Monday, October 4, 2010

भीख नहीं नौकरी दो!

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिला मुख्यालय से करीब-करीब ५०  किमी दूर छोटे से गांव हथिनीकला में धीरपाल नाम का एक शख्स रहता है. माँ की कोख से विकलांगता लेकर जन्मा धीरपाल दो बच्चों का पिता है--विकलांगता  के साथ-साथ मुफलिसी की दोहरी मार से धीरपाल के................
हौसले नहीं टूटे लेकिन बच्चों के होश सम्हालते ही बीबी साथ छोड़ कर चली गई. बच्चे हर हाल में पिता के साथ खुश हैं. एक बेटी और एक बेटा दोनों गाँव के सरकारी स्कूल में मुफ्त की शिक्षा ले रहें हैं. घर के नाम पर गाँव में एक टूटी हुई झोपड़ी है, जो शायद सिर छिपाने के लिए ही काफी है. टूटी झोपड़ी के भीतर खाली पड़े अनाज के डिब्बे और बुझे चूल्हे के पास रखे दो अदद बर्तन गवाही देते हैं कि इस घर में रोज़ खाना नहीं पकता.------  वैसे तो धीरपाल भीख नहीं मांगना चाहता पर बच्चों के पेट की आग बुझाने के लिए बैसाखी के सहारे काफी दूर-दूर तक जाना पड़ता है. चंद रुपये और कुछ पुराने कपडे भीख में पाकर धीरपाल खुश तो नहीं होता लेकिन बच्चों के चेहरों पर कुछ देर के लिए आई ख़ुशी, सुकून देती है.----- मुंगेली से कुछ दूर पहले ग्राम हथ्निकला मे  रहने वाला धीरपाल इस देश का अकेला गरीब या फिर विकलांग नही है -- परन्तु इस विकलांग में देशभक्ति का जो जज्ज्बा है शायद वो कम ही लोगो में रहता है -- खाली पेट बापू भारतमाता या फिर सुभाष चन्द्र बोश को हर दिन याद करते इस परिवार को देश से काफी प्यार है --घर में दोनों वकत चुल्हा नही जलता लेकिन शहीदों  को दोनों वक्त अगरबत्ती जलाकर याद किया जाता है-- हमने धीरपाल से काफी कुछ जाना --बातो बातो में उसने बताया कि कही रोजगार मिल जाता तो बच्चो को अच्छी तालीम दिला देता --उसने बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और रास्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को हाथ से लिखा पत्र भेज चूका है लेकिन आशा कि कोई किरण अब तक नजर नही आई --मेहनत की रोटी खुद और बच्चो को खीलाने की सोच विकलांग को धीरे धीरे खाए जा रही है -- हर दिन रोजगार की तलाश-- शायद किसी दिन तो इंतजार ख़त्म होगा---- मै सलाम करता हु ऐसे देशभक्त धीरपाल को जो खाली पेट रहकर बापू भारतमाता और सुभाष को याद करता है ----                                                       सत्यप्रकाश

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