Thursday, April 28, 2011

कोई और दरवाज़ा देखिए...

ही कोई तीन चार दिन पहले मेरा दिल अचानक टूट गया है. शायद बहुत से लोगों का टूट गया हो,खबर ही ऐसी थी...मेरी जगह कोई भी होता वो ये ही कहता दिल क्यों न टूटे जब राहुल गांधी कह दें कि वे हीरो नहीं बनना चाहते....भारत का मीडिया ज़्यादातर उन्हें भारत के अगले प्रधानमंत्री के रुप में देखता है....कांग्रेस का इतिहास और वर्तमान राजनीतिक समीकरण बताते हैं कि इस राह में कोई बाधा भी नहीं है.नेहरु-गांधी परिवार ने आज़ादी के बाद सबसे लंबे समय तक भारत की कमान संभाली है....उसी विरासत के स्वाभाविक उत्तराधिकारी कह रहे हैं कि भारत की व्यवस्था में बहुत कुछ सड़ गया है, जीर्ण-शीर्ण हो गया है और वे उसे ठीक करना चाहते हैं.....सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश वीआर कृष्णा अय्यर ने उनसे पूछा था कि अन्ना हज़ारे का मामला इतना क्यों बढ़ा और वे क्यों ख़ामोश हैं? एक अच्छे राजनीतिक की तरह राहुल गांधी ने उन्हें चुप करवा दिया है और कहा है कि वे एक विचारशील भारतीय की तरह मनन कर रहे हैं और वे (जस्टिस अय्यर की तरह) पत्र लिखकर मुक्त नहीं हो सकते.....अभी-अभी भारतीय समाज को अपना नया हीरो मिला है. अन्ना हज़ारे के रूप में....बहुत से विवादों के बीच भी वह अन्ना हज़ारे से अभिभूत है.भारतीय मिथक और इतिहास दोनों में प्रमाण मौजूद हैं कि भारत अनिवार्य रुप से एक व्यक्ति पूजक समाज है..... वह रास्ते से पहले रास्ता दिखाने वाले की तलाश करता है.... वह किसी प्रतीक पुरुष (और यदाकदा नारी भी) के साए में अपने को सुरक्षित महसूस करता है. वह अपने लिए एक हीरो चाहता है.....ऐसे में राहुल गांधी कह रहे हैं कि वे हीरो नहीं बनना चाहते.....ख़ामोशी से काम करना चाहते हैं.
                                                 फिर मै ये भी सोचता हूँ की राहुल गांधी इससे पहले क्या करते रहे हैं? वे किसी दलित के घर खाना खाने गए तो ये सुनिश्चित कर लिया कि मीडिया इस ख़बर को प्रकाशित ज़रुर करे....उन्होंने सर पर दो धमेला मिट्टी ढोई तो पहले सुनिश्चित कर लिया गया कि टेलीविज़न वाले इसे देश को दिखा ज़रुर दें....यहाँ तक कि ट्रेन में सफर किया तो उनके मैनेजरों ने ये ख़बर मीडिया को पहुँचाने का पूरा इंतज़ाम किया..... वे किसी खेल के आयोजन में पहुँचे तो आम दर्शकों के बीच बैठकर लोगों को यह दिखाने की कोशिश ज़रुर की कि वे आम लोगों के भी क़रीब हैं...... विपक्षी दलों को लगा कि यह सब हीरो बनने की कोशिश है.लेकिन अब उन्होंने साफ़ कर दिया है कि वे हीरो नहीं बनना चाहते.... लोगों को जवाब मिल गया होगा कि राष्ट्रमंडल खेलों के घोटाले पर, 2जी स्पेक्ट्रम के घोटाले पर, सीवीसी की नियुक्ति पर और अन्ना हज़ारे के अनशन पर वे चुप क्यों रहते हैं.....अब लोगों को शक करना चाहिए कि अन्ना हज़ारे और उनके साथ जुड़े नागरिक समाज के लोग क्या सचमुच इस देश से भ्रष्टाचार को ख़त्म करना चाहते हैं या फिर उनकी मंशा हीरो बनने की है.....शायद वो कहावत ठीक हो कि जो गरजते हैं वो बरसते नहीं. इसलिए राहुल गांधी गरजते नहीं. शायद किसी दिन एक साथ बरसें, घनघोर घटा के साथ बरसें.....सीधे प्रधानमंत्री बनकर इस देश का उद्धार करें.राहत की बात सिर्फ़ इतनी है कि राहुल गांधी ने ये नहीं कहा है कि वे प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहते..... मनमोहन सिंह इस बात के गवाह हैं कि अब भारत का प्रधानमंत्री ज़रुरी नहीं कि देश का हीरो भी हो.....तो देशवासियो अगर आपको सड़ी गली या बदबूदार या जीर्ण शीर्ण व्यवस्था को ठीक करने के लिए किसी हीरो की तलाश है तो माफ़ कीजिए राहुल गांधी उपलब्ध नहीं हैं.....कोई और दरवाज़ा देखिए.....और हाँ वो दरवाजा मिले तो मुझे खबर जरूर करें....

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