Friday, June 15, 2012

प्राचीन विष्णु मन्दिर...जांजगीर

                     कोरबा के इतिहास,पुरात्तव,संस्कृति और सभ्यता से पूरी तरह तो नही फिर काफी कुछ वाकिफ होने के बाद मैंने सोचा आस-पास के जिलों की विरासत को भी देख लिया जाए जो इतिहास के सैकड़ों पन्ने हकीकत और किवदंतियों को अपने में समेटे हुए है ! साथियों की एक राय पर आज हम पास के जांजगीर-चाम्पा जिले की ओर निकाल पड़े ! कोरबा जिला मुख्यालय से करीब ५० किलोमीटर दूर जाजल्व्धानी है जहां पर इतिहास के अनमोल और हजारों साल पुरानी संस्कृति,सभ्यता के प्रमाण मौजूद है ! रास्ते भर यात्रा की नई मंजिल का जिक्र करते हम करीब सवा घंटें में जाज्ल्व्धानी पहुँच गए ! शायद आज यहाँ का साप्ताहिक बाजार है,पूछने पर मालूम हुआ हर बुधवार यहाँ मेले जैसा माहोल रहता है ! बाजार की चीजों को निहारते है उस ओर बढ़ रहे है जहां प्राचीन विष्णु मन्दिर है ! इस सरकारी प्रयास की वजह से हम बिना किसी से पूछे मन्दिर की ओर बढ़ते रहे ! कुछ ही दूरी पर भारतीय पुरातत्तय सर्वेक्षण के बोर्ड पर नजरें पड़ गई ! इस संरक्षित इलाके की बदहाली और सरकारी कोशिशों को चिढाती लोगो की अतिक्रमणकारियों की करतूत को निहारते-निहारते हम उस विरासत के करीब पहुँच गए जो हमारा गौरव है ! एक ऐसा अतीत जिसकी फिजाओं में भी इतिहास की सम्पन्त्ता भारी खुशबु रही होगी इसे देखकर कहा जा सकता है ! 
                  छत्तीसगढ़ के इस दक्षिण कोशल क्षेत्र में कल्चुरी नरेश जाज्वल्य देव प्रथम ने भीमा तालाब के किनारे १२ वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर भारतीय स्थापत्य का अनुपम उदाहरण है। मंदिर पूर्वाभिमुखी हैतथा सप्तरथ योजना से बना हुआ है। गर्भगृह के दोनो ओर दो कलात्मक स्तंभ है जिन्हे देखकर यह आभास होता है कि पुराने समय में मंदिर के सामने महामंडप निर्मित था। परन्तु कालांतर में उसके अवशेष मात्र नजर आते है  मैंने इस मन्दिर की खूबसूरती और एतिहासिकता को महसूस करते-करते ये सोचा की हजारों साल पहले कला कितनी धनवान और समृद्ध थी ! इस प्राचीन मंदिर के चारों ओर अत्यन्त सुंदर एवं अलंकरणयुक्त प्रतिमाओ का अंकन है जिससे तत्कालीन मूर्तिकला के विकास का पता चलता है। मैंने सबसे पहले उस जगती की कलाकृतियों को करीब से देखा जो पुरातत्त्व विभाग की मेहरबानी से बची हुई है ! पत्थर की ८ फुट ऊँची दीवार पर कहीं अप्सराओं तो कहीं देवी -देवताओं की मूर्तियों में बारीकी से की गई कला के जरिये जान डालने की कोशिश की गई है ! इस चबूतरे के इस हिस्से को देखकर अतीत की सम्पन्नता का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है ! काफी बारीकी से की गई नक्कासी और उनपर मूर्ति कला की अनोखी मिसाल हर उस जगह पर है देखने को मिलेगी जहां कलचुरी राजाओं ने राज किया ! मै  प्राचीन मन्दिर की भव्यता को नीचे से निहारते वक्त ये महसूस करता रहा की इतिहास के आगे आदमी कितना बौना है ?  हम ऊपर चलते है जहां से अतीत के आईने में दिखाई पड़ता इतिहास आज भी बहुत कुछ कहता है ! इस मन्दिर के गर्भगृह के प्रवेश द्वार के दोनो ओर देवी-देवताओं के साथ द्वारपाल की मूर्तियाँ बनी हुई है इसके अतिरिक्त त्रिमूर्ति के रूप में ब्रह्माविष्णु और महेश की मूर्ति भी प्रवेश द्वार पर नजर आती है ! नजरें ठीक इसके ऊपर दौडाएं तो गरुणासीन भगवान विष्णु की मूर्ति दिखाई देती है।  इसके अतिरिक्त उत्तरी हिस्से के निचले भाग में स्थित मूर्ति तथा प्रवेशद्वार के दोनों पार्श्वों में अंकित संगीत समाज के दृश्य विशेष रूप से उल्लेखनीय है।  