Thursday, April 14, 2011

वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता

        आज सुबह अखबार के पन्ने पलट रहा था एक खबर पर नजर पड़ी,खबर थी देहव्यापार में लिप्त कोलकाता की दो कालगर्ल्स पुलिस के हत्थे चढ़ी...नई बात या फिर खास समाचार नही था फिर भी लिखने वाले ने खबर में तेज़ तडका डालकर काफी मसालेदार बना दिया था...छत्तीसगढ़ के अमूमन अधिकाँश शहरो में जिस्म के कारोबार को रुपयेवालो ने पोषक तत्व दे रखा है तभी तो देश के बड़े महानगर कहलाने वाले दिल्ली,मुंबई.कोलकाता जैसे राज्यों से गर्म गोस्त की आवक तेजी से बढ़ी है...खबर को पढने के बाद मुझे संसद प्रिया दत्त की पिछले महीनो की वो बाते याद आ गई जिसमे उन्होंने वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता देने की वकालत की है...   
                                                                    कांग्रेस की सांसद प्रिया दत्त ने वेश्यावृत्ति को लेकर एक नई बहस छेड़ रखी  है, जाहिर तौर पर उनके विचार को गौर करें तो  विचार बहुत ही संवेदना से उपजा हुआ है। उन्होंने अपने बयान में कहा है कि "मेरा मानना है कि वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता प्रदान कर देनी चाहिए ताकि यौन कर्मियों की आजीविका प्रभावित न हो।" प्रिया के बयान के पहले भी इस तरह की मांगें उठती रही हैं। कई संगठन इसे लेकर बात करते रहे हैं। खासकर पतिता उद्धार सभा ने वेश्याओं को लेकर कई महत्वपूर्ण मांगें उठाई थीं। हमें देखना होगा कि आखिर हम वेश्यावृत्ति को कानूनी जामा पहनाकर क्या हासिल करेंगें? क्या भारतीय समाज इसके लिए तैयार है कि वह इस तरह की प्रवृत्ति को सामाजिक रूप से मान्य कर सके। दूसरा विचार यह भी है कि इससे इस पूरे दबे-छिपे चल रहे व्यवसाय में शोषण कम होने के बजाए बढ़ जाएगा। आज भी यहां स्त्रियां कम प्रताड़ित नहीं हैं। सांसद दत्त ने भी अपने बयान में कहा है कि - "वे समाज का हिस्सा हैं, हम उनके अधिकारों को नजरअंदाज नहीं कर सकते। मैंने उन पर एक शोध किया है और पाया है कि वे समाज के सभी वर्गो द्वारा प्रताड़ित होती हैं। वे पुलिस और कभी -कभी मीडिया का भी शिकार बनती हैं।"
सही मायने में स्त्री को आज भी भारतीय समाज में उचित सम्मान प्राप्त नहीं हैं। अनेक मजबूरियों से उपजी पीड़ा भरी कथाएं वेश्याओं के इलाकों में मिलती हैं। हमारे समाज के इसी पाखंड ने इस समस्या को बढ़ावा दिया है। हम इन इलाकों में हो रही घटनाओं से परेशान हैं। एक पूरा का पूरा शोषण का चक्र और तंत्र यहां सक्रिय दिखता है। वेश्यावृत्ति के कई रूप हैं जहां कई तरीके से स्त्रियों को इस अँधकार में धकेला जाता है। आदिवासी इलाकों से लड़कियों को लाकर मंडी में उतारने की घटनाएं हों, या बंगाल और पूर्वोत्तर की स्त्रियों की दारूण कथाएं ,सब कंपा देने वाली हैं। किंतु सारा कुछ हो रहा है और हमारी सरकारें और समाज सब कुछ देख रहा है। समाज जीवन में जिस तरह की स्थितियां है उसमें औरतों का व्यापार बहुत जधन्य और निकृष्ट कर्म होने के बावजूद रोका नहीं जा सकता। गरीबी इसका एक कारण है, दूसरा कारण है पुरूष मानसिकता। जिसके चलते स्त्री को बाजार में उतरना या उतारना एक मजबूरी और फैशन दोनों बन रहा है। क्या ही अच्छा होता कि स्त्री को हम एक मनुष्य की तरह अपनी शर्तों पर जीने का अधिकार दे पाते। समाज में ऐसी स्थितियां बना पाते कि एक औरत को अपनी अस्मत का सौदा न करना पड़े। किंतु हुआ इसका उलटा। इन सालों में बाजार की हवा ने औरत को एक माल में तब्दील कर दिया है। मीडिया माध्यम इस हवा को तूफान में बदलने का काम कर रहे हैं। औरत की देह को अनावृत्त करना एक फैशन में बदल रहा है। औरत की देह इस समय मीडिया का सबसे लोकप्रिय विमर्श है। सेक्स और मीडिया के समन्वय से जो अर्थशास्त्र बनता है उसने सारे मूल्यों को शीर्षासन करवा दिया है । फिल्मों, इंटरनेट, मोबाइल, टीवी चेनलों से आगे अब वह मुद्रित माध्यमों पर पसरा पड़ा है। प्रिंट मीडिया जो पहले अपने दैहिक विमर्शों के लिए ‘प्लेबाय’ या ‘डेबोनियर’ तक सीमित था, अब दैनिक अखबारों से लेकर हर पत्र-पत्रिका में अपनी जगह बना चुका है। अखबारों में ग्लैमर वर्ल्र्ड के कॉलम ही नहीं, खबरों के पृष्ठों पर भी लगभग निर्वसन विषकन्याओं का कैटवाग खासी जगह घेर रहा है। वह पूरा हल्लाबोल 24 घंटे के चैनलों के कोलाहल और सुबह के अखबारों के माध्यम से दैनिक होकर जिंदगी में एक खास जगह बना चुका है। शायद इसीलिए इंटरनेट के माध्यम से चलने वाला ग्लोबल सेक्स बाजार करीब 60 अरब डॉलर तक जा पहुंचा है। 

