Friday, February 4, 2011

कानून पर चोट...

पिछले दिनों छत्तीसगढ़ में अपह्रत पाँच पुलिसकर्मियों के परिजनों ने ख़ुद जंगल में जा कर उन्हें तलाश करने का बीड़ा उठाया...आरुषि के पिता राजेश तलवार पर भरे अदालत परिसर में एक युवक ने हमला कर उन्हें लहूलुहान कर दिया...इसी युवक ने कुछ समय पूर्व रुचिका गिरहोत्रा मामले में अभियुक्त एसपी राठौर पर भी हमला किया था...कुछ समय पहले नागपुर में महिलाओं ने बलात्कार के दोषी युवक पर ताबड़तोड़ हमला कर उसे जान से मार दिया...दिल्ली में चोरी करते पकड़े गए एक व्यक्ति पर भीड़ ने हमला किया और उसे इतना पीटा कि वह मरते-मरते बचा...२ फरवरी को बिलासपुर आर.पी.ऍफ़.के कुछ अधिकारी चोर पकड़ने ग्राम पाली{लोरमी}गए जहां उन्हें बड़े ही सुनियोजित तरीके से घेर कर आरोपियों ने हमला कर दिया...उस घटना में एक हवालदार की मौके पर ही मौत हो गई वहीँ एक सब इन्स्पेक्टर ने अपोलो में दम तोड़ दिया...दो अधिकारियों का उपचार चल रहा है...इस वारदात को २४ घंटे ही बीते थे की ४ फ़रवरी की सुबह दबंगों की बौखलाहट देखने लायक थी...दरअसल ३ की रात को सिविल-लाइन पुलिस थाना की तिफरा पुलिस चौकी के एक हवालदार की कुछ सफेदपोशो ने धुनाई कर दी...इस मामले में अभी पुलिस को आरोपी कांग्रेस नेता राजेंद्र शुक्ल और उसके अन्य साथियों की तलाश ही थी की शाम होते-होते कोतवाली चौक पर यातायात के डी.एस.पी.इरफान खान को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के एक नेता ने तमाचा जड़ दिया...दबंग बनी खाकी लगातार हो रहे हमले से लाचार भी है और परेशां भी...जिन लोगो ने कानून हाथ में लिया वो कोतवाली में भीड़ लगाकर प्रदर्शन भी करते रहे...इन सब मामलों में एक ही बात समान है और वह यह कि लोगों ने क़ानून अपने हाथ में लिया या फिर यह कि उनका क़ानून और सुरक्षा व्यवस्था पर भरोसा नहीं रहा....सवाल यह नहीं है कि इन लोगों की कार्रवाई जायज़ थी या नाजायज़...सवाल यह भी नहीं है कि जिन लोगों पर हमला हुआ या जिन्हें निशाना बनाया गया वे दोषी थे या निर्दोष...सवाल यह है कि लोगों में यह भावना क्यों पैदा हो रही है कि इंसाफ़ नहीं हो पाएगा और वे सज़ावार को ख़ुद सज़ा देने की पहल करें...सवाल यह भी है कि लोगों का धैर्य क्यों चुकता जा रहा है...क्या लंबी अदालती कार्रवाई की वजह से? क्या उनकी सहायता के लिए तैनात पुलिस की लापरवाही की वजह से? या फिर इस वजह से कि उनके सब्र का बाँध टूट चुका है और उन्हें आशा की कोई किरण नज़र ही नहीं आ रही है....दरअसल मै जब भी ऐसे मामलो पर किसी नतीजे पर पहुचने की कोशिश करता हूँ तो कटघरे में खाकी नजर आती है...शहर में बढ़ते अपराध की वजह हो या फिर उनके बुलंद होते हौंसलो का जिक्र...क्योंकि पिछले कुछ दिनों में जिस तेजी से कानून के रखवालो की गर्दन को नापने की शुरुआत हुई है वो आने वाले वक्त के लिए शुभ नही है...

1 comment:

  1. jab police wale apradhieo k saath hum payala hum newala hoge to aisa hota rahega...yahi nahi itne sub k baad bhi jab jile ka IPS ghar me aaram farma raha ho to police walo ko to pitna hi hai.....

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