Wednesday, May 30, 2012

महादेव मन्दिर...पाली


कोरबा के गर्भ में जितनी प्रचुर मात्रा में खनिज संपदा दबी हुई है उससे कहीं ज्यादा वो खजाना छिपा हुआ है जिसकी खोज आज भी जारी है ! एक ऐसा खजाना जो कोरबा की हजारों साल पुरानी ऐतिहासिकता और सभ्यता का प्रमाण देती है ! यात्रा की टीम भी लगातार उन्ही खजानों और धरोहरों की ओर जाती है ताकि आपको याद दिलाया जा सके कि कितना कुछ है जिसे या तो आप देख नही पाए है या देखकर आगे निकल गए है ! आज की मंजिल पाली है जहां महादेव का ११ वीं शताब्दी का एक भव्य मन्दिर है ! हम कोरबा से कटघोरा होते हुए पाली की ओर बढ़ रहे है ! हमको जिला मुख्यालय से करीब ७० किलोमीटर चलना है ! बंद गाड़ी में भी नवतपा का ऐहसास होता रहा,चौड़ी सड़क पर वाहनों की रफ़्तार विकास और गर्मी दोनों का ऐहसास कराते रहे ! इस बार हमारी टीम के साथियों को सड़क के किनारे कोई भी ऐसे फलदार पेड़ नही दिखाई पड़े जिसे देखकर वो रुकने को कह सके ! करीब डेढ़ घंटे में हम अपने उस मुकाम के पास है जिसे देखने की लालसा तकरीबन हर उस इंसान को होती होगी जो इस मार्ग से गुजरता होगा
                   कोरबा-बिलासपुर मुख्य मार्ग पर सड़क के किनारे पाली ग्राम में स्थित इस मन्दिर की भव्यता दूर से ही अपनी ओर आकर्षित करती है ! वैसे तो पुरातत्व विभाग ने इसे सहेजने और देखरेख का जिम्मा अपने कंधो पर उठा रखा है मगर हम जब यहाँ पहुंचे तो कोई भी ऐसा शख्स नजर नही आया जो हमसे ये पूछता कहाँ से और किस प्रयोजन से आये हो ! हम अपने काम पर लग गए,मन्दिर के मुख्य द्वार पर नंदी बाबा की दुर्दशा हमको तो नजर आई मगर पुरातत्व विभाग और प्रशासन को नही दिखाई देती ! नंदी बाबा को प्रणाम कर हम मन्दिर के भीतर पहुँच गए ! भीतर तीन लोग गर्म ह्वावों को चिढाते गहरी नींद में सो रहे थे ! हमने आवाज़ दी,किसी के भी कानो में जूं नही रेंगती देख मेरी सहयोगी ने महादेव के साथ-साथ उन महापुरुषों को उठाने के लिए जोर-जोर से घंटियाँ बजायीं ! इतने शोर से महादेव तो उठ गये होंगे मगर फर्श पर चैन की नीद ले रहे महापुरुषों की नाक एक सुर में बजती रही ! खैर हमने प्राचीन महादेव मन्दिर के भीतर और बाहर की कलाकुशलता को बारीकी से देखना शुरू किया ! मै इस प्राचीन दरबार में पहली बार आया हूँ,यहाँ के शिवलिंग पर शीश नवाकर मैंने आदत के मुताबिक़ कुछ मांग ही लिया ! इतिहासकार बताते है बाण वंशी शासक विक्रमादित्य प्रथम ने कोसल राज्य की जीत की ख़ुशी में इस मन्दिर का निर्माण करवाया था ! विक्रमादित्य प्रथम की ख़ुशी ८९० ईसवी से ८९५ ईसवी तक रही ! कालांतर में कलचुरी शासक जाजल्व देव ने इस मन्दिर का जीर्णोधार करवाया ! कहते है मन्दिर के गुम्बद को सहारा देने रत्नपुर के शासक जाजल्वदेव प्रथम ने १२ वीं शताब्दी में इस हिस्से को बनवाया था ! भीतर महादेव का भव्य शिवलिंग लोगो की आस्था का बड़ा केंद्र है ! भीतर छोटे बड़े कईयों शिवलिंग है जिनकी पूजा भक्त बराबरी से करते है ! त्रिपुरारी के इस दर पर मन्नते पूरी होती है ! मन्दिर के गर्भ गृह में कईयों देवी देवतावों की कलाकृतियाँ पत्थर पर तराशकर बनाई गई है जिनको देखकर कई बार ऐसा लगता है की अब ये बोल पड़ेंगी ! बेशकीमती पत्थरों पर की गई नक्काशी इस बात का प्रमाण देती है की हजारों साल पहले कला कितनी समृद्ध और सम्पन्न थी ! गर्भगृह के द्वार पर दोनों ओर अप्सरावों,जीव-जंतुओं और देवताओं के साथ-साथ राक्षसों की कलाकृतियाँ बनी हुई है ! इस मन्दिर के महादेव को बाज़ार की मिलावटी चीजों से शायद परहेज है तभी तो आवश्यक सूचना वाले इस देश में भक्तो से आग्रह किया गया है की शिव का दुग्ध अभिषेक पैकेट या फिर डिब्बा बंद दूध से ना करे उसमे केमिकल की मिलावट है जिससे शिवलिंग को नुक्सान हो सकता है,धन्यवाद के साथ सूचना ख़त्म होती है ! इस कागज़ पर लिखी सूचना शायद आम इंसानों के जीवन पर असर नही डालती तभी तो इंसान केमिकल पीये जा रहा है और पत्थर के देवता को बचाने की मनुहार की जा रही है ! इस सोच के लिए पता नही महादेव मुझे माफ़ करेंगे या नही मै नही जानता मगर जो लगा वो कह दिया
