Wednesday, December 29, 2010

हम पर तरस खाओ

साल २०१० ख़त्म होने में करीब ३६ घंटे का समय बाकी है...सोचा जाते साल को अच्छे से बिदा करूँ उससे पहले  मन कुछ लिखने का मन हो गया...इस बार मन उन्ही चैनलों के बारे में लिखने का हुआ जिसमे से एक चैनल मुझे भी मेहनत के बदले रुखी-सुखी खा लेने लायक मेहनताना दे देता है...सच कहूँ तो इस महंगाई में उस मेहनताने से एक जून की रोटी जुगाड़ना भी मुश्किल है लेकिन घर छोड़कर बाहर ना जाने की जिद्द में खुद शोषण का शिकार हो रहा हूँ....खैर हर दिन तो किसी ना किसी के बारे में लिखता ही हूँ,किसी ना किसी को मेरी खबरों से पीड़ा तो होती ही है क्यों ना इस बार अपने गिरेंबान को झाँक लूं ...जिन टीवी चैनलों के आगे से लोगो की नजरे नही हटती खासकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया की आज क्या हालत है वो जरुर मेरे मन को भारी किये हुए है....सोचता हूँ अब तक हिंदी न्यूज़ चैनलों पर काफी कुछ लिखा जा चूका है...तमाम बुराइयों की आलोचना हो चुकी है और तमाम बुराइयों को अच्छा बताने की दलीले भी दी जा चुकी है....अब टीवी की आलोचना का हाल राजनैतिक भाषा में कहूँ तो कांग्रेस और भाजपा की आलोचना सा हो गया है....हर दलील का जवाब देती एक दलील ....आज जो स्वच्छ चरित्र की बात करते है उनके चेहरे पर भी दाग खोज लिया गया है,जिन्हें मलीन बताया जा रहा है टीवी की खूबसूरती का मेकअप उनके यहाँ भी मिलता है....मतलब साफ़ है प्रतिस्पर्धा इस कदर हावी हो चुकी है की लोग अपनी बात रखने के लिए कुछ भी करने को तैयार है....पत्रकारिता के स्तर और उद्देश्य को लेकर बरसो से चर्चा हो रही है...हर बार हमारा कोई अगुआ इसके स्तर को बदलते समाज के सापेक्ष बता देता है....हमको कह दिया जाता है लोग जो देखना पसंद करते है वही दिखाओ...मैं जानता हूँ की भारत जिसे अक्सर मैं महान कहने से नही चुकता वो असल मायनों में महान है...भारत सामाजिक रूप से एक भ्रष्ट देश है...मुमकिन है एक अफसर इमानदारी से टैक्स देता हो मगर अस्पताल जाकर वो अपनी पत्नी की कोख में पल रहे शिशु का लिंग परिक्षण जरुर करवाता है....मुमकिन है एक साठ साल का आदमी भाजपा,कांग्रेस से इमानदारी की उम्मीद रखता हो मगर बेटे की शादी में परिवार वालो के साथ बैठकर दहेज़ की सूचि बना रहा होता है...ऐसी कई बाते मुमकिन है जो अक्सर मेरे मन में कौंधती रहती है....मै तो यही कहूँगा की सापेक्षिक ईमानदार और सापेक्षिक बेईमान नागरिको वाले इस समाज में व्यवस्था को चुनौती देने वाली खबरों को लोग दिलचस्पी से देखते हो, लगता नही है....अब तो हालत ये है की गंभीर खबरों को लेकर भी टीवी चैनल चीखते है....लगभग हर शादी दहेज़ से होती है तब क्या ऐसे लोग ड्राइंग रूम में बैठकर दहेज़ हत्या पर बडबडाते रिपोर्टर और एंकर को सुनना पसंद करते है,यक़ीनन नही.....ऐसी खबरों के आते ही वो लोग या तो चैनल बदल देते है या फिर बहुरानी को किचन में चाय बनाने भेज देते है.....ऐसी कई बाते पिछले कई बरस से सोच रहा हूँ...मै वही का वही सोचता बैठा रहा और साथ काम करने वाले कुछ लोग मुझसे आगे निकल गए....हालाँकि उनकी आगे बढने की रफ़्तार और तरीका दोनों मेरे वसूलो के आड़े आ जाता है.....
                                                           कहते है पत्रकार सरकार गिरा सकता है मगर टीवी चैनल की टी.आर.पी.के खिलाफ नही लड़ सकता...टी.आर.पी.उस बला का नाम है जो पत्रकार के आदर्शो को वक्त आने पर मुर्गा बना देती है...मतलब मालिक के आदेश पर अक्सर ईमान और वसूल बिकता सा लगने लगता है....राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल वालो ने तो अब साप्ताहिक टी.आर.पी.निकालनी शुरू कर दी है....एस.एम्.एस.के जरिये लोगो से प्रतिक्रिया मांगी जाती है....मतलब खबरों को कितना मसालेदार बनाना है सम्पादक प्रतिक्रिया के जरिये भांप लेता है....जो काम बड़े बड़े सुरमा नही कर पाए वो काम हम चुटकी में कर लेने का दंभ भरते है.....मगर सच कहूँ तो अब टीवी न्यूज़ चैनल की आलोचना बंद होनी चाहिए...हम पर तरस खाया जाना चाहिए...हम मजबूर लोग है....हम पर दया किजीये...अगर मजबूर ना होते तो ऐसी पत्रकारिता रच देते की दुनिया देखती...अब तो ऐसा लगता है की हमारे भीतर अच्छा कहने-सुनने का साहस भी नही बचा है...हमारे समाज का एक चरित्र है...आदर्श की बात करेंगे तो हजारो सवाल आपकी तरफ पत्थर में लपेटकर फेंके जायेंगे....इसलिए मेरी तो एक गुजारिश है हम टीवी पत्रकारों के प्रति लोगो की सहानभूति होनी चाहिए.................

2 comments:

  1. bilkul sahi likha hai.trp ke nam par aadashon ki bali diya jana n keval nindniy hai balki manavta ke sath khilvad hai ...........aapko naye varsh ki hardik shubhkamnaye .mere blog 'vicharonkachabootra' par aapka hardik swagat hai .

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