है,वक्त के साथ-साथ दीवारों की उम्र भी बहुत हो चली है ! यहाँ एक प्रवेश द्वार भी है जिसको काटकर अब सीढ़ियों की शक्ल दे-दी गई है ! कहते है इस गुफा नुमा रास्ते से एक बार में एक ही आदमी प्रवेश कर सकता था,अब तो कई लोग एक साथ चढ़-उतर रहे है ! हाँ खतरे बहुत है फिर भी हादसे की उम्मीद कम होती है क्यूंकि ऊपर से माँ सबका ख्याल रहती है ! वो जगत जननी है,हर भक्त की औकात उस दरबार में बराबर है फिर क्या छोटा ,क्या बड़ा ! हम करीब करीब काफी ऊपर तक चुके है बस थोड़ी दूर और है ! रास्ते भर फूलती साँसों को पानी के सहारे दबाते रहे,रस्ते भर उन भक्तो की सूरत पर नजरे गडाते रहे जो ह्जारो मीटर ऊपर जाकर नीचे रहे है ! आस्थावानों की सूरत मन में हौसला बढ़ा रही है ! लगता है मंजिल करीब है,माँ के दरबार की दूरी और हमारे बीच बस चंद सीढियों का फासला बच गया है ! हम उस माँ के दरबार में गए है जिसे भक्त कोसगाई दाई के नाम जानते है ! माँ की महिमा निराली है,सूबे के छत्तीस-गढ़ों में एक गढ़ ये भी है ! कहते है कलचुरी शासको की कुलदेवी माँ कोसगाई की महिमा जिनती निराली और अपरम्पार है उतनी किवदंतियां इस दरबार से जुडी हुई है ! माँ की मनमोहिनी सूरत देखकर सच में ऐसा एहसास हुआ की संसार में इसके सिवा कुछ भी तो नही है ! प्राचीन मूरत के तेज को देखकर यकीन किया जा सकता है की माँ उन शासको की कुलदेवी है जिनके गौरव का यशगान आज भी लोग करते है ! हमने माँ के सिद्ध धाम पर शीश नवाया ! हजारो-हजार श्रीफल और मन्नतो की चुन्निया इस दरबार में भक्तो की अगाध श्रध्दा का परिचय ही नही देती बल्कि ये कहती माँ सबकी बिगड़ी बनाने वाली है !इस देवी के मन्दिर की छत नही है , चारो ओर दीवारे है मगर छत खुली हुई है ! ऐसा नही है की माँ के दरबार की छत नही बनाई जा सकती कई बार कोशिशे भी की गई मगर एक अनहोनी सब कुछ बिगाड़ कर रख देती है ! इस मन्दिर के पुजारी ने बताया देवी खुले आकाश में रहना चाहती है,जिसने भी इस मन्दिर पर छत बनानी चाही उसके साथ कुछ-ना कुछ बुरा हो गया ! सैकड़ो साल बीत गए माँ बारिश,गर्मी की तेज धूप और कड़ाके की ठण्ड में रहती है !यहाँ दूर-दूर से भक्त आते है,मन की मुरादे इस पहाड़ पर बैठी कोसगाई माँ तुरंत सुन लेती है तभी तो दुर्गम रास्ते से होकर भक्त जब माँ की चौखट पर पहुँचते है तो सारी थकान सारे कष्ट मानो दूर हो जाते है ! यहाँ पर एक छोटा सा कुण्ड है जिसमे कभी सैकड़ो बकरों की बलि दी जाती थी मगर इस कुण्ड की कम गहराई कभी भी भरी नजर नही आती थी ! पुजारी कहता है कई साल बीत गये अब बलि मन्दिर के नीचे फाड़ के दूसरे हिस्से में दी जाती है !
                                            एक ओर माँ का दरबार दूसरी ओर विहंगम पहाड़ियों का नजारा ! माँ के दरबार में भक्तों की हाजिरी लगने के बाद हमने कुछ से बात की सबने कहा माँ के आशीर्वाद के बिना जीवन की नैया पार होना कठिन है ! हमने यहाँ के इतिहास के बारे में भी जाना ! कहते है १६ वीं शताब्दी में रतनपुर के शासक बहरेन्द्र साय के द्वारा कोसगाई में बने किले का जीर्णोधार कराया गया ! यहाँ दो शिलालेख भी मिले है जिन्हें वर्तमान में नागपुर के संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है ! ये पवित्र धाम इतिहास और पर्यटन के दृष्टिकोण से काफी मायने रखता है ! यहाँ पहाड़ के एक हिस्से में गौमुखी झरना है जहां तक पहुंचना आसान नही है ! कई जगह प्राचीन मूर्तियों में ठाकुर देव और उमा महेश देखने को मिलते है ! कभी-कभी लगता है धरती पर ही स्वर्ग है क्यूंकि यहाँ माँ है,हसीं वादियाँ है,पहाड़ है,झरने है ,पक्षी है,फूल है और सबसे बड़े वो लोग है जिन्हें हम इंसान कहते है ......!