Friday, May 4, 2012

छत्तीसगढ़ की पहली राजधानी...तुम्हान


      रत्न गर्भा धरा के कोष में अनमोल प्राक्रतिक खजाना छिपा हुआ है ! कोरबा जिले की प्राक्रतिक सम्पन्नता की बात मै पहले भी कई बार कर चूका हूँ ! यहाँ की धरा में जितना खजाना छिपा हुआ है वो सभी को चमत्कृत और अभिभूत कर देता है ! यहाँ का आकर्षण ऐसे सभी केन्द्रों पर मानव के लिए प्रबल साबित होता है ! यह भूमि इतिहास के प्रत्येक चरण में मानव जाति की क्रीडा भूमि रही है ! ये पूरा इलाका नैसर्गिक संपदा से परिपूर्ण रहा है ! हसदेव के सुरम्य और तीक्ष्ण प्रवाह से सिंचित और सघन वन हमेशा से लोगो के आकर्षण का बड़ा केंद्र रहें है ! कोरबा के कई इलाको से मिले लघु पाषण आदि मानवो की मौजूदगी का प्रमाण दे चुके है ! यात्रा जारी है,क्यूंकि हम खुद उन पुरातात्विक और एतिहासिक जगहों को करीब से देखना और जानना चाहते है जो कभी छत्तीसगढ़ की समृधता का केंद्र रहा है ! वैसे भी कहते है, अगर रास्ता खुबसूरत हो तो पता करो की किस मंजिल को जाता है लेकिन मंजिल खुबसूरत हो तो रास्ते की परवाह मत करो ! आज की यात्रा की मंजिल सच में खुबसूरत होगी क्यूंकि जितनी बाते मेरे सहयोगियों ने बताई है उस लिहाज से मै दावा कर सकता हूँ की मंजिल खुबसूरत है तभी तो हम रस्ते की परवाह किये बिना ही आगे बढ़ रहे है ! हमारी टीम आज कोरबा से कटघोरा होते हुए तुम्हान की ओर बढ़ रही है ! एक ऍसी मंजिल की ओर हम बढ़ रहे है जहां तक पहुँचने की राह बहुत आसान नही है ! रास्ते में दोनों ओर पहाड़,कई जगह कुदरत का करिश्मा हमें रुक-रुक कर चलने को कहता ! जड्गा-पसान मार्ग पर हम प्रकृति के श्रृंगार का दीदार करते हुए तुमान की ओर बढ़ते रहे ! एक जगह भगवान् की दुर्दश का नजारा दिखाई पड़ा,कभी किसी ने एक शिवलिंग रखकर पूजा-अर्चना की होगी !  अब बरसो पुराना फटा झंडा और विराजित शिवलिंग के चबूतरे की दरकती दीवार भगवान् के प्रति इंसानों की बदलती सोच का प्रमाण है ! हाँ प्रकृति ने जरूर भोले बाबा का साथ दिया है तभी तो सूखे पेड़ पर इस भीषण गर्मी में फूल खिले हुए है ! कुदरत की करिश्माई को देखकर हम आगे बाद गए,रास्ते में सोचा शायद वहां कभी लोगो की बस्ती रही होगी ! लगता है तुमान पहुँच गए है ! साथियों ने इस सरकारी कोशिश की ओर इशारा करते हुए बताया यही तुमान है ! सड़के वीरान है लगता है गर्मी की वजह से लोग अपने घरों में ही दुबके हुए है खैर हम उस मंजिल पर गए है जो कभी छत्तीसगढ़ की पहली राजधानी हुआ करती थी ! जी हाँ ...