                            इस मन्दिर के गुम्बज पर भी बारीकी से नक्काशी की गई है ! ध्यान से देखने पर लगता है किसी राजा के महल में खड़े है ! पत्थर बोलते है,ये सच है तभी तो हजारो साल पुरानी कलाकारी आज भी बोल रही है ! ये पत्थर अपनी सम्पन्नता पर आज भी इठलाते हैपत्थर की मजबूत दीवार पर तराशी गई कई मूर्तियाँ टूट चुकी है,कईयों की मरम्मत की जा चुकी है मगर जान सबमे उतनी ही है ! यहाँ की दीवारों के बीच लोहे के खिड़की,दरवाजे पुरात्तव विभाग की देन है ! सहेजने की फिराक में कईयों कलाकृतियों को महकमे ने खराब भी किया ! इस लोहे के दरवाजे ने यहाँ के कई पत्थरों की जैसे बोलती ही बंद कर दी है फिर भी ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित रखने की कोशिशे अब तक सफल नजर आती है ! इस प्राचीन धरोहर को भीतर से देखा,अब बारी है बाहर से निहारने की ! इस मन्दिर को हमने चारों ओर से देखा ! हर ओर से यहाँ के गौरवशाली इतिहास की खूबसूरती एक जैसी नजर आती है ! मन्दिर के शीश पर लगा झंडा हवा के तेज थपेड़ो के साथ लहरा रहा है ! चारों ओर से लोहे के घेरे में सिमटा इतिहास काफी कुछ कहने की कोशिश करता है मगर पहरा है उस विभाग का जिसने लोगो तक सही जानकारी देने की कभी कोशिश ही नही की है ! लोग यहाँ आते है,महादेव की पूजा करते है और वापस लौट जाते है ! हाँ बाहर किनारे में लगे ढाई बाई ढाई के इस बोर्ड पर किसी की नज़रे ठहर गई तो थोडा बहुत ज्ञान हासिल हो जाएगा ! हमने अब तक जितनी भी यात्रा की,हम आपको जितने भी ऐतिहासिक गढ़,किलों और स्थापत्य कला से जुडी जगहों की यात्रा करवाई उन सभी में जो समानता दिखाई देती है उसमे प्रमुख रूप से शिवलिंग पूजा,शिव-शक्ति की आराधना और भैरव की मूर्तियों के अवशेष मिलते है ! सभी मंदिरों किलों के अवशेषों में गर्भ गृह और गुम्बदों की समानता बताती है की इस पूरे इलाके में १० वीं शताब्दी से लेकर १६ वीं शताब्दी तक का इतिहास बेहद समृद्ध रहा है
                  मन्दिर से लगा एक विशाल सा तालाब है जो इस भीषण गर्मी में पानी की अधिकता के कारण इठला रहा है ! बारहों महीने इस तालाब में पानी भरा रहता है शायद महादेव की कृपा है ! इस तालाब में मछलियाँ बहुत है ! सालाना ठेके पर दिए गए इस तालाब  ने कईयों की शक्लो-सूरत बदल कर रख दी है ! जानकार बताते है इस तालाब के भीतर ढेर सारी प्राचीन मूर्तियाँ है जिनको निकालने की कोशिशे हुईं भी और नही भी ! मतलब इस पानी के भीतर इतिहास का कईयों पन्ना आज भी दफ़न है ! मन्दिर प्रांगन के भीतर पीपल के कई पेड़ है जिन पर स्याह रात के बादशाहों का बसेरा है ! जी हाँ सैकड़ो की संख्यां में लटकते चमगादड़ों पर अचानक हमारी नजरें पड़ी ! नजारा डराने के लिए काफी था मगर हेरानी तब हुई जब रातों के बादशाह दिन के उजाले में तालाब के पानी से अटखेलियाँ करते दिखे ! मै आप लोगो की तो नही जानता पर मैंने चमगादड़ों को दिन के उजाले में इस तरह से उड़ते पहली बार देखा है ! सब कुछ देखकर,जानने की कोशिश कर जब हम वापस निकलने लगे तो इस बंद करे पर हमारी नजरे पड़ गई ! इस कमरे के भीतर इतिहास कैद है जसे देखने के लिए राजधानी में बैठे विभाग के बड़े साहेब से इजाजत लेनी पड़ती है ! कहे को तो ये संग्रहालय है मगर कब खुलता है किसी को नही मालुम ! इस प्राचीन धरोहर को देखकर हमको भोरमदेव और खजुराहों की मूर्तियों की याद गई ! इस प्राचीन धरोहर की यादों के अपने साथ लेकर हम वापस कोरबा लौट आये मगर यात्रा अभी ख़त्म नही हुई है ! हम आपको जल्द ही फिर ऍसी जगह लेकर चलेंगे जहां का अतीत राज्य की सभ्यता,संस्कृति और इतिहास से जुड़ा हुआ है !