मंदिर के पृष्ठ भाग में सूर्य देव भी विराजमान हैं। इसी प्रकार की अनेक मूर्तियाँ नीचे की दीवारों में भी खचित हैं। मन्दिर के शीश पर गुम्बद नही है जिसको लेकर कई किवदंतियां आज भी लोगो को भ्रम में डाले हुए है ! यहाँ पुरातत्व विभाग की कोशिश से तड़ित चालक लगाया गया है ताकि बिजली गिरने से इस प्राचीन धरोहर को नुक्सान ना हो सके ! इतनी सजावट के बावजूद मंदिर के गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं है। ये देखकर मै अचंभित रह गया क्यूंकि जो वैभव बाहर से नजर आ रहा है वो भीतर प्रवेश करते ही अजीब से वीरानी का आभास करवाता है ! यह मंदिर भीतर से एकदम सूना है,बिन देवता कोई दीप भी नही जलाता ! साफ़ शब्दों में कहूँ तो १२ वीं शताब्दी का प्रसिद्ध विषाणु मन्दिर आज एक दीप के लिये तरस रहा है ! कहते है इस मंदिर के निर्माण से संबंधित अनेक जनुश्रुतियाँ हजारों साल से प्रचलित हैं। एक दंतकथा के अनुसार एक निश्चित समयावधि यानि कुछ लोग उसे छैमासी रात कहते हैं,में शिवरीनारायण मंदिर और जांजगीर के इस मंदिर के निर्माण में प्रतियोगिता हुई थी। कहते है भगवान नारायण ने घोषणा की थी कि जो मंदिर पहले पूरा होगावे उसी में प्रविष्ट होंगे। शिवरीनारायण का मंदिर पहले पूरा हो गया और भगवान नारायण उसमें प्रविष्ट हो गए  उसी दिन से जांजगीर का यह मंदिर सदा के लिए अधूरा छूट गया। एक अन्य दंत कथा के अनुसार इस मंदिर निर्माण की प्रतियोगिता में पाली के शिव मंदिर को भी सम्मिलित बताया गया है। कुछ लोगो के मुताबिक़ पास के इस मंदिर को इसका शीर्ष भाग बताया जाता है एक और  दंतकथा जो महाबली भीम से जुड़ी है,वो भी काफी प्रचलित है। कहा जाता है कि मंदिर से लगे भीमा तालाब को भीम ने पांच बार फावड़ा चलाकर खोदा था। किंवदंती के अनुसार भीम को मंदिर का शिल्पी बताया गया है। यहाँ भीम और एक हाथी की प्रतिमाओं के अवशेष आज भी देखे जा सकते है ! कईयों किवदंतियों को अपने कलेजे में समेटा ये मन्दिर बिन देवता सूना जरुर है मगर लोगो की आस्था बनी हुई है ! लोग शादी और कई महतवपूर्ण मौको पर यहाँ आते है और बाहरी द्वार पर मत्था टेक कर नारायण से आशीर्वाद मांग लेते है ! हमने यहाँ पर कई और बातों पर गौर किया जो  पुरातत्त्व विभाग की लापरवाही कहे या फिर ऐसी राष्ट्रीय महत्तव की चीजों की सही देख-रेख नही होने का नतीजा ही है की कई शरारती तत्वो ने अतीत के आईने को पान की पीक से रंगीन कर इतिहास को बदरंग करने की कोशिश की है ! 
                    यहाँ से एक तालाब भी दिखाई पड़ता है जो इसी मन्दिर का हिस्सा है ! भीषण गर्मी में पानी से भरा ये तालाब आज लोगो की पहली जरुरत बन चूका है ! कोई घंटों इसमें डूबकी लगाकर शरीर की गर्मी को दूर कर रहा है तो कोई उस नारायण को शीश नवाकर अपने गुनाहों की माफ़ी मांग रहा है ! यहाँ पर स्थानीय प्रशासन की अपंगता अब बदबू फैलाने लगी है,साफ़-सफाई के अभाव में तालाब का पानी बीमारियाँ परोसने की तैयारी कर चूका है ! हमने इस संरक्षित इलाके के भीतर एक स्कूल भी देखा जो नियमतः गलत है ! हम पास के उस मन्दिर भी पहुंचे जिसे सहारा देकर खड़ा रखने की कोशिशे अब-तक कारगर दिखाई पड़ती है ! यहाँ भी अतीत के अवशेष यहाँ-वहां बिखरे पड़े है ! इस मन्दिर में भी देवता नही है ये प्राचीन मूर्तियों के रखने के काम आ रहा है ! हाँ पास में आधुनिक भक्तो ने भगवान् बजरंगबली का मन्दिर जरूर बनवा रखा है जिसकी खुशबु जलती इस अगरबत्ती के जरिये पूरे इलाके में आस्था की महक फैला रही है ! इस प्राचीन विरासत को देखकर मैंने ये महसूस किया की छत्तीसगढ़ में मूर्तिकला १० वीं शताब्दी से लेकर १२ वीं शताब्दी तक बेहद सम्प्पन रही है ! अब तक की यात्रा में ये यात्रा मेरे लिए काफी ख़ास मायने रखती है जहां मुझे इतिहास,संस्कृति और सभ्यता के पन्ने तो नजर आये कुछ नही नजर आया तो बस नारायण ! वैसे तो देवता कण-कण में है फिर भी मै जिस नारायण के दर पर आया वो जांजगीर से ७० किलोमीटर दूर शिवरीनारायण में बैठे है ! मै वहां भी जाऊंगा मगर कब ? नारायण ही जाने.......!