Monday, November 8, 2010

एक सपना...




मैंने जंगल को काफी करीब से देखा है....वहाँ रहने वाले बैगा आदिवासियों की बात हो या फिर दूसरी  जनजातियो के लोग....तंग कपड़ो से ढका बदन,चेहरे पर मासूमियत की लकीरे उनके सीधे,सरल जीवन की कहानी बयाँ करती है...पिछले बरस अचानकमार के उन आदिवासियों को जंगल से खदेड़ दिया गया जो बाघ प्रोजेक्ट वाले एरिया में आते थे...विस्थापन के नाम पर आदिवासियों को खूब छला गया....सुख-सुविधावो की बनावटी तस्वीर दिखर आदिवासियों को अचानकमार के जंगलो से निकालकर लोरमी के पास बसाया गया है.....विकासखंड मुख्यालय से लगे उस इलाके मे आदिवासी नई राह तलाश रहे है...वहीं कुछ भू-मफियायो की नजरे उन सरकारी जमीनों पर लग गई है जिस पर आदिवासियों के आशियाने बनाये गये है....विस्थापन से लेकर पुनर्वास के बीच की तमाम कोशिशो में कुछ लोगो को ख़ास फायदा भी हुआ...मैंने उस सच  को जब चेनल के जरिये दिखाया तो कुछ लोगो को काफी पीड़ा हुई ....दरअसल पीड़ा जनित वो  लोग अधिकारी वर्ग की चौखट पर हर रोज या यूँ कहें की ईमान बेच चुके लोग है...चंद रूपए के लिए ईमान बेचने वालो की छाती जितनी चौड़ी नजर आती है,उनकी नाक भी उतनी ही बेशर्मी से ऊँची होती है....समाज में खुद को पत्रकार बताकर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले उन लोगो की कीमत दरअसल लोग भी जान  चुके है...शायद इसीलिए हर खबर को करने,खबर छिपाने की एवज वो लोग रुपयों के इशारे पर नग्न होने तक को तैयार रहते है...तभी तो आदिवासियों के विस्थापन से लेकर पुनर्वास तक की खामियों को अखबारों,चैनलों में बीट नाम की दुकानदारी चलाने वालो ने ना देखा,ना सुना.....सबसे बड़ी बात ये रही की विस्थापित गाँवो से लेकर पुनर्वास स्थल तक विभाग के अधिकारियो के साथ घूमकर कुछ बीटधारी पत्रकारों ने वही देखा जो रुपयों की छलनी से दिखाया गया....खैर आदिवासियों के दर्द और हकीकत को जितना हो सका हमने करीब से  देखने की कोशिश की है...... 

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