Sunday, January 16, 2011

विकास,विश्वास और...

 दस बरस की उम्र पूरी कर चूका छत्तीसगढ़ ११ वें बरस में कदम रख चुका है...दस बरस में दो सरकार,पहले कांग्रेस फिर भाजपा...तीन साल कांग्रेस ने खूब विकास किया,रातो-रात लोगो की शक्लो-सूरत बदल गई हालांकि उस विकास की रफ़्तार ने नए राज्य में सत्ता परिवर्तन कर दिया,जनता ने भाजपा को मौक़ा दे दिया...पिछले ७ बरस से भाजपा विकास के पथ पर तेजी से अग्रसर है...गरीबो की हितैषी बनी सरकार ने १ रुपये,२रुपये किलो में राशन देकर लोगो का पेट इतना भर देने का दावा किया की लोग रोजगार के लिए खोजे नही मिल रहे...हाँ ये बात अलग है की गरीबो का राशन बिचौलियों के जरिये बाजार में बेच दिया गया...
          पिछले ७ बरस में "क्रेडिबल"यानि विश्वसनीय छत्तीसगढ़ बना ये राज्य ना जाने किस दृष्टिकोण से विश्वसनीयता के माप
 दंड पर खरा उतरता है...शायद शहरों की सड़के चौड़ी करके या फिर बड़े उद्योग पतियों को और धनवान बनाकर डॉक्टर {रमन}साहेब खुश है...कहीं इस राज्य के मुखिया को ये तो नही लगता गरीबो को मुफ्त में चावल देकर वो विकास की मुख्यधारा से जोड़ चुके है...चका-चक सड़के,सरकारी दफ्तरों की चमचमाती दीवारे और कुछ लोगो की विकास से लबरेज सूरत भले ही भाजपा सरकार को विश्वसनीयता की श्रेणी में लाकर खड़ा करती हो लेकिन विकास की असल सूरत आज भी उतनी ही दरिद्रता और बुनियादी जरुरतो की मोहताज नजर आती है...गांवो में भारत बसता है,ये बाते अक्सर हमने सफेदपोशो की जुबान से सुनी है...अक्सर जनता-जनार्दन को बातो के मकडजाल में फ़साने वालो को गांवो के विकास का ख़ास ख़याल नही होता...कुछ तस्वीरे बहुत कुछ कहने के लिए काफी है...स्कूल की यूनिफार्म पहने कुछ बच्चे मुझे शहर से केवल १८ वें किलोमीटर में ही इस हाल में नजर आ गए...
                                                                           विकास की सूरत कितनी काली है इसका अंदाजा आप तस्वीर को 
 देखकर लगा सकते है...राज्य की राजधानी को जाती इस सड़क पर १८ वें किलोमीटर पर ग्राम हिर्री में मौत से खिलवाड़ करती जिन्दगी को देखकर मै तो दांग रह गया...मै सोचने लगा की विकास की रफ़्तार आखिर कितनी तेज है कि लोग अब तो मौत को भी चैलेन्ज करने से नही डरते...नेशनल हाइवे २०० पर मौत से छेड़छाड़ करती जिन्दगी राजधानी जाकर विकास की फिर नई इबारत लिखेगी मै यकीन से कह सकता हूँ....नेशनल हाइवे २०० पर चलने वाली कोयले से लदी ट्रको से गिरा कुछ चूरा और मलबा इन गरीबो के जरुरत की चीज है...इसे सड़क से बीनकर घर ले जाने की जद्दोजहद में जान भी जा सकती है लेकिन क्या करे पेट की आग तो तभी बुझेगी जब चूल्हा जलेगा...क्योंकि सरकार ने पेट भरने के लिए चावल,गेंहूँ तो उपलब्ध करवा दिया लेकिन उसे पकाने की व्यवस्था नही की...अब लोग करें तो करें क्या...?  
                              
                                 मौत से खेलती जिन्दगी हर गम से बेगानी नजर आती है...तभी तो पूरा का पूरा परिवार विकास और विश्वसनीयता की पहचान बने छत्तीसगढ़  की राजधानी को जाने वाले एन.एच.२०० पर खतरों से खेल रहा है...विकास की ये दूसरी सूरत हर दिन एन.एच.२०० पर दिखाई पड़ती है...जिले का दबदबा सरकार में है..ऐसा मैं नही कह रहा लोगो की जुबानी सुना है...विधानसभा अध्यक्ष,खाद्य मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री तो ऊँगली पर गिने जा सकते  है...बाकी तो बहुत सारे है जो सरकार में तुर्रमखां होने का दंभ भरते है...वैसे जितने मंत्री-संत्री और तुर्रमखां की बात मै कह रहा हूँ वो सारे के सारे इस तस्वीर को पिछले सात बरस से देख रहे है...उन्होंने कभी इस तस्वीर को बदलने की कोशिश नही की,दरअसल बेशर्म आँखों के सामने सरकार की लालबत्ती वाली एम्बेसेडर कार का काला शीशा जो होता है....ऊपर लगी लालबत्ती और फालोगार्ड के इशारे पर फर्राटे भरती सरकारी गाड़ी में बैठे नेताजी की आँखों को विकास की असल सूरत तो मंत्रालय और सरकारी बंगले के आस-पास ही नजर आती  है...
                                               सरकार विश्वसनीय छत्तीसगढ़ की पहचान का लाबाद ओढ़े शहरों में घूम रही है...शहरों की बदली सूरत,पूंजीपतियों का बढ़ता कारोबार और सरकार के इर्द-गिर्द दीमक की तरह गरीबो का हक़ बटोरते दलाल विकास के सही मायने है...इनका विकास मतलब सरकार का विकास,गरीबो का क्या है वो तो आजादी के बाद से ही विकास की बाट जोह रहे है...फिर मौत एन.एच.२०० पर कोयला बीनते आये या फिर कचरे के ढेर में गन्दगी के संक्रमण से.....................                                            

4 comments:

  1. ओये! दिल पर मत ले, मुफ़्त का माल कोई नही छोड़ता, जिसको मिलता है, जहाँ मिलता है बटोर लेता है।

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  2. ... word verification ... hataao ...
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  3. 10 saal me chhattishgarh ki taraki ka isse acha udhaharar kaya ho sakta hai likhte raho.....

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