Friday, April 8, 2011

उम्मीदें जाग गई हैं...

उम्मीदें जाग गई हैं...सवाल पूछे जा रहे हैं कि क्या हमारे यहाँ भी तहरीर चौक होगा?माहौल पूरा है. थोड़ा दिल्ली के जंतर मंतर पर, थोड़ा इधर-उधर के शहरों में और सबसे ज़्यादा टेलीविज़न के स्क्रीनों पर... अख़बारों ने भी माहौल बनाने की पूरी कोशिश की है,लेकिन जनता अभी थोड़ी दूर से देख रही है... सोच रही है कि शायद हमारे यहाँ भी तहरीर चौक हो जाएगा...जो लोग अन्ना हज़ारे के आमरण अनशन के समर्थन में निकल रहे हैं उनकी संख्या अभी हज़ारों में पहुँची है....हमारी आबादी के नए आंकड़े अभी-अभी आए हैं. एक अरब 21 करोड़ यानी लगभग सवा अरब... इस सवा अरब लोगों में से अभी कुछ हज़ार लोग जंतर मंतर या इंडिया गेट पर इकट्ठे हो रहे हैं...वह कहावत चरितार्थ होती दिख रही है, देश में भगत सिंह और गांधी पैदा तो हों, लेकिन पड़ोसी के घर में...मिस्र की आबादी से तुलना करके देखें, वहाँ की कुल आबादी है आठ करोड़ से भी कम. यानी आंध्र प्रदेश की आबादी से भी कम,लेकिन वहाँ तहरीर चौक पर एकबारगी लाखों-लाखों लोग इकट्ठे होते रहे. उन्हें वहाँ इकट्ठा करने के लिए किसी नेता की ज़रुरत नहीं पड़ी...वे ख़ुद वहाँ आए क्योंकि उन्हें लगा क्योंकि परिवर्तन उनकी अपनी ज़रुरत है...भारत की जनता के लिए अन्ना हज़ारे को आमरण अनशन पर बैठना पड़ा है,फिर भी इकट्ठे हो रहे हैं कुछ हजार लोग... जिस देश में अधिसंख्य जनता सहमत है कि देश में भ्रष्टाचार असहनीय सीमा तक जा पहुँचा है...सब कह रहे हैं कि नौकरशाहों से लेकर राजनेता तक और यहाँ तक न्यायाधीश तक भ्रष्टाचार में लिप्त हैं. हर कोई हामी भर रहा है कि इन राजनेताओं को देश की चिंता नहीं...भ्रष्टाचार के आंकड़ों में अब इतने शून्य लगने लगे हैं कि उतनी राशि का सपना भी इस देश के आम व्यक्ति को नहीं आता....इस देश में जनता इंतज़ार कर रही है कि इससे निपटने की पहल कोई और करेगा...ख़ुद अन्ना हज़ारे कह रहे हैं कि जितना भी समर्थन मिल रहा है, उन्हें इसकी उम्मीद नहीं थी. वह तो मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी को भी नहीं थी और न विपक्षी दलों को...लेकिन जितने भी लोग निकल आए हैं उसने लोगों को जयप्रकाश नारायण से लेकर विश्वनाथ प्रताप सिंह की याद दिला दी है...लोग तहरीर चौक को याद कर रहे हैं, बिना ये समझे कि वहाँ परिस्थितियाँ दूसरी थीं...लेकिन वे मानने लगे हैं कि तहरीर चौक यानी परिवर्तन...अन्ना हज़ारे ने एक लहर ज़रुर पैदा की है. लेकिन अभी लोग उन लहरों पर अपनी नावें निकालने को तैयार नहीं हैं...भारत का उच्च वर्ग तो वैसे भी घर से नहीं निकलता. ज़्यादातर वह वोट भी नहीं देता. ग़रीब तबका इतना ग़रीब है कि वह अपनी रोज़ी रोटी का जुगाड़ एक दिन के लिए भी नहीं छोड़ सकता...बचा मध्य वर्ग. भारत का सबसे बड़ा वर्ग. और वह धीरे-धीरे इतना तटस्थ हो गया है कि डर लगने लगा है...सरकार के रवैये से दिख रहा है कि वह देर-सबेर, थोड़ा जोड़-घटाकर लोकपाल विधेयक तैयार करने में अन्ना हज़ारे एंड कंपनी की भूमिका स्वीकार कर लेगी...उस दिन अन्ना हज़ारे का अनशन ख़त्म हो जाएगा. अन्ना हज़ारे रालेगणसिद्धि लौट जाएँगे. पता नहीं इन सवा अरब बेचारों का क्या होगा..?

4 comments:

  1. सच कहते है सत्य प्रकाश जी उम्मीद जगी है की इस देश से भष्टाचार ख़त्म होगा...वैसे मै आपकी एक और बात से सहमत हूँ की लोग तहरीर चौक की तरह नही इकठे हुए.......खैर आप का ब्लॉग मेरे पसंदीदा कुछ ब्लागों में से है....

    ReplyDelete
  2. behsd gambheer vishay par sateek tipapni...anna aur desh ki lakho janta caresion ke khilaff hai...

    ReplyDelete
  3. सर जी नमस्कार वैसे तो मै दिल्ली से हूँ आप ने जो लिखा है उसमे काफी कुछ सच है लेकिन ये कहना गलत होगा की अन्ना के आन्दोलन में लोगो की कमी है

    ReplyDelete
  4. desh ki doosri aajadi ke liye chal rahi ladai me ham sab sath hai

    ReplyDelete