Friday, January 25, 2013

ये कैसी आज़ादी


..............वास्तव में ये कैसी आज़ादी है ! तिरसठ साल के बूढ़े गणतंत्र में आज भी किसी कोने से भय-भूख और असुरक्षा की सिसकियाँ सुनाई पड़ जाती ! दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश की हकीकत इन तस्वीरों के ज्यादा साफ-सुथरी नही है ! कचरे के ढेर से पेट की भूख मिटने की ये मशक्कत तकरीबन देश के हर इलाके में नजर जाएगी मगर सियासी मठाधीश इन तस्वीरों से केवल अपना गला साफ़ करते है ! वक्त-बे-वक्त मैले कुचैले और भूखे लोगों की सूरत पर सियासत का सुरमा लगाने वाले गरीबी हटाने का शोर ६३ साल से मचा रहे है ! गरीब हटते जा रहें है,गरीबे तो भागने का नाम ही नही लेती ! क्या करें ये होंगे तो किसके नाम पर करोडो की योजनाये बनेगी किसके नाम की रोटी पर मंहगा बटर लगाकर सफेदपोश चेहरे की चमक बढ़ाएंगे ! ये होंगे तो कईयों के कुर्तों पर कलप नही चढ़ पायेगा ! आज देश ६३ वां गणतंत्र मना रहा है ! देश की आन-बाण-शान कहा जाने वाला  तिरंगा असमान में लहराकर उन सूरमाओं की देशभक्ति और कुर्बानी की याद दिल रहा है जिन्होंने इन जैसे करोड़ों बेघरबार,भूखे और जरूरतमंदों के लिए आजादी के हसीं ख़्वाब संजोये थे ! जिनकी कुर्बानी पर देश की आज़ादी का भार है वो भी आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था से तकलीफ में होंगे ! हे भगवान् ,यक़ीनन गाँधी होते तो आज़ाद भारत की ६३ साल की उम्र में इस हाल पर हे राम नही हे भगवान् ही कहते !
    महंगाई डायन ने आम जनता की थाली से मुह मोड़ रखा है ! एक बार में रोटी,चावल,दाल और सब्ज्जी सपना बनकर रह गई है ! रसोई गैस ने इतना रुला रखा है की अब इलेक्ट्रिक चूल्हे बिजली का बिल बढ़ा रहें है ! पेट्रोल की आग ने कईयों को साइकिल की सवारी करवा दी है फिर भी कुछ लोगों के विकास को भारत का आथिक विकास का  पैमाना मानने वालों ने इन लोगो की ओर नजरे इनायत नही की जिनके नाम से देश की सरकार करोडो रुपयों का फंड हर साल राज्य की सरकार को भेजती है !
                        इस राज्य में राम के नाम की रोटी खाने और सियासी जंग में जय श्री राम के नाम पर वोट माँगने वाले राज कर रहें है मगर राजा राम के उन आदर्शों का एक भी फार्मूला यहाँ लागू नही है ! वैसे भी देश में भगवान् बने नेताओं ने अपने नाम को राम श्याम और हनुमान से बड़ा कर लिया है ! भाजपा ने अब तो राम को भी एजेंडे से गायब कर दिया है फिर इन गरीबों की मनोदशा को समझने और सुनने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम का ख़याल भी जहन में क्यूँ लायें ! यहाँ हक़ माँगने वालों को लाठियां मिलती है ! सरकारी जमीने गरीबों के लिए नही है वो समृद्ध तबके की मिलकियत है ! सरकारी दामादों के हक़ पर पार्टी के कार्यकर्ताओं का कब्ज़ा है ! कमीशन के खेल में हर दिन शहरी इलाकों की सूरत संवरती दिखती है मगर गाँवों में सड़क,नाली और पगडण्डी एक जैसी दिखाई पड़ती है बस आपके देखने का नजरिया क्या है इस पर निर्भर करता हैप्रशासन के दम पर हुकूमत करने वाले क्यूँ भूल जाते है ये नंगे-भूखे और जरूरतमंद लोग लोकतंत्र के वो अम्पायर है जिनकी उंगली पर सत्ता की कुर्सी टिकी होती है !

                                              वैसे इनकी खातिरदारी का वक्त गया है ! साल के अंत में चुनाव जो होने वालें है !अब कुछ दिनों तक गणतंत्र के गरीबों का ख़याल सफ़ेद वस्त्र में लिपटे भाग्य विधाता करेंगे !       ये देश के भाग्य विधाताओं को चुनने वालों की  इम्पाला है, केवल एक पहिये पर चलती है, एक बार में एक ही सवार हो सकता है ! जिनको हीटर की तपिश से शरीर गर्म करने की आदत है उन्हें अलाव की जलती लकड़ी के धुंएँ से घबराहट होगी ! गरीबों के सर पर छत हो हो इनके रहबर मौसम के मिजाज़ के मुताबिक़ बने घरों में रहते है ! जो देश की सत्ता बनाने का माद्दा रखते है वो कही कचरा बीन रहे है ,कहीं रिक्शा खींच रहें है तो कही मिटटी को सांचे में डालकर आकर देने में जुटे है ! गीली मिटटी को आकर मिल गया,पटरी पर दौड़ती ट्रेन हर वक्त मंजील की ओर भाग रही है मगर कुछ नही मिला तो इन ६३ सालों के आज़ाद मुल्क में आज़ादी के सही मायने !    

