Saturday, November 13, 2010

ये क्या जगह है दोस्तों ?

" जिंदगी आ तुझे कातिल के हवाले कर दूं, मुझसे अंजामे तमन्ना नहीं देखा जाता" ये दास्तां उन जिंदगियों की है जिनके नाम रोज बदलते हैं। ये कहानी उनकी है जिनका पता उनकी पहचान बताता है, उनका पेशा बयां करता है। ये वह बस्ती है जो अरसे से मौजूद होकर भी कभी बसी नहीं। यहां रहनेवाला हर बाशिन्दा और यहां आनेवाला हर मुसाफिर बस एक ही सवाल पूछता है..................ये क्या जगह है दोस्तों ?
आपने अखबारों के इश्तिहार में गुमशुदा लोगों के नाम देखे होंगे, लेकिन क्या कभी किसी बस्ती के लापता होने की बात आपने सुनी है।छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के बाद संस्कारधानी,न्यायधानी यानि बिलासपुर का ही नाम आता है.......पिछले एक दशक में काफी कुछ बदला,जमीन पर नजर आने वाली इमारते आकाश चूमने लगी,सडक पर यातायात का दबाव कई गुना बढ़ा पर इसी चकाचौंध के पीछे एक ऐसा दाग भी है जो कई दशक से संस्कारधानी के लिये ही नही पूरे जिले के लिए नासूर बना हुआ है और वह है जगह-जगह अघोषित  रेड लाईट एरिया........शहर के तालापारा का नाम भी कुछ उसी रूप में लोग जानते है...वक्त के साथ ठिकाने जरुर बदले,छोटी-छोटी खोलियो की जगह फ्लेट्स,काले शीशे लगी गाडियों और फार्म हॉउस ने ले ली... देश की आज़ादी के पहले अंग्रेजों के जमाने में  मुजरे सुनने का चलन था.... उस समय जिस्म का कारोबार सीमित ठिकानो पर संचालित था...मुंगेली के पड़ाव चौक की तंग गलियों की बात हो या फिर शहर के तालापारा की ८बाई ८ की खोलिया..
दुनिया के सबसे पुराने पेशे जिस्मफरोशी के कारोबारी बरसों से कारोबार कर रहे हैं। यहां से कभी नाबालिग तो कभी जबरन लाई गई लड़कियां जिस्म बेच रही हैं और सफ़ेद पोश तबका इन  इलाको  में जाने से भी कतराता है। पर इतना तय है कि इस अंधेरे कोने को कभी भी रोशनी नसीब नहीं हुई.......कहते हैं जिस्म रूह का लिबास है, लेकिन जब जिस्म पेशा बन जाता है तो उसके जख्म रूह से भी रिसने लगते हैं........... फिर बस ये आरजू रह जाती है कि मंजिल न दे चिराग न दे हौसला तो दे तिनके का ही सही कोई आसरा तो दे...... कुछ पते ऐसे होते हैं जो नाम को गुमनाम बना देते हैं.... ऐसे ही कुछ पते इस शहर और आस-पास के इलाको में.... यहां बस्ती तो है लेकिन जिंदगी यहां सिर्फ कटती है बसती नहीं......ये कहानी यहां रह रहे किसी बाशिन्दे के नाम से शुरू होती तो भी कहानी कुछ ज्यादा अलग नहीं होती .... मान लीजिए एक का नाम है रोशनी........नाम नकली है लेकिन दर्द असली.............22 साल पहले रोशनी को पति ने घर से निकाल दिया था। बच्चे को पालने की मजबूरी उसे जिस्म के बाजार में ले आई....... 22 साल से खिड़की से हाथ बाहर निकालकर सड़क पर चल रहे अजनबी मुसाफिरों के साथ चंद पल बिताने को अगर जिंदगी कहते हैं तो जिंदगी रोशनी ने भी जी......तिल- तिल कर सुलगती जिंदगी काठ हो गई और अब उम्र है कि कटती नहीं काटने को दौड़ती है। कहां जाएं ? क्या करें ? 22 साल पुराना सवाल एक बार फिर रोशनी को डरा रहा है। एक वक्त था कि निगाहें किसी का इंतजार करती थीं, फिर थक गई सड़कें और दूर तलक जाके एक दिन लौट आई......अब न ख्वाब रहे, न दर्द और न ही दर्द का एहसास, रोशनी ने मौत की मानिंद जीना सीख लिया। रोशनी की जिंदगी में अब रोशनी नहीं, उसका इंतज़ार भी नहीं। पल- पल का हिसाब मांगती जिंदगी से शर्मसार रोशनी के जेहन में है तो बस एक सवाल कि ये क्या जगह है दोस्तों ?
