Tuesday, December 28, 2010

ये राजगोपाल हैं ...

     "खादी का कुरता-पायजामा,पैर में साधारण सी सैंडिल और काफी सरल स्वाभाव"....जो नही जानता उसके लिए वो शख्स कुछ भी नही है...मै जानता था टीवी,अखबारों और किताबो के जरिये,इस कारण मेरे लिए ऐसी शख्सियत से मुलाकात कई मायनो में ख़ास थी....सीधा,सरल लेकिन आदिवासियों के हक़ के लिए संघर्ष का तेवर बड़ा ही सख्त....इस ख़ास शख्सियत का नाम राजगोपाल पी.व्ही.है...जितना सुना था उससे कही ज्यादा है राजगोपाल जी...प्रेस क्लब में आज आये और प्रेस कांफ्रेंस के जरिये जल,जंगल,जमीन पर खूब बोले....आदिवासियों के हक के लिए पिछले २ दशक से संघर्ष करते राजगोपाल साफ़ कहते है की सरकार वन अधिकार कानून का पालन करे...वैसे तो राजगोपाल के संघर्ष की कहानी तब से शुरू होती है जब मै इस दुनिया में आया ही नही था...राजगोपाल जी के करीबियों की माने तो जिस वक्त मध्यप्रदेश के चम्बल में डाकुओ का आतंक था वो एस.एन. सुब्बाराव नाम के शख्स के साथ किशोर अवस्था से जुड़ गए....ये वही सुब्बाराव थे जिनकी पहल पर ७०० डाकुओ ने आत्मसमर्पण किया था... सुब्बाराव के साथ काम करने वाले राजगोपाल ने वर्ष १९७२ के बाद फिर कभी मुड़कर नही देखा....संघर्ष यात्रा का सफ़र काफी लंबा है,हौसले इतने बुलंद है की सफर की दूरी का पता ही नही चल रहा है....मैंने राजगोपाल जी को जितना पास से आज देखा उतने ही गौर से करीब ३२ मिनट तक सुनता रहा....आदिवासियों के हित संवर्धन के लिए बढ़ते कदमो को इस बार भी सफलता मिलेगी तय है.....आज राजगोपाल जी ने प्रेस क्लब में जो कहा उसमे प्रमुख रूप से वनवासियों को उनका वाजिब हक़ सरकार दे.....राजगोपाल जी कहते है २००७ से २०१० के बीच केंद्र सरकार ने आदिवासियों के विकास पर ४२०० करोड़ रूपये खर्च किये.....करोडो रुपयों का खर्च आज तक आदिवासियों के तन पर ठीक से लंगोट भी नही दिला पाया....भ्रष्टाचार की जड़ो से निकली साखो ने आदिवासियों का हक़ छीन लिया....राजगोपाल जी मानते है की कंक्रीट के जंगलो ने आदिवासियों की जमीने लील ली....आदिवासियों को उनकी पुश्तैनी जमीन से बेदखल कर दिया गया जो कानूनन गलत है....जल,जंगल,जमीन के लिए आने वाले बर्षो की कार्ययोजना भी तैयार है....वर्ष २०१२ में आदिवासियों की लड़ाई लड़ने वाले ग्वालियर से दिल्ली के लिए कूच करेंगे.....अहिंसात्मक सत्याग्रह के जरिये  सरकार पर दबाव बनाने पदयात्रा की जाएगी.....राजगोपाल जी और उनके असंख्य साथियो का सफ़र जारी है....आदिवासियों,किसानो को उनका वाजिब हक़ दिलाने के लिए हजारो किलोमीटर का लम्बा सफ़र तय करते राजगोपाल जी भारत सरकार द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बने राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद् के सदस्य भी है....उम्मीद करता हूँ जिस मकसद को लेकर यात्रा जारी है उसकी मंजिल जल्दी मिल जाएगी......
                                                                                       छत्तीसगढ़,मध्यप्रदेश,उड़ीसा,झारखण्ड जैसे राज्यों में आदिवासियों की हालत काफी खराब है....इन बातो को बड़ी ही दमदारी से कहते राजगोपाल जी नक्सलवाद पर भी काफी कुछ  कह गये....उन्होंने साफ़ कहा की छत्तीसगढ़ में न्याय और रोटी नही मिलने का नतीजा है नक्सलवाद....सरकार से खिन्न और असंतुष्ट लोगो ने हिंसा का रास्ता अख्तियार कर रखा है....वो ये भी कहते है कि सरकारों के कामकाज से कई संगठन भी असंतुष्ट है लेकिन अहिंसा,सत्याग्रह का रास्ता अपनाकर मांगो को मनवाने की कोशिश की जा रही है....राजगोपाल जी ने ये तो कह ही दिया की नक्सली हिंसा का रास्ता छोड़कर अहिंसा की राह पकडे और सरकार भी अपनी भूल सुधार कर असंतुष्टो की रोटी,न्याय के लिए ठोस योजना बनाए.....
                                                 राजगोपाल जी से हम दूध के धुले होने की उम्मीद नही रखते लेकिन राजगोपाल जैसे लोगो ने कम से कम गांधी के रास्ते से समाज के आखरी आदमी के लिए लड़ाई तो शुरू की है....राजगोपाल जैसे लोग हमारे जैसे लोगो के लिए अँधेरे में जल रही एक कंडील की तरह है जिनसे उम्मीद जगती है अभी सब कूच ख़त्म नही हुआ है....दुनिया को सुन्दर बनाने के लिए कुछ लोग अब कोशिश कर रहे है....हमारे जैसे लोग उस टिटिहरी के साथ है जिसके अंडे समुन्दर बहा ले गया है और वह उसी दिन से रेत ला-ला कर उस समुन्दर को भरने की कोशिश कर रही है.....

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