Friday, January 11, 2013

...ये भी तो किसी की बेटियाँ है !


"दामिनी"..... एक काल्पनिक नाम ! हर कोई वाकिफ हो चूका है दामिनी से ! सबने देखा है दामिनी के बुलंद इरादों को ! सबने महसूस किया है दामिनी के दर्द को ! करीब दो सप्ताह तक दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल से लेकर सिंगापूर के एलीजाबेथ जैसे नामचीन अस्पताल में डाक्टरों की कोशिश जारी रही की दामिनी की जिन्दा रहने की खवाहिश पूरी हो सके ! मगर सारी कोशिशे नाकाम रही ! न दुआ काम आई न दवा ने ज्यादा दिनों तक दामिनी का साथ दिया ! दामिनी के साथ हुए वाकये पर देश कईयों दिन तक उबाल मारता रहा ! जगह -जगह महिला हितो के नारों के बीच उन ६ दरिंदों को फांसी की सजा देने का शोर कान में घुसता रहा लगा जैसे जल्द ही कोई बदलाव की खबर उस दर्द और देश की जानता की भावना को राहत देगी और दिल्ली के दरिंदो की कहानी फिर इस मुल्क में कहीं नही दोहराई जायेगी ! मगर देश के हालत को देखकर मेरी ये सोच जल्द ही बदल गई ! जब मशाले जलाने का वक्त था तो देश भर में केवल मोमबत्तियां जलाई गई ! जिसको जैसे बन सका दामिनी के लिए संवेदना जाहिर करता दिखा ! देश के कईयों सियासी घडियालों ने भी आँख में पानी होने का सबूत दे डाला ! कभी मनमोहन तो कभी सोनिया तो कभी सुशिल कुमार शिंदे को बताना पड़ा की वे भी बेटियों के बाप है ! खूब बहस हुई,बड़े -बड़े विदवजजनों को कईयों दिन तक मै टी.वी. पर सुनता रहता ! लगा दामिनी सबको जगा गई है,फिर मुझे लगा मिडिया न होता तो कौन सी दामिनी और कौन से दरिन्दे ? कुछ भी पता नही चलता,कईयों दामिनी आज भी इस देश में दर्द्द से कराहती हुई इन्साफ की उम्मीद में दम तोड़ रही है मगर उनके लिए न मोमबत्तियां है ना नेता ये कहने के लिए सामने आते की वो भी बेटियों के बाप है ! 
                        पिछले कुछ दिनों से मै एक बात पर काफी देर तक सोचता हूँ की क्या मेरे राज्य के कांकेर जिले के झालियामारी आश्रम में रहने वाली मासूम बच्चियां किसी की बेटी नही है ? क्या केवल सियासी मुद्दे के लिए उन बेटियों का इस्तेमाल किया जा रहा है जिनके साथ पिछले एक साल से गेंगरेप हो रहा था ! ३० से अधिक मासूम बच्चियों के साथ दरिंदगी का नंगा खेल चलता रहा और किसी को मासूमो के चीत्कार का एहसास तक न हो सका ! किसी ने इनके दर्द पर मरहम लगाने के नाम पर या फिर इनके साथ हैवानियत करने वालों के खिलाफ आवाज़ तल्ख़ नही की ! शायद मामला दिल्ली का नही था या यूँ कहूँ की खबर लोकल अखबारों और चैनलों तक ही सीमित थी ! आदिवासी मासूमों के साथ गैंगरेप हुआ वो भी एक बार दो बार या फिर दस बार नही पूरे एक साल तक ! खबर तो ये भी है की एक मासूम उन दरिंदों का शिकार कक्षा पहली से होती रही ! पर इनके नाम पर कोई मोमबत्ती नही जली,कोई प्रदर्शन नही हुआ ! जो कुछ हुआ सियासी चाल का एक हिस्सा था पर उन मासूमों के दर्द पर किसी के दिल में रत्ती मात्र की कोफ़्त हुई हो पूरे राज्य में नहीं दिखाई पड़ा ! 
                         मामला सामने आया तो सरकार ने आश्रम कर्मियों की बर्खास्तगी का आदेश जारी कर दिया ! सियासतदारों को सत्ता पक्ष पर मुह फाड़ने का एक मौका मिल गया ! बारी-बारी से सियासतदारों का आश्रम जाकर मासूमो का हाल-जान्ने के बहाने उनके घाव को कुरेदने का मौका मिल गया ! कांकेर की घटना ने समाज में छिपे दरिंदो की हकीकत तो उजागर की ही साथ ही उन सियासी मगर मचछों की फरेब और दोगली सूरत को आइना दिखा दिया ! मासूमों के दर्द पर कोई क्या मरहम लगाएगा ! जो जख्म है वो ताउम्र का घाव है जिनको भरने का काम सिर्फ और सिर्फ मौत नाम का मल्हम ही कर सकता है ! 