जिस बाजार में जिस्म बिकता है वहां सिर्फ इंसानियत नहीं बिकती, यहां छिन जाती है बच्चों की अनमोल मासूमियत......... यहां रहनेवाले और पलनेवाले बच्चों का अक्सर न कोई वर्तमान होता है और न ही कोई भविष्य........बच्चों के साथ पिता का नाम नहीं जुड़ा होता.... सिर्फ 4- 5 साल पहले तक ये एक बड़ी मुसीबत थी....... भला हो सुप्रीम कोर्ट का जिसके आदेश से अब सिर्फ मां के नाम से भी बच्चों को स्कूलों में दाखिला मिल जाता है..... वरना 5वीं के बाद बिन बाप के बच्चों के सपने दो कमरे के स्कूल में ही दम तोड़ देते..... इस ओर किसी एनजीओ की कोशिशे सराहना के लायक नजर नही आई.... स्कूलों में अघोषित  कोठों की ज़िंदगी से निकले बच्चों को जगह नहीं मिल पाती ऐसे में सैकड़ों बच्चों की तक़दीर या तो कोठों में या फिर सड़कों पर दम तोड़ देती है..........जिस नरक की बात अक्सर कहानियों में सुनते आए हैं उसे देखने के लिए कहीं और जाने की जरूरत नहीं। वह नरक शहर के ब्रहस्पति बाजार,शनिचरी बाजार,तालापारा की कई गलियों में ही मौजूद है.....एक ऐसा नरक जिसमे हर दिन सैकड़ों सैक्स वर्कर्ज़ करती हैं अपने जिस्म का सौदा.....एक जमाना था गांव के  जमींदार हर शाम महेफिल सजवाया करते थे.....पैर में बंधे घुंघरू की आवाज उस महिला या यु कहें की उस तवायफ के दर्द को जेहन से बाहर निकलने ही नही देती थी....वक्त बदला,लोग बदले तो फिर तवायफो का अंदाज कैसे नही बदलता.....धीरे- धीरे जिस्म के कारोबार में बदली जिंदगी के वही जख्म आज शहर का  नासूर बन कर सामने है......अब तो लगता है कई कमसिन लडकियों,महिलाओ को जिस्म बेचकर रूपये कमाना सबसे आसान तरीका लगता है.....मैंने देखा है कई सफेदपोश,इज्ज़तदारो को जो बाजार में उपलब्ध बेटी की उम्र की लडकियों से सौदा करते है.....रूपये की गर्मी उन्हें उम्र के लम्बे अन्तराल का अहसास नही होने देती.....बाजार में अलग-अलग ठिकानो पर दिखाई दे जाने वाली सेक्स वोर्करस को लोग देखते ही शब्दों के बाण चलाने लगते है....लेकिन उनके दिल में जो दर्द छुपा है उस को कोई मानने या समझने को तैयार ही नहीं है....वजह है कालगर्ल्स ......महंगे मोबाईल सेट,कार या फिर दोपहिया वाहनों पर अयासियो के लिए फर्राटे भरती वो कालगर्ल्स लोगो की खास और आसानी से उपलब्धता का सामान बन चुकी है....यहाँ-वहां ग्राहक की तलाश तो उसे होती है जिसके घर का चूल्हा जिस्म बिक जाने के बाद ही जलता है .......उनकी  ज़िंन्दगी में बस एक ही सच है,लोगों की हवस को निगल कर भी खुश रहने और जीवन जीने का सच.... जिस्म के बाज़ार में लोगों के अरमानों की केवल बोलियां लगती हैं.......फिर चाहे उसका नाम राधा हो या शबनम...... किसी के अपने नहीं रहे ,तो किसी के अपनो ने धोखा दे दिया और फिर पेट की भूख इन्हें खींच लाई जिस्म के बाज़ार में.......इतना कुछ खोने और झेलने के बाद भी उन्हें विश्वास हैं दुनिया बनाने वाले पर.......शायद इसीलिए उनके घर की दीवारों  पर कैटरीना, करीना, प्रीती ज़िन्टा के साथ भगवान की तस्वीर भी दिखाई देती है...... किसी भी त्योहार का इनके लिए कोई मायने नहीं है ......शायद यही विश्वास है जो उन्हें हर वक्त की घुटन भरी जिन्दगी के बावजूद जिन्दा दिल बनाये रखता है......उसी होसले ने  इन्हें और इनके मासूम बच्चों को ज़िन्दा रखा है.....इन तमाम जिल्लतो के बावजूद अगर खुदा के आगे इनके हाथ उठते हैं तो केवल इस दुआ के लिए कि............. "मेरे बच्चे कभी इन गलियों का हिस्सा न बनें"

1 comment:

  1. ... behad gambheer samasyaa ... samaadhaan ki dishaa me prayaas nagany hain !!!

    ReplyDelete