तुम्हान का इतिहास १० वीं शताब्दी का है ! मेरी सहयोगी ने उस बाहरी द्वार को खुद ही खोला जिसके भीतर इतिहास की वो सम्पन्नता छिपी है जिसे बताने के लिए यक़ीनन मेरे पास शब्द नही है ! देखते ही देखते आँखों के सामने धराशाई इतिहास की धुंधली तस्वीर खड़ी हो गई जिसकी कल्पना मात्र से मै अचंभित हो गया ! मुझे बताया गया की यहाँ  प्राचीन शिव मन्दिर है ! हमने इस एतिहासिक और सिद्ध शिवलिंग के दर्शन किये ! मन्दिर के ऊपर की छत वक्त के साथ धराशायी हो गई,मगर भीतरी नक्काशी और पत्थर पर बनी कलाकृतियाँ उस वैभव का प्रमाण आज भी देती है जो हजारो साल पहले था ! ये मुख्य मन्दिर है,जहां की पथरीली दीवारों पर बारीकी से की गई कलाकारी बीते जमाने की कला सम्पन्नता को बताती है ! आज से हजारो साल पहले इंसान की सोच और उसकी कलाकुशालता का सबूत ये मन्दिर आज भी कई मायनों में ख़ास महत्व रखता है
                        इतिहास के जानकार बताते है तुन्हान हैहयवंशी कलचुरी राजाओं की राजधानी रही है ! कलचुरी शासक कोकल्देव के सबसे छोटे पुत्र कलिंगराज ने तुम्हान को अपनी राजधानी बनाई थी ! कलिंगराज के पुत्र कमलराज और उनके पुत्र रत्नदेव प्रथम तक तुम्हान छत्तीसगढ़ की राजधानी रही,जिसे बाद में राजा रत्नदेव रतनपुर लेकर चले गए ! इतिहासकार ये भी बताते है की राजधानी तुम्हान से रतनपुर ले जाने के पीछे भी कई किवदंतियां जुडी हुई है ! कहते है ११६५ से ११७० तक तुम्हान एक बार फिर राजधानी रही तब जाजल्वदेव दिव्तीय शासक रहे ! शिव जी के मन्दिर के इर्द-गिर्द काफी वक्त खड़े रहकर हमने इतिहास को जाना ! यहाँ के केयर टेकर ने बताया की ये इकलौता शिवलिंग नही है,इस परिसर में महादेव के कई रूप है ! उसने बताया की इस पूरे परिसर में अलग-अलग जगहों पर १२ शिवलिंग है जो आने वालो को पुराने शासको के इतिहास का सच बताने के लिए काफी है ! कहते है कभी चारो ओर मन्दिर हुआ करता था अब केवल खंडहर नजर आता है ! इसे प्राचीन स्मारक घोषित करके पुरात्तव विभाग ने संरक्षित करने का काम तो शुरू किया है लेकिन मौके पर महज खानापूर्ति के कुछ और नजर नही आता ! इस शिव मन्दिर के सामने एक पत्थर नंदी की शक्ल में नजर आता है ! कहते है जब राजा इस मन्दिर का निर्माण करवा रहे थे उस समय एक बैल आकर मन्दिर निर्माण को नुक्सान पहुंचा देता था ! एक दिन राजा को गुस्सा गया उन्होंने बैल को यहीं पर गोली मार दी ! कहते है इस पत्थर के बीच में बना ये निशान उसी गोली का है ! मान्यता तो ये भी है की जिस वक्त राजा ने बैल को गोली मारी उसने राजा को श्राप दे दिया और पत्थर के रूम में हमेशा के लिए यहाँ विराजित हो गया ! बैल का श्राप था कि राजा तुम्हारे इस तालाब में कभी भी पानी नही रहेगा,तुम पानी के लिए तरस जाओगे ! तब से आज तक इस परिसर के पास स्थित राजा-रानी तालाब में पानी नही है ! गाँव के लोग भी उस बात को यकीं से सिर्फ इसलिए बताते है क्यूंकि उन्होंने अपनी गुजरी पीढ़ियों से सुन रखा है ! हमने इस संरक्षित इलाके के उस चोकीदार से बात करनी चाही लेकिन उसने जो कहा वो हमारे लिए जितना आश्चर्य का विषय था उससे कही ज्यादा आपको हैरानी हो सकती है ! यहाँ के चौकीदार को ना इस एतिहासिक धरोहर का पता है ना वो हिंदी बोलना जानता है ! ....