गुड़िया खुश है....


इस गुडिया के जीवन की कहानी रहस्य,रोमांच से लबरेज किसी फिल्म की पटकथा से कम नही है ! घर की गुडिया ६ साल बाद माँ से मिली है लिहाज आज आँखों में अजीब सी चमक है ! कहीं खो गई थी,इस गुडिया को माँ ने घर की पाठशाला में वो सबक याद नही करवाया जिसमे गैरो की परछाई  से दूर रहने की नसीहत होती है ! करीब ६ साल पहले जब गुडिया ४ साल की थी तो कसी ने चाकलेट दिलाने के नाम पर इसको माँ के आँचल से दूर कर दिया ! वो कौन था रहस्य आज तक बरकरार है ! गुडिया उस अजनबी की उंगली थामे एक चाकलेट की फेर में सपनो के महानगर मुम्बई पहुँच गई ! सफ़र में माँ की याद आती तो गाल पर चांटे भी पड़ते फिर चुप रहने की मिन्नतें होती ! जिसने अभी ठीक से चलना नही सीखा था वो मुंबई की भीड़ में कही झाड़ू तो कहीं हाथ फैलाकर अपना पेट पलती थी क्यूंकि जिसने चाकलेट की लालच दी थी वो गुडिया को मुंबई के रेलवे प्लेटफार्म पर भागती जिंदगी के बीच गुम हो जाने की उम्मीद लिए छोड़ गया था ! भागती मुंबई में गुडिया कईयों दिन तक रोती,बिलखती खुद को लोगो के कदमो में दब जाने से बचाती रही ! ६ साल के अंतहीन सफ़र के दर्द का एहसास चेहरे पर साफ़ दिखाई देता है मगर जुबान है की उस दर्द को अच्छे से बखान नही कर पाती ! 
                  आज आँखों में काजल चहरे पर किसी कंपनी का सुगन्धित पावडर और व्यवस्थित बाल,आईने में खुद को गुडिया ने नही पहचाना ! कई साल बाद आईने के सामने जो आई अब खुश है की माँ-बाप के घर में है ! दो भाई भी है जिनको पहचानने की कोशिशे जारी है क्यूंकि एक महाशय तो कुछ ही साल पहले आये है ! गुडिया की माने तो उसे मुंबई से किसी अंकल ने अपने घर ले जाकर भी रखा ! इस दौरान प्रियंका जो घरवालों की गुडिया थी उसकी तलाश जारी थी ! माँ कहती है अखबारों में इश्तेहार दिया,टी,वी,पर फोटो दी और जगह -जगह मासूम गुडिया की खोज में ६ साल बीत गए !
                      गुडिया के पिता की माने तो कुछ ही दिन पहले उसे झारखण्ड के एक परिचित से सुराग मिला की एक व्यक्ति के एक छोटी सी बच्ची है जो इतना जानती है की उसके पापा गाड़ी चलाते है और उसका घर दीपका में है ! बस इतनी सी जानकारी ने विजय की आँखों में उम्मीद की नई चमक ला दी ! बताये हाल मुकाम पर पहुंचे तो गुडिया थी जिसकी तलाश में आँखों का पानी भी सुख चूका था !
                                                 अब गुडिया अपने घर पर है,इलाके के थानेदार साहेब भी खुश है की एक परिवार की खुशियाँ वापस लौट आईं है ! गुम इन्सान के उस पुराने पन्ने को पलट कर साहेब ने सारी जानकारी मिडिया को दे दी मगर ये नही बता पाए की खुद कहाँ-कहाँ तलाश किया !  हाँ बच्ची को कभी गोद में बिठाकर तो कभी कंधे पर रखकर पूरे स्टाफ के साथ फोटो जरूर खीचवा ली  !
                          गुडिया को ६ साल पहले किसने चाकलेट का लालच दिया,कौन था वो शख्स जो मुंबई ले जाकर गुडिया को भीड़ के बीच कुचलने के लिए अकेला छोड़ दिया कोई नही जानता ! कईयों सवालों से घिरा बस एक सच आज सामने है की विजय की गुडिया ६ साल पहले कही गुम हो गई थी अब घर में कभी माँ के आँचल से लिपटकर दुलार करती है तो कभी भाइयों के साथ घर के आँगन में छुपा-छुपी का खेल खेलती है !