Friday, January 11, 2013

गुड़िया खुश है....


इस गुडिया के जीवन की कहानी रहस्य,रोमांच से लबरेज किसी फिल्म की पटकथा से कम नही है ! घर की गुडिया ६ साल बाद माँ से मिली है लिहाज आज आँखों में अजीब सी चमक है ! कहीं खो गई थी,इस गुडिया को माँ ने घर की पाठशाला में वो सबक याद नही करवाया जिसमे गैरो की परछाई  से दूर रहने की नसीहत होती है ! करीब ६ साल पहले जब गुडिया ४ साल की थी तो कसी ने चाकलेट दिलाने के नाम पर इसको माँ के आँचल से दूर कर दिया ! वो कौन था रहस्य आज तक बरकरार है ! गुडिया उस अजनबी की उंगली थामे एक चाकलेट की फेर में सपनो के महानगर मुम्बई पहुँच गई ! सफ़र में माँ की याद आती तो गाल पर चांटे भी पड़ते फिर चुप रहने की मिन्नतें होती ! जिसने अभी ठीक से चलना नही सीखा था वो मुंबई की भीड़ में कही झाड़ू तो कहीं हाथ फैलाकर अपना पेट पलती थी क्यूंकि जिसने चाकलेट की लालच दी थी वो गुडिया को मुंबई के रेलवे प्लेटफार्म पर भागती जिंदगी के बीच गुम हो जाने की उम्मीद लिए छोड़ गया था ! भागती मुंबई में गुडिया कईयों दिन तक रोती,बिलखती खुद को लोगो के कदमो में दब जाने से बचाती रही ! ६ साल के अंतहीन सफ़र के दर्द का एहसास चेहरे पर साफ़ दिखाई देता है मगर जुबान है की उस दर्द को अच्छे से बखान नही कर पाती ! 
                  आज आँखों में काजल चहरे पर किसी कंपनी का सुगन्धित पावडर और व्यवस्थित बाल,आईने में खुद को गुडिया ने नही पहचाना ! कई साल बाद आईने के सामने जो आई अब खुश है की माँ-बाप के घर में है ! दो भाई भी है जिनको पहचानने की कोशिशे जारी है क्यूंकि एक महाशय तो कुछ ही साल पहले आये है ! गुडिया की माने तो उसे मुंबई से किसी अंकल ने अपने घर ले जाकर भी रखा ! इस दौरान प्रियंका जो घरवालों की गुडिया थी उसकी तलाश जारी थी ! माँ कहती है अखबारों में इश्तेहार दिया,टी,वी,पर फोटो दी और जगह -जगह मासूम गुडिया की खोज में ६ साल बीत गए !
                      गुडिया के पिता की माने तो कुछ ही दिन पहले उसे झारखण्ड के एक परिचित से सुराग मिला की एक व्यक्ति के एक छोटी सी बच्ची है जो इतना जानती है की उसके पापा गाड़ी चलाते है और उसका घर दीपका में है ! बस इतनी सी जानकारी ने विजय की आँखों में उम्मीद की नई चमक ला दी ! बताये हाल मुकाम पर पहुंचे तो गुडिया थी जिसकी तलाश में आँखों का पानी भी सुख चूका था !
                                                 अब गुडिया अपने घर पर है,इलाके के थानेदार साहेब भी खुश है की एक परिवार की खुशियाँ वापस लौट आईं है ! गुम इन्सान के उस पुराने पन्ने को पलट कर साहेब ने सारी जानकारी मिडिया को दे दी मगर ये नही बता पाए की खुद कहाँ-कहाँ तलाश किया !  हाँ बच्ची को कभी गोद में बिठाकर तो कभी कंधे पर रखकर पूरे स्टाफ के साथ फोटो जरूर खीचवा ली  !
                          गुडिया को ६ साल पहले किसने चाकलेट का लालच दिया,कौन था वो शख्स जो मुंबई ले जाकर गुडिया को भीड़ के बीच कुचलने के लिए अकेला छोड़ दिया कोई नही जानता ! कईयों सवालों से घिरा बस एक सच आज सामने है की विजय की गुडिया ६ साल पहले कही गुम हो गई थी अब घर में कभी माँ के आँचल से लिपटकर दुलार करती है तो कभी भाइयों के साथ घर के आँगन में छुपा-छुपी का खेल खेलती है !

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