                                                                     मोबाइल के नए प्रयोगों ने इस कारोबार को शक्ति दी है। एक आंकड़े के मुताबिक मोबाइल पर अश्लीलता का कारोबार भी पांच सालों में 5अरब डॉलर तक जा पहुंचेगा ।बाजार के केंद्र में भारतीय स्त्री है और उद्देश्य उसकी शुचिता का उपहरण । सेक्स सांस्कृतिक विनिमय की पहली सीढ़ी है। शायद इसीलिए जब कोई भी हमलावर किसी भी जातीय अस्मिता पर हमला बोलता है तो निशाने पर सबसे पहले उसकी औरतें होती हैं । यह बाजारवाद अब भारतीय अस्मिता के अपहरण में लगा है-निशाना भारतीय औरतें हैं। ऐसे बाजार में वेश्यावृत्ति को कानूनी जामा पहनाने से जो खतरे सामने हैं, उससे यह एक उद्योग बन जाएगा। आज कोठेवालियां पैसे बना रही हैं तो कल बड़े उद्योगपति इस क्षेत्र में उतरेगें। युवा पीढ़ी पैसे की ललक में आज भी गलत कामों की ओर बढ़ रही है, कानूनी जामा होने से ये हवा एक आँधी में बदल जाएगी। इससे हर शहर में ऐसे खतरे आ पहुंचेंगें। जिन शहरों में ये काम चोरी-छिपे हो रहा है, वह सार्वजनिक रूप से होने लगेगा। ऐसी कालोनियां बस जाएंगी और ऐसे इलाके बन जाएंगें। संभव है कि इसमें विदेशी निवेश और माफिया का पैसा भी लगे। हम इतने खतरों को उठाने के लिए तैयार नहीं हैं। विषय बहुत संवेदनशील है, हमें सोचना होगा कि हम वेश्यावृत्ति के समापन के लिए काम करें या इसे एक कानूनी संस्था में बदल दें। हमें समाज में बदलाव की शक्तियों का साथ देना चाहिए ताकि एक औरत के मनुष्य के रूप में जिंदा रहने की स्थितियां बहाल हो सकें। हमें स्त्री के देह की गरिमा का ख्याल रखना चाहिए, उसकी किसी भी तरह की खरीद-बिक्री को प्रोत्साहित करने के बजाए, उसे रोकने का काम करना चाहिए। प्रिया दत्त ने भले ही बहुत संवेदना से यह बात कही हो, पर यह मामले का अतिसरलीकृत समाधान है। वे इसके पीछे छिपी भयावहता को पहचान नहीं पा रही हैं। हमें स्त्री की गरिमा की बात करनी चाहिए- उसे बाजार में उतारने की नहीं.... 

2 comments:

  1. Satyaprkash ji aapne jis mudde ko badi hi gambhirta se likha hai usaki prashansha ke liye mere pass shabd nhi hai....aapne sach kaha hai ki mahilawo ke samman ki sochana hoga....

    ReplyDelete
  2. mushkil ye hai ki mahilaon ke smman -barabree -grima ke bharee bhrkam shbd - gajab ka asar dikhane wale vakya us kalam kee paidaish hain jo shyad 88 fisdee purushon [kalamkar ] ke hanth me hotee hai - bavzood pet kee agg -jayaz nazayaz [ samaj kee dee huvee paribhasha ] kee parvarish se judee mazbooree liye koi aurat vesya bantee hai - banane valee bahas --mubahiso ke zariye sharm ko kuredte hai --

    ReplyDelete