Sunday, October 24, 2010

...और एक डोम हो

सरकार को सुनती जनता ...

संतुष्ट  नजर आते "सरकार"....

सरस्वती योजना के तहत साइकिले दी गई...

राज्योत्सव की तैयारियां  राजधानी के साथ-साथ बिलासपुर में भी पूरी लगन के साथ की गई.....हर विभाग के मंत्री और अफसरों ने अपने लिए डोम [पंडाल] सजवाया .....बड़े-बड़े डोम में विभाग की उपल्ब्धियो की तस्वीरे,झाँकिया सजाई जाएँगी....इस मौके पर कही सलमान खान तो कही किसी और को बुलाया जायेगा.....कोई " मुन्नी बदनाम हुई तो कोई दूसरे गीत पर ठुमका लगाकर सरकार का यशगान करेगा.... छत्तीसगढ़ को राज्य बने एक दशक [१० बरस ] एक नवंबर को पूरा हो जायेगा...छत्तीसगढ़ के आवाम ने एक दशक में दो सरकारों को देखा,उनके काम करने का तरीका हो या फिर आखिरी आदमी के प्रति सरकार का रवैया....जनता सब जानती है फिर भी खामोश है.....सूबे के आवाम ने दोनों सरकारों की याद रखने लायक बातो को याद रखा,बाकी भूल गए.....जनता को बताने के लिए सरकार के पास बहुत कुछ है शायद इसीलिए बड़े-बड़े डोम सजाये गए है..लेकिन जनता बहुत कुछ जानते हुए भी सरकार को कुछ नही बता पाती क्योकि आम आवाम के पास डोम सजाने के लिए रूपये नही है.......जनता कहीं बीमारी से मर रही है , तो कहीं कानून के रखवालो की दबंगई के शिकार लोग अस्पतालों में इलाज करवा रहे है..और जिनकी सांसे थम गई उनके परिजन न्याय पाने यहाँ-वहां भटक रहे है...१२ सितम्बर को बिलासपुर के जीत टाकिज की घटना कानून के रखवालो का असली चेहरा दिखाती है....जिले के पोलिस कप्तान बीबी के साथ सलमान खान की दबंग देखकर बाहर निकलते है,टाकिज का सुरक्षा कर्मी उनको नही पह्चान पता है और लाइन से निकलने की बात कह देता है,बस साहेब के गुर्गे [पोलिस ] उस पर पिल पड़ते है...देखते ही देखते वो सुरक्षा कर्मी मर जाता है ,लेकिन सरकार के मंत्री गरीब आदमी की मौत पर बोलने की बजाय पोलिसवालो का बचाव करने में जुट जाते है....ऐसी कई घटना है जो सरकार और नौकरशाही के  आपसी तालमेल का सबूत देती है......फिर भी जनता सरकार के साथ मिलकर राज्योत्सव मनाएगी.....डॉक्टर रमन की सरकार या यूँ कहें की जनता की चुनी सरकार का काम-काज अच्छा है लेकिन  " सरकार " नाम की जो संस्था है उसका काम जनता के हित में नही दिखता....वजह है बिचोलिये...गरीबो के  हक़ पर अपना कब्ज़ा जमा चुके दलाल कोई और नही " सरकार " के काफी करीबियों में से है...ऐसे में गरीब को सरकार की योजना का लाभ मिलेगा  सोचना भी बेमानी होगा....जनता का काम है सपने देखना और सरकारे समय- समय पर सपनो के झूले पर उनको झूलाती रहती है....ऐसा तब से हो रहा है जब से इस देश में संसदीय शासन प्रणाली आई है....अखबारों में हर दिन यहाँ - वहां करीब १५ -२० शिलान्याश और भूमिपूजन की खबरे होती है...लेकिन साल में केवल १०-१२ लोकार्पण की खबरे ही पढने और सुनने को मिलती है.....चुनावी घोषणाओं पर कितना अमल हुआ इसका हिसाब जनता नही पूछती....अजीत जोगी की सरकार ने पानी बचाने के लिए प्रदेश में हजारो डबरी खुदवाई थी ...