Wednesday, November 17, 2010

शादी की उम्र

मै ये मानता हू की बदलते वक्त के साथ युवा वर्ग की सोच में भी बदलाव आया है खासकर शादी के मामले को लेकर....आज शादी की उम्र और उसके बारे में युवावो की राय बिलकुल ही भिन्न है,हालांकि दो दशक पहले यह उम्र सीमा और भी कम थी। अगर आजादी के पहले की बात करें तो उस समय हमारे यहां बाल-विवाह की प्रथा थी। आज भी कई इलाकों में यह प्रथा विद्यमान है। ऐसे में तमाम लोगों को बड़ी उम्र में शादी की बात सुनना अटपटा-सा जरूर लगता हैं। लेकिन समाज का एक वर्ग बड़ी उम्र में शादी को स्वीकार रहा है। लोग 30-35 की उम्र में शादी को आम मानने लगे हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि बड़ी उम्र में शादी करनी उनकी मजबूरी है या शौक। शहरी परिवेश में बड़ी उम्र में शादी करना लोगों का शौक तो नहीं कह सकते बल्कि समय के बदलने के साथ लोगों की सोच में भी बदलाव आया है।
कुछ लोग पढ़ाई के बाद अपने कैरियर पर पूरा ध्यान देते है। ऐसे में कुछ कर दिखाने की होड़ में शादी के बारे में सोचने का भी वक्त नहीं होता। यह वर्ग अपने व्यवसाय और सामाजिक गतिविधियां में इतना व्यस्त है कि उनके पास विवाह के लिए सोचने के लिए समय ही नहीं है। शादी करना न करना हर किसी का व्यक्तिगत फैसला हो सकता है। आज के परिवेश में शादी की सही उम्र बताना बहुत कठिन है। युवावर्ग के पास करियर बनाने की आपाधापी में विवाह के लिए सोचने का वक्त ही नहीं बचता।
आज के युवा शादी के बंधन में बंधने से डरते भी हैं। लड़कों की मानसिकता यह होती है कि अभी ऐश-मौज कर लें, फिर पूरी जिदंगी तो पारिवारिक बंधन में बंधना ही है। वहीं लड़कियां इस बात से डरती है कि उन्हें नए घर में जाना है, पता नहीं वहां का माहौल कैसा होगा। लड़के एवं लड़कियां दोनों ही इसके चलते लम्बी उम्र तक शादी नहीं करना चाहते। वे अपने को किसी बंधन में डालने से कतराते हैं। लड़कियों के लिए शादी का मसला उनके  करियर से भी जुड़ा होता है। वे आशंकित होती हैं कि ससुराल वाले पता नहीं किस सोच के होंगे। कहीं शादी के बाद मुश्किल से मिली जॉब छोड़नी न पड़े।
आज की युवा पीढ़ी पढ़ी-लिखी है। वह अपने जीवन से जुड़े निर्णय खुद लेने लगी है। इसमें अपने साथी का चुनाव भी शामिल है। इसी के चलते लिव-इन-रिलेशनशिप का नया चलन चला है। लोग अपने जीवन साथी का चुनाव खुद करते हैं। इसमें अपने साथी को सोचने-समझने के लिए वक्त मिल जाता है। यह एकदम शादी जैसा ही है। इसमें दोनों एक साथ ही रहते है, बस शादी के बंधन में बंधना नहीं चाहते। साथ रहने के दौरान यदि उन्हें लगता है कि हमारी जिदंगी एक-दूसरे के साथ गुजर सकती है तो फिर वे शादी कर लेते हैं।
युवावर्ग को समझना होगा कि करियर के बारे में सोचना अच्छी बात है लेकिन शादी में देरी से कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। देर से शादी से जहां पुरूष में पिता बनने की क्षमता में कमी होती दिख रही है वहीं महिलाओं को भी मां बनने में परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं। शादी के बाद पुरूष तथा महिलाओ में शारीरिक बदलाव आता है। लेकिन बड़ी उम्र में शादी करने से शरीर को इन बदलावों से तालमेल बिठाने में दिक्कत होती है। शादी की कामयाबी का एक अहम तत्व पति-पत्नी के बीच का तालमेल भी होता है। लेकिन अधिक उम्र में शादी करने के बाद पार्टनर से तालमेल बिठाना आसान नहीं होता क्योंकि बढ़ती उम्र में अपनी सोच में बदलाव लाना काफी कठिन होता है।
समाज में हमेशा से बदलाव होता रहा है। आज आर्थिक युग में युवावर्ग के लिए करियर सर्वोच्च प्राथमिकता है। जिसके चलते शादी की उम्र का बढ़ना लाजमी है। ऐसे में मां-बाप को भी चाहिए कि उनका साथ दे। जो मां-बाप अपने बच्चों को कम उम्र में या उसे अपना करियर बनाए बिना शादी की बात करते है उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए मां-बाप को भी अपने सोच में बदलाव लाना चाहिए। 

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