                       ये हकीकत उस पुरातत्तव विभाग कि है जिन्हें राज्य के इतिहास को समेटने,बताने और संरक्षित करने की तनख्वाह दी जाती है ! हम यहाँ किसी की आलोचना करने नही आये है मगर हमारे जैसे ना जाने कितने लोग यहाँ आकर यहाँ से बिना कुछ जाने लौट जाते होंगे ! हमने तो बहुत कुछ सुन रखा था,कुछ कागज़ के टुकड़े पास में थे जिनकी बदोलत इस प्राचीन वैभव की दास्ताँ मै आपको बता रहा हूँ ! यहाँ पर शिव की मूर्तियों के अलावा भगवान् बुद्ध की कई मूर्तियाँ खुदाई में मिली है ! यहाँ कई ऐसे अवशेष है जो शक्ति की उपासना किये जाने का प्रमाण भी देते है ! तुम्हान में की गई खुदाई में सैकड़ो बेशकीमती मूर्तियाँ मिली है जिनमे राम सीता लक्षमण, हनुमान के अलावा भगवान् गणेश की मूर्तियाँ है ! शिव की मूर्तियों के अलावा कई ऍसी कलाकृतियों के अवशेष मिले है जो मध्यप्रदेश के खजुराहो की याद दिलाते है ! वैसे भी जानकार इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहते है ! कमरों में बंद पड़ी इन बेशकीमती मूर्तियों को इस एतिहासिक धरा के गर्भ से निकाल तो लिया गया है लेकिन इनके बेहतर संरक्षण और सुरक्षा के उपाय नही किये गए है ! यहाँ के एक पुराने मुलाजिम ने बताया की धराशाई पत्थरों को जोड़कर फिर से पुराने तुम्हान को बसाने की तैयारी की जा रही है पर लगता नही है की हजारो साल पुराने उस वैभव और कला की तस्वीर दुबारा बन पाएगी ! खैर सुरज की कम होती रोशनी और तेज हवाओं की दस्तक हमको लौट जाने को कह रही है ! हमने चलते-चलते उस औपचारिकता को भी पूरा किया जिसे हाथ में काफी देर से लिए चौकीदार खड़ा था ! मेरी सहयोगी ने पुरात्तव विभाग के उस रजिस्टर में सिर्फ इतना ही लिखा की पुरात्तव विभाग की कोशिशे इस एतिहासिक धरोहर के संरक्षण के लिए पर्याप्त नही है ! हम इस गौरवशाली धरा से निकल रहे है उस दूसरी मंजिल की ओर जहां की कई मान्यताओं ने भक्तो की आस्था बढ़ा दी है !
हम तुम्हान से वापस कोरबा की ओर लौटते वक्त मुख्य मार्ग से करीब तीन किलोमीटर दूर नगोई कुटेश्वर की ओर मुड़ गए ! थोड़ी ही दूरी पर हमने गाँव के एक आदमी से उस धार्मिक जगह का पता पूछ लिया,वो हमारे साथ उस पहाड़ तक जाने को तैयार हो गया जहां भगवान् शंकर का वास है ! हम नदी के रास्ते पैदल उस पहाड़ की ओर बढ़ चले,अँधेरा होता जा रहा था मगर उस प्राचीन धार्मिक जगह तक पहुंचना भी जरूरी था ! कैमरे और मोबाइल फ़ोन की मंद रोशनी में हम उस ग्रामीण के कभी आगे तो कभी पीछे-पीछे चलते पहाड़ पर पहुँच गए ! प्राचीन मूर्तियों की उपेक्षा का सच फिर एक बार आँखों के सामने था ! हमें बताया गया की शंकर जी की मूर्ति सैकड़ो साल पुरानी है ! हमने इस दरबार की गायब छत और कुछ दूसरी बातो के बारे में जानना चाहा ! उसने बस इतना ही बताया की पहाड़ पर ये मन्दिर काफी प्राचीन है,यहाँ शिवलिंग के नीचे एक सोने का मुकुट है जिसे कुछ बरस पहले एक बदनीयत इंसान ने निकालने की कोशिश की मगर वो सफल नही हो सका ! मामला न्यायालय में है इस कारण मन्दिर की शक्ल सवारने की कोशिशे नही की जाती ! कुछ वक्त रुकने के बाद हम वापस कोरबा के लिए निकल पड़े मगर रास्ते भर कभी इतिहास की दुर्दशा पर सोचते रहे तो कभी अपनी अगली मंजिल की तलाश करते रहे ....हम फिर आयेंगे क्यूंकि जीवन की यात्रा अभी जारी है ..............!

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