लेकिन उस " जोगी डबरी" से किसानो को कोई लाभ नही हुआ...मध्यान्ह भोजन केंद्र सरकार की योजना है लेकिन डॉक्टर रमन की सरकार उसे किस तरह चला रही है शायद अखबार रोज पढ़ने वाले जानते है....गावं-गावं में शराब की अवैध भट्टिया खु गई है जो गावं की तकदीर और तस्वीर दोनों बदल रही है....सरकार ऐसे भाग्य विधाताओ के खिलाफ कार्यवाही नही करती ,करे भी तो क्यों, लोगो को जहर{दारू}पिलाकर करोडो का राजस्व जो सरकार अर्जित कर रही है.......गरीबो के हक़ का राशन राईस मिलो में पहुँच रहा है....हजारो  लीटर मिट्टीतेल खुले बाजार में चुपके -चुपके बिक रहा है पर सरकार है की कुछ नही करती....
                              इस बार की सरकार कई मायनो में ज्यादा संवेदनशील है , ज्यादा से ज्यादा विकास के काम करवाना चाहती है....सरकार ने गांवो में बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगवाये है जिनमे कई योजनाओ का जिक्र है.....बच्चो को स्कूल भेजने से लेकर खुले में शोच नही करने का जिक्र होर्डिंग में है.....सरकार ने लडकियों को सायकिले बांटी, उसमे भी सरकार के लोगो की जेब का खास ख्याल रखा गया.... सरकारी योजनाओ की होर्डिंग्स पर सूबे के मुखिया डॉक्टर रमन के अलावा विभागीय मंत्रियो की मुस्कुराती तस्वीरे भी लगी है....गांव के बच्चे उन मंत्रियो की मुस्कुराती तस्वीरों को रोज देखते है...पर उन तस्वीरों से शिकायत नही कर सकते....गांव में स्वास्थ्य,शिक्षा का हाल वहा की सडको से भी बुरा है.....सरकार ग्राम सुराज के जरिये ग्रामीणों तक पहुंचकर समस्या हल करने का दावा करती है लेकिन समस्याओ के निराकरण की सच्चाई जानना हो तो एक बार गांव जरुर पहुँचिये.....
                                                           राज्य नक्सलवाद की भीषण समस्या से जूझ रहा है, सरकार हर घटना के बाद नक्सलियों से निपटने नई कार्ययोजना बनाती है....बावजूद इसके नक्सल इलाके में हर दिन निर्दोष लोग मारे जा रहे है....हर दिन के आंकड़े काम ज्यादा हो सकते है लेकिन लाल आतंक पर सरकार का नियंत्रण नही है...इस मसले पर सरकार और सरकार की रोटी खाने वाले बड़े-बड़े दावे करते है....पर ये लोग उस समय कुछ कह पाने की स्थिति में नही थे जब ७ जवानो को अगवा करके नक्सलियों ने ३ की हत्या कर दी और ४ जवानो को बंधक बना लिया,जिनको छुड़ाने सरकार ने कोई ठोस कार्ययोजना नही बनाई......परिवारवालों और मिडिया की मिन्नतो पर १० दिन बाद नक्सलियों ने बंधक जवानो को रिहा कर दिया..सरकार अंत तक कुछ नही कर पाई....ऐसी कई विफलताएं है जो सरकार की संवेदनशीलता पर सवाल खड़े करती है , लेकिन सरकार और सरकारी  तंत्र है की हर बरस विकास की झांकी सजाता  है......तमाम विफलताओ की उडती धूल को कारपेट से ढँककर उसके ऊपर सफलता के सजे डोम में सब एक साथ होंगे....सब सरकार की बड़ाई में सजी झाँकियो को निहारेगे ....इन डोमो के बीच वो डोम नही होगा जिस पर शायद लिखा होता................ "असफलता का डोम "

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